यूक्रेन समस्या और भारत

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पंडित जवाहरलाल नेहरू की आत्मा को यह देखकर बहुत प्रसन्नता हुई होगी कि भारत ने यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल में रूस के विरुद्ध प्रस्ताव का साथ न देते हुए अनुपस्थित रहने का निर्णय लिया। यह नेहरू जी की तटस्थता की नीति के अनुरूप था जिसका कमोबेश 70 वर्षों से भारत अनुसरण कर रहा है।

तटस्थता की नीति भारत के लिए बहुत उपयुक्त है क्योंकि इसमें केवल एक सुविधाजनक मध्यमार्ग अपनाना बहुत आसान होता है। सरेआम एक महाशक्ति ने एक स्वतंत्र एवं प्रजातांत्रिक देश पर हमला किया परन्तु हमारी प्रतिक्रिया तटस्थ है।

पंडित नेहरू की तटस्थता की नीति में पश्चिमी राष्ट्रों के विरोध का पुट था। 1955 में बांडुंग में नेहरू जी ने राष्ट्रों के बीच आपसी सौहार्द के लिए पंचशील का सिद्धांत प्रतिपादित किया था। 1955 में ही वॉरसा पैक्ट में सोवियत यूनियन ने अपना कम्युनिस्ट गुट बनाया।

इसके बाद सोवियत यूनियन ने 1956 में ही हंगरी के ऊपर धावा बोल दिया। भारत तटस्थ रहा। ग़नीमत यह थी कि उसी समय पश्चिमी राष्ट्रों की तरफ़ से इंग्लैंड और फ़्रांस ने इजिप्ट पर स्वेज़ कैनाल के लिए आक्रमण कर दिया।

भारत की तटस्थता की नीति का सौभाग्य था कि मामला दोनों तरफ़ के आक्रमणों से संतुलित हो गया।1968 में सोवियत यूनियन ने फिर अपने कुछ कम्युनिस्ट देशों के साथ ही चेकोस्लोवाकिया को सबक़ सिखाने के लिए उस पर हमला किया और भारत अपनी तटस्थता की नीति पर अडिग रहा।

1979 में सोवियत यूनियन ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर के क़ब्ज़ा कर लिया और भारत तटस्थ बना रहा। यू एन में सोवियत यूनियन के विरुद्ध प्रस्ताव के समय भारत गैरहाज़िर रहा।

ऐसा नहीं है कि सोवियत यूनियन ने भारत के लिए कुछ नहीं किया। यू एन में कश्मीर समस्या पर प्रारंभ से ही अनेक अवसरों पर सोवियत यूनियन कश्मीर पर भारत के विरुद्ध लाए गए प्रस्तावों पर लगातार वीटो करता रहा है। भारत को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार की तुलना में सस्ते हथियार रूस हमेशा से ही बेंचता रहा है और आज भी दे रहा है।

भारत की सेना के तीनों अंगों में रूसी हथियारों की आधे से ज़्यादा भागीदारी है। भारत के इतिहास में जब महत्वपूर्ण बांग्लादेश का युद्ध चल रहा था तब अमेरिका ने बांग्लादेश के निर्माण को रोकने के लिए अपने 7 वें नेवल फ्लीट को बंगाल की खाड़ी की तरफ़ बढ़ा दिया था।

ऐसे कठिन क्षणों में सोवियत यूनियन ने आपनी पनडुब्बियों और जहाज़ों को आगे करके अमेरिकी मंसूबों को नाकाम कर दिया था। इसके बाद भारत आसानी से चहल कदमी करता हुआ ढाका तक पहुँच गया।

पंडित नेहरू ने तटस्थता की मज़बूत नींव रखी और बांडुंग मे 1955 में राष्ट्रों के बीच सौहार्द के लिए पंचशील का सिद्धांत प्रतिपादित किया था।

1962 में माओ के चीन ने तृतीय विश्व के देशों का नेतृत्व करने की भारत की महत्वाकांक्षा को नष्ट करने के भारत पर आक्रमण कर दिया।अमेरिका भारत को उस समय पिटता देख कर मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ। उस समय सोवियत यूनियन तटस्थ बना रहा और उस से कम्युनिस्ट चीन के विरुद्ध कोई मदद मिलने की संभावना नहीं थी।

पंडित नेहरू ने केनेडी को स्वयं पत्र लिखकर तटस्थता की नीति के विरुद्ध अमेरिका से बड़ी संख्या में फाइटर जेट और रडार सिस्टम की माँग की तथा इन्हें चलाने के लिए दस हज़ार सैन्य कर्मियों को भारत भेजने की माँग की। सहायता की माँग नेहरूजी ने इंग्लैंड से भी की। चीन को जब यह भनक लगी कि अमेरिका भारत की माँग को पूरा करने वाला है तो वह जीता हुआ पूरा क्षेत्र ख़ाली करके वापिस लौट गया।

यह सब इतिहास हो गया है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तटस्थता की नीति पर गंभीर मंथन की आवश्यकता है। विख्यात राजनीतिक विश्लेषक फ़रीद ज़कारिया ने प्रश्न उठाया है कि भारत की अगले तीस चालीस वर्षों की क्या स्ट्रेटजिक योजना है। वर्तमान में चीन बहुत तेज़ी से उभरती हुई विश्व शक्ति बनता जा रहा है और वह हमारे लिए सदैव बड़ा ख़तरा बना रहेगा।

रूस सामरिक दृष्टि से एक महाशक्ति है परंतु उसकी आर्थिक शक्ति (GDP) भारत से भी काफ़ी कम है और इसलिए उसने आर्थिक सहायता के लिए चीन से अपनी नजदीकियां बढ़ा ली है।यूक्रेन युद्ध के बाद भविष्य में ये दोनों एकजुट होकर विश्व की सबसे बड़ी शक्ति के रूप में सामने आएंगे।

भारत नहीं चाहेगा कि उस पर चीन के सैन्य या सायबर आक्रमण के समय विश्व यूक्रेन जैसा तमाशा देखता रहे।भारत का विकल्प है कि वह स्वयं अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाये और अर्थव्यवस्था को मज़बूत करें। सौभाग्यवश अटल बिहारी बाजपेयी के समय बनाये गये न्यूक्लियर हथियार अंतिम अमोघ अस्त्र के रूप में हमारे पास है। कठिनाई यह है कि भारत में विकास के लिए कोई सर्वसम्मत नीति नहीं है।

बुरी तरह से ध्रुवीकृत हमारे प्रजातंत्र में आने वाले दशकों में पक्ष विपक्ष केवल एक दूसरे की खिल्ली उड़ाते रहेंगे तथा कोई रचनात्मक सुझाव नहीं देंगे।अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने की भी एक सीमा है।विकास की संभावनाओं का स्वर्णिम काल भारत बर्बाद कर चुका है जबकि इसी अवधि में चीन अचानक हम से 5 गुना से अधिक बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।

अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विशेषज्ञ रुचिर शर्मा के अनुसार भारत अथवा किसी अन्य विकासशील देश की अर्थव्यवस्था अब 5 प्रतिशत प्रति वर्ष से अधिक नहीं बढ़ पाएगी। इसलिए चीन के विरुद्ध हमारी असमानता लगातार बढ़ती ही चली जाएगी।
राजनय में राष्ट्र हित सर्वोपरि होता है और सिद्धान्त केवल उसके औचित्य को समझाने के लिए होते है।

भारत इस समय अपने तथाकथित राष्ट्र हित के कारण यूक्रेन समस्या में तटस्थ बना हुआ है।परन्तु हमें अब अगले तीन चार दशकों के लिए विदेश नीति बनानी होगी जिसमें हमें चाहे अनचाहे पश्चिमी देशों का साथ लेना और देना होगा। इ

सका हमें भान भी हो चुका है और इसीलिए हम दक्षिण चीन सागर के संदर्भ में चार देशों के क्वाड में सम्मिलित हो चुके हैं। उल्लेखनीय है कि क्वाड के चार सदस्यों में से केवल भारत को छोड़कर बाक़ी तीनों ने रूस के आक्रमण का खुलकर विरोध किया है। हमें अपने स्ट्रेटजिक हितों के लिए सतर्क रहने की ज़रूरत है- ऐसा न हो कि विपत्ति के समय पूरा विश्व तटस्थ हो जाए और हमें हमारे हालात पर छोड़ दिया जाए।