Kissa-A-IAS: कोविड 19 पर लिखी किताब को लेकर इन दिनों चर्चा में है MP का यह IAS अधिकारी
भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में मध्यप्रदेश केडर के 2009 बैच के अधिकारी तरुण पिथोड़े आजकल अपनी नई किताब ‘द बैटल अगेंस्ट कोविड- डायरी ऑफ ए ब्यूरोक्रेट’ (The Battle Against Covid- Diary of a Bureaucrat) को लेकर पूरे देश में चर्चा में हैं। इस किताब में कोविड महामारी से हुई तबाही का चित्रण किया है। कोविड के खिलाफ लड़ाई में पिथोड़े ने अपने अनुभवों, संघर्षों और विभिन्न राज्यों में अपने सहयोगियों के जरिए पहली और दूसरी लहर के दौरान प्रबंधन करने वालों के अनुभवों को बताया है।
उन्होंने इस किताब में जानलेवा वायरस को समझने और इसके प्रसार को रोकने के लिए विभिन्न अधिकारियों द्वारा बनाई गई रणनीति की रूपरेखा का भी खुलासा किया है। इस किताब में उन प्रवासी कामगारों के कष्टों का भी विवरण है, जिन्होंने घर वापसी के लिए हजारों किलोमीटर की दूरी पैदल तय की। इस किताब में डॉक्टरों, पुलिस अधिकारियों, प्रशासकों और नागरिकों की वीरता की कहानियां भी है, जिन्होंने लोगों को बचाने में अपनी जान की बाजी लगा दी।
तरुण पिथोड़े ने एक प्रशासक और एक इंसान के रूप में कोविड संकट से सीखे अपने अनुभवों को साझा किया है। दरअसल, ये किताब परदे के पीछे कोविड के खिलाफ लड़ाई का अमूल्य रिकॉर्ड है कि कैसे नौकरशाही ने हमारे जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित करने वाले संकट का प्रबंधन किया है।
इस किताब के लेखक तरुण पिथोड़े दरअसल एक संवेदनशील व्यक्ति है। वे लिखकर अपनी भावनाएं व्यक्त करते रहते हैं। वे पहले भी एक किताब ‘I Am Possible’ (आईएम पॉसिबल) लिख चुके हैं।
तरुण पिथोड़े की कहानी आज की युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा के रूप में सामने हैं। तरुण की कहानी एक ऐसे युवा इंजीनियर की है जो अखिल भारतीय स्तर की IES परीक्षा में तो पहले अटेम्प्ट में ही पूरे देश में टॉपर रहता है लेकिन IAS की परीक्षा में सफलता चौथे और आखरी अटेम्प्ट में मिलती है। सफलता भी उल्लेखनीय इस माने में की, वह देश भर में सातवी रैंक हासिल करता है और उसे अपनी होम स्टेट यानी मध्य प्रदेश में ही सेवा करने का अवसर मिलता है।
इस कहानी का एक महत्वपूर्ण बिंदु है कि तरुण युवा मध्यम वर्गीय परिवार का है और बचपन से उसका सपना कलेक्टर बनना है लेकिन जैसे ही BE पास करता है और उसकी नौकरी एक बड़ी प्राइवेट कंपनी में लग जाती है तो वह उसे कैरियर की शुरूआत मान, छोड़ता नहीं है। इसी बीच उसकी नौकरी सेंट्रल रेलवे में टेलीकॉम इंजीनियर के रूप में लग जाती है और वहीं से वह नौकरी के साथ IAS की तैयारी शुरू करता है लेकिन जब दो साल तक सफलता हासिल नहीं होती है तो वह तीसरे साल नौकरी तक से इस्तीफा दे देता है लेकिन तीसरे साल भी जब सफलता नहीं मिलती है तो वह फिर से नौकरी ज्वाइन करता है।
एक बार तो उसे ऐसा लगता है कि
कलेक्टर बनने का उसका सपना पूरा नहीं हो सकेगा लेकिन तभी परिवार और मित्रों के मोटिवेशन से वह नौकरी में रहने के साथ-साथ चौथी और अंतिम बार पूरी ताकत से तैयारी करता है और इस बार अपने लक्ष्य को हासिल कर ही दम लेता है।
I am Possible के लेखक तरुण ने वैसे तो इस किताब को एक छोटे से शहर के रहने वाले एक युवा की प्रेरक कहानी के रूप में प्रोजेक्ट किया है लेकिन जब आप गौर से पढ़ेंगे तो आप महसूस करेंगे कि इस कहानी के अंश कहीं ना कहीं स्वयं लेखक से जुड़े लगते हैं। बेशक कहानी तरुण के दोस्तों की हो सकती है और इसे प्रस्तुत करने का अंदाज भी जुदा हो सकता है लेकिन यह तरुण के अंतर्मन की कहानी है।
तरुण के बारे में बताया गया है कि जब बचपन में वे अपने कस्बे की सड़कों की बदहाली देखते थे तो उनके मन में इन सड़कों को लेकर एक कसक थी।
सड़के कैसे ठीक हो,रह रह कर यह विचार आता था तब किसी ने उन्हें बताया था कि जिला कलेक्टर सड़के ठीक करवा सकते है, शायद उन्होंने तभी से यह सपना देखना शुरू कर दिया था कि मैं भी बड़ा होकर कलेक्टर बनूंगा।
मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में परासिया में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में और पले तरुण के पिताजी वेस्टर्न कोलफील्ड्स के कार्यालय में अधीक्षक थे। बताते हैं कि उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत खदानों में मजदूर के रूप में की थी और अपने परिवार को इस तरह संस्कारित किया कि उनका बेटा IAS बना।
तरूण ने परासिया के केंद्रीय विद्यालय में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद भोपाल के मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (MACT) भोपाल से इलेक्ट्रॉनिक्स विषय में BE किया।
तरुण बताते हैं कि मैं आठवीं तक एवरेज स्टूडेंट था लेकिन मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जीवन में पढ़ाई ही सब कुछ है। अगर पढ़ाई नहीं की तो कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता इसलिए नाइंथ में मुझे स्पार्क मिला और इसके बाद जीवन में ऐसा बदलाव आया कि टेंथ में मैंने काफी अच्छे मार्क्स प्राप्त किए और सब दोस्तो को पीछे छोड़ दिया।
असल में बचपन में सपना ही कलेक्टर बनने का देखा था लेकिन यह बाद में रियलाइज हुआ कि पढ़ाई करके ही कलेक्टर बन सकते है और कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि तरुण IAS तो बनना चाहते थे लेकिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई तक तरुण को यह नहीं पता था कि IAS कैसे बना जाता है? उनके एक टीचर ने उन्हें बताया कि देश और दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में एक है IAS और इसे पास करने के लिए UPSC के माध्यम से एक विशिष्ट परीक्षा देना होती है।
तरुण बताते है कि IES में सफल होने के बाद GE इंडिया में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में कैरियर की शुरुआत की। कुछ माह बाद ही सेंट्रल रेलवे में सहायक सिगनल एंड टेलीकॉम Engineer के रूप में सेवाएं दी। वहां पर भी तरुण द्वारा किए गए कुछ प्रयोगों को काफी सराहा गया लेकिन जीवन का गोल तो IAS बनना था।
रेलवे में नौकरी करते हुए IAS की तैयारी की और मैंस एग्जाम में क्लियर करने के बाद भी लगातार दो साल तक जब इंटरव्यू में सफल नहीं हो सके तो नौकरी से इस्तीफा दे दिया। अगले साल फिर पूरी तैयारी की लेकिन शायद अभी भी सफलता दूर ही थी।
तरुण बताते हैं कि लगातार 3 साल तक इंटरव्यू में सफलता हासिल नहीं हो सकी और एक बार तो लगा कि मेरा सपना पूरा नहीं हो पाएगा तो अपने भविष्य को सुरक्षित रखने की दृष्टि से वापस रेलवे की नोकरी ज्वाइन कर ली। (तरुण कहते है कि मैं रेलवे के उन अधिकारियों का शुक्र गुजार हूं जिन्होंने मेरा इस्तीफा मंजूर नहीं किया था।)
तरुण बताते है कि मन में अभी भी कसक थी कि मुझे तो IAS बनना है। इन्हीं क्षणों में परिवार ने मुझे फिर मोटिवेट किया और कहा कि अभी एक अटेम्प्ट और बाकी है, एक बार और प्रयास करना चाहिए।
उसी मोटिवेशन से मैंने नौकरी में रहते हुए पूरे जी जान से चौथे अटेम्प्ट की तैयारी की और मुख्य परीक्षा से दो माह पहले छुट्टी ली।
और आखिर इस चौथे और अंतिम अटेम्प्ट में मेरा बचपन का सपना पूरा हुआ। पूरे भारत में मेरी सातवी रैंक आई।इसका परिणाम या यू कहे लाभ यह हुआ कि मुझे अपना होम स्टेट यानी मध्य प्रदेश में सेवा करने का मौका मिला।
तरुण मानते है कि IAS की एग्जाम अलग तरीके की होती है। उसमे राइटिंग स्किल के साथ डिफरेंट एटीट्यूड़ और परफेक्शन जरुरी होता है।
अपने प्रशासकीय कार्यकाल के दौरान वे राजगढ़, सीहोर,बैतूल और भोपाल जिले के कलेक्टर के के रूप में सफल पारी खेलने के बाद वे वर्तमान में राज्य भंडार गृह और लॉजिस्टिक निगम के एमडी हैं।
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