Flashbak: इंदौर में परिवार परामर्श केंद्र- अभिनव क़दम

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6 अगस्त, 1994 को DIG इंदौर का पद ग्रहण करने के बाद धीरे-धीरे मेरे कार्यालय में जनता के सभी वर्गों का आना बढ़ता चला गया। प्रारंभिक दिनों में ही सोनिया नाम की एक महिला आयी जो एक NGO चलाती थीं और केंद्र सरकार से उन्हें कुछ अनुदान प्राप्त होता था।वे घरेलू हिंसा के लिए कार्य करती थी।उन्होंने बताया कि एक महिला ने अपने पति की शिकायत की है परन्तु उसका पति बुलाने पर नहीं आ रहा है।वे मुझसे उस व्यक्ति को उनके समक्ष लाये जाने के लिए पुलिस सहायता माँग रहीं थीं।इसमें मैंने उनकी सहायता कर दी।फिर भी मुझे यह सुनकर अजीब लगा कि यह उनका पूरे वर्ष भर में केवल दूसरा प्रकरण था।

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सोनिया का प्रयास महिलाओं के उत्पीड़न समाप्ति के लिए लगभग नगण्य था। लेकिन उससे मिलकर मेरा मन काफ़ी उद्वेलित हो गया और इस व्यापक समस्या का, जिसकी शिकार लगभग एक तिहाई विवाहित महिला हैं, मैं गहन चिंतन और मनन करने लगा।मुझे ज्ञात था कि घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला सामान्यतः थाने नहीं जातीं हैं। यदि साहस कर वह थाने जाती भी है तो वहाँ असंवेदनशील पुलिस ( नब्बे के दशक में) उसकी शिकायत सुनती ही नहीं है।यदि किसी प्रकार प्रकरण पंजीबद्ध भी हो जाता है तो न्यायालय में वर्षों तक अपने ही पति के विरुद्ध उसी के घर में रहते हुए वह उसी के विरुद्ध कैसे मुक़दमा लड़ सकती है।

 

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स्पष्ट है कि इस समस्या का क़ानून में कोई निदान नहीं है।मैंने इस समस्या पर पुलिस, समाज और न्यायपालिका के दृष्टिकोण से काफ़ी विचार किया है और अंत में मैंने अभी तक नहीं सुने गए एक अभिनव प्रयोग करने का निर्णय लिया।मेरी परिकल्पना थी कि महिला परामर्शदात्रियों का एक दल थाना परिसर में ही पृथक रूप से बैठ कर पीड़ित महिलाओं से शिकायत प्राप्त करे और पुलिस के माध्यम से उसके पति और परिवार जनों को बुलाकर उन्हें सशक्त मनोवैज्ञानिक परामर्श प्रदान करे।पति द्वारा घरेलू हिंसा की जाना एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है जिसका इलाज भी मनोवैज्ञानिक ही हो सकता है। मुझे इस योजना में अपनी ही पुलिस के अधीनस्थ और वरिष्ठ दोनों स्तरों के अनेक अधिकारियों के प्रतिरोध का पूरा अंदेशा था। निचली न्यायपालिका कुछ लोग भी क़ानून के अत्यधिक रूढ़िवादी व्याख्या के कारण इसके विरुद्ध हो सकती थी।

इन अनेक आशंकाओं के होते हुए भी मैंने कुछ प्राथमिक तैयारियों के साथ जनवरी 1995 में दिलजीत कौर और कुछ अन्य महिला स्वयंसेवियों के सहयोग से प्रायोगिक स्तर पर प्रथम महिला परामर्श केंद्र की स्थापना सेंट्रल कोतवाली के पास महिला थाने में की। इस व्यवस्था के अंतर्गत महिला थाने में पृथक कक्ष बनाया गया जहाँ प्रतिदिन क्रमानुसार महिला संगठनों की काउंसलर थानों में उपस्थित होती थीं।पीड़ित महिला के थाने पहुँचने पर उसके प्रकरण को एक रजिस्टर में लिखा जाता था तथा परामर्शदात्री थाने के माध्यम से नोटिस जारी करवा कर संबंधित परिवार जनों को बुलाती थी। उनके उपस्थित होने पर समस्या के सभी पहलुओं पर परिवार के साथ विचार विमर्श होता था तथा मनोवैज्ञानिक अवरोध तोड़े जाते थे। सफलतापूर्वक समझौता होने के बाद भी परिवार को कई बार केंद्र पर बुलाया जाता था। प्रारंभ में कुछ ही प्रकरण आए लेकिन धीरे धीरे प्रकरणों की संख्या बढ़ती गई।

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तत्कालीन मेरे पूर्व अधिकारी गृह सचिव श्री विजय सिंह और मेरे पुलिस महानिरीक्षक श्री जी एस माथुर की सहमति से अब मैं इस कार्य में तेज़ी से आगे बढ़ गया। इंदौर की क़ानून व्यवस्था पुलिस अधीक्षक रुस्तम सिंह बख़ूबी संभाल रहे थे।इस कारण मैं इस अभियान में पूरी शक्ति से लग गया।नगर की अनेक महिला संस्थाओं जैसे महिला एवं बाल जाग्रति मंच, आल इंडिया महिला महासभा, महिला चेतना मंच आदि संगठन तथा अनेक स्वतंत्र सामाजिक और राजनीतिक महिलाओं को मैंने परामर्श केंद्र का अभिनव मंच दिया।मैंने उनकी नियमित बैठक लेना शुरू किया और उन्हें इसके लिए प्रोत्साहन और ट्रेनिंग देना शुरू किया।

उनके प्रशिक्षण के लिए मैंने न्यायिक, मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्री और चिकित्सकों के द्वारा उन्हें सेमिनार में व्याख्यान दिलवाये।प्रसिद्ध चिकित्सक एवं समाजसेवी डॉक्टर सविता इनामदार ( जो बाद में राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष बनीं) का सक्रिय सहयोग रहा।महिला परामर्शदात्री और अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों की संयुक्त बैठकें भी आयोजित की जिससे आपसी तालमेल ठीक किया जा सके। कमिश्नर श्री ए के सिंह, नए आए पुलिस महानिरीक्षक स्वराज पुरी, पुलिस अधीक्षक देवेंद्र सिंह सेंगर और नगर पुलिस अधीक्षक रमन सिंह सिकरवार, ASP वरुण कपूर तथा अनेक सकारात्मक पुलिस अधिकारियों के सक्रिय सहयोग से अक्टूबर 1995 तक महिला थाने के अतिरिक्त पंढरीनाथ, नवलखा पुलिस चौकी, सदर बाज़ार, चंदननगर, परदेशीपुरा, मल्हारंज और एम आई जी थानों में इनकी स्थापना हुई। इन आठ केंद्रों पर कार्य करने वाली महिला परामर्शदात्रियों की संख्या सौ तक पहुँच गई। मेरी रेंज के धार झाबुआ, खरगौन और खंडवा ज़िलों में भी परिवार परामर्श केंद्र खुल गये।

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इस अभियान की सफलता के लिए मुझे तत्कालीन मीडिया का अभूतपूर्व सहयोग प्राप्त हुआ जिसके बिना यह कार्यक्रम संभव ही नहीं था। उस समय नईदुनिया के बराबर तेज़ी से उभरता हुआ दैनिक भास्कर से इस अभियान में विशेष रूप से सक्रिय सहयोग मिला।इसके पत्रकार ( वर्तमान में अमर उजाला के संपादक और मेरे मित्र) संजय पांडे ने इस अभियान पर अनेक समाचार और लेख लिखकर इसे बहुप्रचारित किया।इससे जहाँ पीड़ित महिलाओं को इन केंद्रों की जानकारी प्राप्त हुई वहीं परामर्शदात्रियों का मनोबल बहुत ऊँचा हो गया।

उच्च न्यायालय इंदौर खंडपीठ के संवेदनशील जस्टिस श्री आर डी शुक्ला का मुझ पर स्नेह था तथा इस योजना से उन्हें विशेष लगाव हो गया।अनेक कार्यक्रमों में उपस्थित होकर उन्होंने परामर्श की प्रक्रिया के समर्थन में अपने विचार व्यक्त किए। इससे परामर्श केंद्रों के प्रति निचली न्यायपालिका और पुलिस अधिकारियों के दृष्टिकोण में भी आमूलचूल परिवर्तन आया।तत्कालीन पुलिस महानिदेशक श्री सरत चन्द्र ने स्वयं इंदौर आकर इन प्रयासों को निकट से देखकर सराहना की।

Dr. Swati Tiwari

सुप्रसिद्ध लेखिका डॉ स्वाति तिवारी ने इस विषय पर एक बहुत ही मार्मिक फिल्म बनाई जिसका प्रसारण लोकल चैनल पर व्यापक रूप से हुआ। वीडियो फ़िल्में बनाकर इन केंद्रों की जानकारी निर्धन बस्तियों में दिखाई गई और प्रताड़ित महिलाओं को इन केंद्रों में आने के लिए प्रोत्साहित किया गया। जनसंपर्क अधिकारी श्री भूपेन्द्र गौतम तथा पत्रकार श्री मधुकर द्विवेदी ने दूरदर्शन की सहायता से एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनायी जिससे इसकी जानकारी अन्य स्थानों पर पहुँच सकी। सिटी केबल इंदौर द्वारा इस संबंध में कार्यक्रम प्रसारित किए गए।

एक वर्ष में इन केंद्रों में कुल 1057 महिलाओं ने अपनी शिकायतें दर्ज की जिनमे 994 मामलों में सफलता पूर्वक पारिवारिक शांति स्थापित की गई। अन्य प्रकरणों में नियमित वैधानिक कार्रवाई का सहारा लेना पड़ा। परिवार के सफल परामर्श के उपरांत यह अत्यंत आवश्यक हो गया कि उन परिवारों का लगातार फालोअप किया जाए तथा यह देखा जाए कि परिवार की महिलाओं को पुनः प्रताड़ना प्रारंभ न हो जाए। इसके लिए पृथक से सभी क्षेत्रों में नगर सुरक्षा समितियों का बड़े स्तर पर निर्माण किया गया जो अपने अन्य कार्यों के अतिरिक्त परिवारों के फालोअप का कार्य भी करती थीं। कुछ प्रकरणों में मैंने भी घरों में जाकर देखा तो कुछ महिलाएँ तो अपनी ख़ुशी में मेरे समक्ष रोने लगती थी।

पुलिस महानिदेशक श्री DP खन्ना ने इस अभिनव प्रयोग को प्रदेश के अन्य ज़िलों में प्रारंभ करने के निर्देश जारी किए।अपनी DIG इंदौर की लगभग साढ़े तीन वर्ष की सेवा काल में सामुदायिक पुलिसिंग के मैंने कुछ अन्य प्रयोग भी किये जिनका फिर कभी वर्णन करूँगा। इन परामर्श केंद्रों के सुदृढ़ ढंग से स्थापित हो जाने से एक विशेष आत्म संतुष्टि का अनुभव हुआ था। कुछ वर्षों के बाद ब्यूरो ऑफ़ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट, भारत सरकार की ओर से 29 मई, 2003 को मुझे परिवार परामर्श केंद्र और अन्य सामुदायिक पुलिसिंग के संबंध में एक मॉडल तैयार करने के लिए एक विशेष कार्यदल में आमंत्रित किया गया और इसके द्वारा पूरे देश के लिए एक नया मॉडल तैयार किया गया। इस सफलता के पीछे कहीं न कहीं उस सोनिया नामक महिला का भी योगदान था जिसने पहली बार मेरे मस्तिष्क में इस परिकल्पना की सकारात्मक किरण को प्रज्जवलित करने का कार्य किया था।