Tribal Festival Bhagoria शुरू, सप्ताह भर अंचल में रहेगी धूम!
झाबुआ से श्याम त्रिवेदी की रिपोर्ट
झाबुआ जिले में भगोरिया पर्व की शुरुआत शुक्रवार से हो गई। एक सप्ताह तक मनाए जाने वाला यह पारंपरिक उत्सव 17 मार्च तक चलेगा। आदिवासियों के पारंपरिक और सांस्कृतिक पर्व की पहचान देश विदेश में भी है। विदेशी पर्यटक इस पर्व को देखने और कैमरे में कैद करने हर साल बडी संख्या मे आते है। ग्रामीण जनों के साथ ही जिला प्रशासन ने भी इस पर्व को लेकर तैयारियां की है।
पारंपरिक पर्व भगोरिया इस वर्ष अंचल में शुक्रवार से शुरू हो गया। होली से सात दिन पहले जिस गांव, कस्बा और शहर में साप्ताहिक हाट बाजार होता है, उसी दिन उस जगह भगोरिया हाट (मेला) मनाया जाता है। भगोरिया के पहले दिन 11 मार्च को ग्राम भगोर, बेकल्दा, काली देवी, माण्डली में धूमधाम से भगोरिया पर्व मनाया गया।
भगोरिया में आदिवासी युवक-युवतियां रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधान पहनकर समूह में नाचते-गाते पहुंचे। पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल, मांदल, बांसुरी, थाली बजाते हुए उसकी धुन पर लोक नृत्य करते हुए भगोरिया में मस्ती करते दिखाई दिये। यहां मनोरंजन के लिए झूले, चकरी, खाने पीने की दुकानें सजी हुई थी। युवक-युवतियों को पान खिलाते और शरबत पिलाकर भगोरिया का आनंद लेते हुए देखा गया।
इन स्थानों पर भगोरिया
जिले मे एक सप्ताह तक 35 स्थानों भगोरिया पर्व हाट बाजार के साथ मनाया जाएगा। 12 मार्च को बामनिया, झकनावदा, मेघनगर, रानापुर, 13 मार्च को रायपुरिया, ढोल्यावाड, झाबुआ, काकनवानी, 14 मार्च को पेटलावद, मोहनकोट, कुन्दनपुर, रजना, रम्भापुर, मेडवा, 15 मार्च को पिटोल, थांदला, खरडू , तारखेड़ी, बरवेट, 16 मार्च को करवड, बोडायता, कल्याणपुरा, मदरानी, ढेकल, माछलिया, उमरकोट, 17 मार्च को अंतिम भगोरिया ग्राम पारा, समोई, हरिनगर, सारंगी, चैनपुरा में मनाया जाएगा।
ऐसे हुई भगोरिया की शुरुआत
साहित्यकार, शिक्षाविद ओर इतिहासकार डाॅ, केके त्रिवेदी ने भगोरिया उत्सव के बारे में बताया कि ग्राम भगोर से इसकी शुरुआत हुई थी। लगभग 750 साल पहले ग्राम भगोर में अकाल पडा था, तब यहां के लोग रतलाम जाकर बस गए थे। इसकी कहावत है कि भगोर भाग्या और रतलाम बस्या। यानी भगोर से भागे और रतलाम में बस गए। जब बारिश हुई तब लोग वापस भगोर आ गए। उस समय यहां के जो शासक थे उन्होंने इसे उत्सव के रूप में मनाने की शुरुआत की ओर भगोरिया पर्व प्रारंभ हुआ। अभी बड़ी संख्या में रोजी-रोटी के लिए जिले के आदिवासी, परिवार सहित मजदूरी के लिए पलायन कर गुजरात, राजस्थान के शहरों में जाते है और भगोरिया में शामिल होने के लिए सभी लौट आते हैं। अपने अपने क्षेत्र में भगोरिया पर्व मनाकर होली के बाद वापस काम पर चले जाते है।
भगोरिया को ब्रांड बनाएंगे
कलेक्टर सोमेश मिश्रा ने बताया कि भगोरिया का प्रारंभ झाबुआ उत्सव के साथ 10 मार्च को हुआ। साफ-सफाई पेयजल सहित अन्य व्यवस्थाओं के लिए विभागों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। भगोरिया से लौटने पर शाम को कोई घटना न हो कानून व्यवस्था बनाने के लिए निर्देशित किया गया है। प्रदेश व प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के लोगों को भी हमने आमंत्रित किया है। इसके लिए अलीराजपुर कलेक्टर से भी बात हो गई है। क्योंकि झाबुआ भी अलीराजपुर का ही हिस्सा रहा है। ज्यादा से ज्यादा इसमें लोगों की भागीदारी रहे ऐसा प्रयास रहेगा। इसे धीरे-धीरे एक ब्रांड के रूप में स्थापित करें। भविष्य में बाहरी सैलानी अधिक से अधिक आए। कोरोना के कारण दो साल से धंधा मंदा था। सांस्कृतिक पहलू के साथ आर्थिक पहलू को भी छुए।
शासन से नहीं मिला फंड
कलेक्टर ने यह भी बताया कि पहले ग्रामीणों के लिए प्रशासन खाने-पीने की व्यवस्था करता था। लेकिन, 2017 के बाद भगोरिया के लिए शासन से कोई फंड नहीं आया। हम आपसी प्रयास से झाबुआ उत्सव के लिए फंड एकत्रित कर रहे है। शासन को हमने पत्र भेजा है अगर फंड मिल जाएगा तो हम अपने स्तर से प्रयास करेंगे। बाकी हम अलग से नहीं कर पाएंगे। फंड मिल जाएगा तो पूरी तैयारी करेंगे।
तीर-कमान पर प्रतिबंध
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक आनंद सिंह वास्केल ने कहा कि भगोरिया पर्व को लेकर पुलिस पूरी तरह मुस्तैद है। हर अनुभाग में अनुविभागीय अधिकारी पुलिस (एसडीओपी) इसका प्रभारी रहेगा। सहायक के रूप में थाना प्रभारी रहेगा। असामाजिक तत्वों ओर अवैध शराब बिक्री पर भी कार्यवाही की जाएगी। भगोरिया में तीर-कमान, फालिया लेकर आना प्रतिबंधित रहेगा। अगर कोई लेकर आता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे।