
140 साल की कांग्रेस को दर्पण दिखा रहा क्वोरा साइट का चित्र और दिग्विजय सिंह…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
‘क्वोरा साइट पर मुझे यह चित्र मिला। बहुत ही प्रभावशाली है। किस प्रकार आरएसएस का जमीनी स्वयं सेवक व जनसंघ@बीजेपीफॉरइंडिया का कार्यकर्ता नेताओं की चरणों में फर्श पर बैठकर प्रदेश का मुख्यमंत्री व देश का प्रधानमंत्री बना। यह संगठन की शक्ति है। जय सिया राम।’
दिग्विजय सिंह के इस ट्वीट ने उथल- पुथल मचा दी है। जिस पर दिग्विजय सिंह की सफाई भी आ गई है। संगठन के मामले में पूरी कांग्रेस हमेशा ही भाजपा को आदर्श मानती रही है। और दिग्विजय सिंह पार्टी के समर्पित नेता के नाते हमेशा ही पार्टी कार्यकर्ताओं को भाजपा की तरह संगठनात्मक मजबूती के लिए प्रेरित करते रहे हैं। पर आज 140 साल की हो रही कांग्रेस के लिए क्वोरा साइट का चित्र और दिग्विजय सिंह की नसीहत वास्तव में दर्पण दिखाने का काम कर रही है। और इस दर्पण में अपना सही चेहरा देखने की हिम्मत कांग्रेस ने नहीं जुटाई तो निश्चित है कि 150 साल होते-होते कांग्रेस का अस्तित्व सवालों के घेरे में आ जाएगा। और यह तारीफ की बात नहीं है लेकिन सच्चाई है कि दिग्विजय सिंह ने हमेशा ही पार्टी को सही राह पर ले जाने की पूरी कोशिश की है। सियासी मायनों में दिग्विजय का कोई सानी नहीं है। मध्य प्रदेश में 2018 में 15 माह का कार्यकाल अगर 2003 के बाद कांग्रेस को सत्ता में मिला था तो उसमें दिग्विजय सिंह की जमीनी मेहनत और समर्पण को नकारा नहीं जा सकता। पंगत में संगत के जरिए उन्होंने कमलनाथ के नेतृत्व में पूरे मध्य प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संजीवनी देने में कोई कमी नहीं की थी। 79 साल पूरा कर रहे दिग्विजय सिंह का पार्टी को मजबूत करने के लिए यह प्रयास निराधार नहीं माना जा सकता। हालांकि कांग्रेस वर्किंग कमेटी के पहले की इस पोस्ट के बारे में पत्रकारों ने जब ये पूछा कि इसका क्या मतलब है, कांग्रेस संगठन में क्या वो सुधार चाहते हैं तो दिग्विजय सिंह ने कहा कि वो आरएसएस और बीजेपी के घोर विरोधी हैं। उन्होंने केवल ‘संगठन’ की तारीफ की है।
आज कांग्रेस की चर्चा कर लें। तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत में एक राजनीतिक दल है। इसकी स्थापना 28 दिसंबर 1885 को हुई थी, यह एशिया और अफ्रीका में ब्रिटिश साम्राज्य में उभरने वाला पहला आधुनिक राष्ट्रीयता आंदोलन था। 19वीं सदी के अंत से, और विशेष रूप से 1920 के बाद, महात्मा गांधी के नेतृत्व में, कांग्रेस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की प्रमुख नेता बन गई। कांग्रेस ने अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्रता दिलाने में मदद की और ब्रिटिश साम्राज्य में अन्य विरोधी उपनिवेशवादी राष्ट्रीयता आंदोलनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।19वीं सदी के आखिर में और शुरूआत से लेकर मध्य 20वीं सदी में, कांग्रेस भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में, अपने 1.5 करोड़ से अधिक सदस्यों और 7 करोड़ से अधिक प्रतिभागियों के साथ, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरोध में एक केंद्रीय भागीदार बनी।
पार्टी ने 1885 में बंबई में अपनी पहली बैठक आयोजित की जहाँ वोमेश चंद्र बनर्जी ने इसकी अध्यक्षता की। स्वतंत्रता के बाद से 17 आम चुनावों में, इसने सात बार स्पष्ट बहुमत हासिल किया है और तीन बार सत्ताधारी गठबंधन का नेतृत्व किया है, केंद्रीय सरकार का नेतृत्व 54 वर्षों से अधिक समय तक किया है। पर अब कांग्रेस के लिए संघर्ष का काल चल रहा है। हालांकि वर्तमान में राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में हैं लेकिन लगातार हारों ने कांग्रेस का मनोबल तोड़ दिया। और कहीं ना कहीं संगठनात्मक तौर पर कांग्रेस खुद को बिखरा बिखरा महसूस कर रही है। ऐसे में दिग्विजय सिंह का कांग्रेस नेतृत्व और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को दर्पण दिखाना सही ही माना जा सकता है।
और यह संयोग ही है कि संगठनात्मक क्षमता के धनी भाजपा की धरोहर कुशाभाऊ ठाकरे और पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा की पुण्यतिथि भी आज ही है। और यह भी संयोग है कि वंदेमातरम पर भी जो विवाद चल रहा है उस वन्देमातरम का भी कांग्रेस से गहरा नाता है। 1886 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के द्वितीय वर्ष में ही कोलकाता अधिवेशन के मंच से कविवर हेमचन्द्र द्वारा वन्दे मातरम के कुछ अंश मंच से गाये गए थे। 1896 में कांग्रेस के 12वें अधिवेशन में रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने इसे गाया था। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक को वन्दे मातरम् में इतनी श्रद्धा थी की शिवाजी की समाधि के तोरण पर उन्होंने इसे उत्कीर्ण करवाया था। सन् 1901 में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेशन में चरणदास ने यह गीत पुनः गाया। 1901 के बाद से कांग्रेस के प्रत्येक अधिवेशन में वन्दे मातरम् गाया जाने लगा।
तो दिग्विजय की नसीहत कांग्रेस के लिए वरदान ही है। अगर संगठन समृद्ध हुआ तो कांग्रेस अपने समृद्धि काल में लौटने का दावा कर पाएगी। क्वोरा साइट का चित्र और दिग्विजय सिंह 140 साल की कांग्रेस को जो दर्पण दिखा रहे हैं वह पार्टी की सेहत के लिए संजीवनी साबित हो सकता है…।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





