नए पुलिस महानिदेशक : पुरानी चुनौतियाँ

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मध्य प्रदेश पुलिस को साल 1982 में शुरू हुए पुलिस महानिदेशक सिस्टम के तहत 31 वां पुलिस चीफ मिल गया है. 1982 से पहले इस पद को पुलिस महानिरीक्षक कहा जाता था .पदनाम बदलने से कोई सिस्टम बहुत ज्यादा नहीं बदलता. पुलिस सिस्टम बदलता है राजनीतिक इच्छशक्ति और व्यक्ति के अपने इकबाल से . नए पुलिस महानिदेशक सुधीर सक्सेना के लिए सबसे बड़ी चुनौती पुलिस के इसी इकबाल को बुलंदियों पर ले जाने की है ,क्योंकि पुलिस का यही इकबाल हमेशा खतरे में रहता है .

प्रदेश में शीर्ष पदों पर नियुक्तियां नियमानुसार कम ,नेताओं की पसंद से ज्यादा होती हैं. वरिष्ठता की देखी ,अनदेखी भी अक्सर इस तह की नियुक्तियों में होती है लेकिन ये सब चूंकि सरकार का विशेषाधिकार होता है इसलिए कोई सरकार के हाथ नहीं पकड़ सकता .सुधीर सक्सेना भी इस पद पर अपनी योग्यता,वरिष्ठता के साथ ही राजनीतिक पसंद से पुलिस के चीफ बने हैं .उनके प्रतिद्वंदी राजीव टंडन भी थे किन्तु उनके पास राजनीतिक समर्थन नहीं था .बहरहाल सुधीर सक्सेना के सामने नए पुलिस चीफ के रूप में चुनौती पुलिस बल के अतीत की परम्पराओं के अनुशरण के साथ ही नयी परम्पराएं विकसित करने की भी है .

चार जिलों के एसपी रह चुके सुधीर सक्सेना मूलरूप से ग्वालियर के रहने वाले हैं।सक्सेना सीआईएसएफ के महानिदेशक पद का अतिरिक्त प्रभार संभाल चुके हैं। वे 2012 से 2014 तक मुख्यमंत्री के विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी भी रह चुके हैं रह चुके हैं।वे 2014 से 2016 तक इंटेलिजेंस चीफ रहे।मुख्यमंत्री कार्यालय में पूर्व में काम करने की उनकी विशेष योग्यता सुधीर सक्सेना के बहुत काम आयी .हालाँकि ग्वालियर से उनके सम्बन्ध की वजह से उन्हें केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की पसंद भी माना जा रहा है .

संयोग की बात है कि मुझे प्रदेश के लगभग सभी पुलिस महानिदेशकों से मिलने और उनकी कार्यशैली जानने का अवसर मिला है. अतीत के अनेक महानिदेशक मेरे बहुत निकट भी रहे और सभी ने अपने-अपने तरीके से प्रदेश की पुलिस को एक अलग पहचान देने की कोशिश की ,किन्तु पुलिस का इकबाल बुलंद करने में कुछ ही कामयाब हुए .पुलिस का इकबाल बुलंद करने के लिए पुलिस चीफ का अपना इकबाल बुलंद होना जरूरी है .जो पुलिस चीफ अपने राजनीतिक आकाओं के सामने तनकर खड़ा होना जानते थे उन्हें कामयाबी मिली और बाकी को नहीं .

नए पुलिस महानिदेशक को पहले पुलिस महानिदेशक बीपी दुबे और एच एम जोशी की विरासत से लेकर वीके मुखर्जी और ऍन नटराजन के सौजन्य को भी ध्यान में रखना होगा .इस सूची में बेहद सख्त,बेहद लिजलिजे और बेहद शुष्क अधिकारियों के नाम शामिल हैं .अब ये सुधीर सक्सेना पर निर्भर करता है कि वे कैसे पुलिस महानिदेशक बनना चाहते हैं .उनके पूर्ववर्ती विवेक जौहरी की अपनी पहचान थी,वे पुलिस की बर्दी का मान रखना जानते थे किन्तु पुलिस का इकबाल बनाये रखना उनके लिए भी टेढ़ी खीर साबित हुआ .इस टेढ़ी खीर को सीधा करना ही सफलता की गारंटी है .

मध्यप्रदेश की पुलिस कि सामने अब न दस्यु समस्या है और न पहले की तरह नक्सल समस्या.अब समस्याओं ने भी अपनी सूरत बदल ली है. अब पुलिस की समस्या नशे का कारोबार है,अवैध उत्खनन है,हनीट्रैप है,आर्थिक अपराध हैं ,राजनीतिक हस्तक्षेप का मुकाबला है .पुलिस यदि अपना इकबाल कायम न रख पायी तो ये अपराध और बढ़ेंगे,मध्य प्रदेश भी उड़ता पंजाब बन सकता है . हाल ही में राजधानी भोपाल में एक रेव पार्टी कि आरोपियों को पुलिस कि सिंघम ब्रांड अफसरों को किस तरह से ससम्मान घर छोड़ने जाना पड़ा ,ये भी नए पुलिस महानिदेशक को देखना होगा .

प्रदेश कि दो बड़े शहरों में पिछले दिनों लागू कीगयी पुलिस आयुक्त प्रणाली की सफलता की गारंटी और उसका विस्तार भी नए पुलिस महानिदेशक की जिम्मेदारी है .अभी तक ये प्रणाली बहुत कारगर साबित नहीं हुई है और इसकी असल वजह यही है कि नयी प्रणाली में पुलिस को अधिकार तो मिल गए हैं लेकिन पुलिस का इकबाल पहले की तरह आज भी राजनीतिक संरक्षण का मोहताज है .इसलिए जबतक पुलिस का इकबाल बुलंद नहीं होता ,कुछ भी नया नहीं हो सकता .

प्रदेश में पुलिस बल पहले से कम है. नयी नियुक्तियां,पदोन्नतियां ,पुलिस का आधुनिकीकरण और नवाचार ऐसे मुद्दे हैं जो हमेशा हर नए पुलिस चीफ कि लिए चुनौती कि रूप में आते हैं ,लेकिन ये प्राथमिकता सूची में अलग-अलग होते हैं .पुलिस मुख्यालय को बाबुओं का दफ्तर बनाने कि बजाय उसे जनता का दफ्तर बनाये बिना बात बनेगी नहीं .सुधीर सक्सेना जी को अगले साल ही प्रदेश में विधानसभा कि चुनाव भी करना हैं ,इस लिहाज से भी पुलिस बल को अभी से तैयार करना होगा .

ग्वालियर वाला होने कि नाते मै सुधीर सक्सेना की कामयाबी कि लिए शुभकामनाएं ही दे सकता हूँ ,लेकिन ये उन्हीं कि ऊपर निर्भर करता है कि वे क्या बनेंगे ?अयोध्यानाथ पाठक,डीसी जुगरान,स्वराज पुरी या सुधीर सक्सेना ? विकल्प खुले हैं ,चुनाव खुद उन्हें करना है ,प्रमाणित उन्हें करना है .क्योंकि मप्र कि एक विद्वान पुलिस अधिकारी स्वर्गीय जेएम कुरैशी कहते थे की निजाम बदलने से पुलिस भी बदलती है और उसका इकबाल भी .ये बात उन्होंने तब कही थी जब प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की चर्चा पहली बार चार दशक पहले शुरू हुई थी.