सम्मान के साथ आए और सम्मान संग विदा हुए सुहास …

500
इन दिनों मध्यप्रदेश की राजनीति में यदि सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, तो वह है सुहास भगत की संघ में वापसी की। इस बदलाव को अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा है। कोई संघ में वापसी के नजरिए से देख रहा है, तो कोई प्रदेश संगठन महामंत्री पद से हटाए जाने के नजरिए से देख रहा है। यह ठीक उसी तरह है जैसे आधा पानी से भरा कांच का गिलास मेज पर रखा हो। और सामने बैठे दो लोगों का नजरिया अलग-अलग हो।
एक कहे कि आधा गिलास खाली है और दूसरा कहे कि आधा गिलास भरा है। और यह नजरिया ही व्यक्ति की मानसिकता को सकारात्मक और नकारात्मक के रूप में परिभाषित करता है। और मनोचिकित्सक की सलाह यही होती है कि व्यक्ति को सकारात्मक नज़रिए से जीवन जीने की आदत डालनी चाहिए। तो करीब छह साल तक संघ से आकर प्रदेश संगठन महामंत्री का दायित्व संभालने वाले सुहास के जाने को सकारात्मक नजरिए से देखने में आखिर क्या बुराई है? जबकि सभी को यह मालूम है कि प्रदेश संगठन महामंत्री का पद स्थायी नहीं है।
सभी को पता है कि कम से कम तीन प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल को सुहास ने देखा है। ऐसे में छह साल का लंबा कार्यकाल, जिसमें सुहास भगत पार्टी के लिए भाग्यशाली साबित हुए कि पंद्रह साल बाद यदि मार्जिन से भाजपा सरकार से बाहर हुई, तो पंद्रह महीने बाद ही पार्टी की सरकार में वापसी भी हो गई। और क्या इसमें सुहास भगत की संगठनात्मक क्षमता को भी कुछ क्रेडिट नहीं जाता कि 28 विधानसभा उपचुनाव में से 19 सीटें भाजपा के खाते में आईं। और अंदरूनी परिस्थितियों की वजह से भले ही उपचुनाव में दमोह विधानसभा सीट भाजपा को खोनी पड़ी हो, लेकिन इसके बाद हुए तीन विधानसभा उपचुनाव और एक लोकसभा उपचुनाव में से पार्टी के खाते में दो विधानसभा और लोकसभा सीट आई।
क्या इसे सुहास की उपलब्धि नहीं माना जाना चाहिए कि संगठन को उम्रदराज से युवा बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। एक बार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने कहा था कि आगामी दस साल की भाजपा तैयार हो गई है। मतलब यही कि युवा मंडल अध्यक्ष और युवा भाजपा जिलाध्यक्ष आगामी दस साल तक संगठन को मजबूत रख सकते हैं। मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य बना जहां बीजेपी के सभी मंडल अध्यक्ष 40 वर्ष से कम आयु के हैं।
तो जिलाध्यक्ष भी युवा ही बनाए गए। यह ऊर्जावान चेहरे अब पार्टी को मजबूत कर मिशन-2023 फतह करने की तैयारी में जुट गए हैं।संगठनात्मक नियुक्तियों में उन्होंने विधायकों के एकाधिकार को समाप्त किया और योग्यता व मेहनत को स्थान दिलाया। जिसके पीछे संगठन में योग्य, कर्मठ कार्यकर्ताओं को स्थान देने की मंशा थी। जिसमें वह सफल रहीं। सुहास की कार्यशैली अपनी थी और संघ की कार्यपद्धति से मेल खाती थी।
जब-जब प्रदेश संगठन महामंत्री ने अपने इर्द-गिर्द सत्ता को नतमस्तक होने की महत्वाकांक्षा पाली, तब-तब पार्टी में संघर्ष की नौबत आई। और सत्ता-संगठन के बीच खींचतान की नौबत बनी। जब-जब प्रदेश संगठन महामंत्री ने दरबार लगाने की परंपरा शुरू की, तब-तब प्रदेश अध्यक्ष के साथ अनबन जैसी स्थितियां पैदा हुईं और आपसी संघर्ष की स्थितियां बनती नजर आईं।
इन सबसे परे, सुहास संघ की लकीर पर चलकर अनुशासित नजर आए और लो प्रोफाइल रहते हुए संगठन की मजबूती में जुटे रहे। शायद यही वजह है कि कांग्रेस से भाजपा में आए सिंधिया, उनके समर्थक और अन्य विधायक पार्टी विचारधारा से ओतप्रोत होकर भाजपाई बनने में असहज नहीं हो सके। यह सुहास भगत की बौद्धिक क्षमता का ही परिणाम माना जा सकता है। और यही वजह है कि उनकी कार्यशैली से कुछ लोगों को संतुष्टि न मिली हो, लेकिन बहुतायत में पार्टी कार्यकर्ता खुश ही रहे।
शायद यही वजह है कि संघ ने सम्मान के साथ सुहास भगत को भाजपा में भेजा था। और सम्मान संग ही वापस संघ में बुला लिया। यानि सम्मान संग संघ से विदाई दी और छह साल बाद सम्मान संग अगवानी भी की। सुहास भगत पर ऐसे कोई आरोप नहीं लग पाए, जो उन्हें दागी बना पाते। सामान्यतः राजनीति को काजल की कोठरी माना जाता है, लेकिन सुहास भगत यहां बेदाग रहे।
यही वजह है कि  सुहास भगत को संघ के मध्य क्षेत्र का बौद्धिक प्रमुख नियुक्त किया गया है।  भगत का मुख्यालय जबलपुर होगा। और पार्टी युवा प्रदेश संगठन महामंत्री के साथ युवा टीम की मेहनत और सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाकर मिशन-2023 में विजय का वरण करेगी। और सुहास भगत की जीवन यात्रा हमेशा इसी तरह सम्मान संग ही मंजिल तक पहुंचेगी, भले ही पड़ाव बदलते रहें।