Law and Justice: उच्च न्यायालयों में हिंदी में कामकाज की प्रगति बेहद धीमी!

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Law and Justice: उच्च न्यायालयों में हिंदी में कामकाज की प्रगति बेहद धीमी

यह लगभग नौ साल पुरानी बात है। इंदौर में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ था। इस समारोह की अध्यक्षता तत्कालीन न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी ने की थी। विषय भी दिलचस्प व विचारोत्तेजक था। विषय था ‘विधि और न्याय के क्षेत्र में राष्ट्रीय भाषा।’ जेके माहेश्वरी (उस समय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में न्यायाधीश होकर इंदौर में पदस्थ थे तथा वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में पदस्थ है) ने तथ्यों एवं विभिन्न विधि आयोगों की रिपोर्ट के साथ इस बात की पुष्टि की थी कि न्याय क्षेत्र में राष्ट्रीय भाषा का उपयोग किया जाना चाहिए।

अन्य सत्रों में न्यायमूर्ति आईएस श्रीवास्तव, वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर, वरिष्ठ अधिवक्ता टीएन सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता चंपालाल यादव, अनिल त्रिवेदी और मैं स्वयं वक्ता के रूप में उपस्थित थे। वर्तमान में इंदौर उच्च न्यायालय के अतिरिक्त महाधिवक्ता पुष्यमित्र भार्गव इस समारोह के आयोजकों में सम्मिलित थे। आज भी यह ऐसा विषय है जिस पर खुलकर विचार विमर्श जरूरी है।

Law and Justice: उच्च न्यायालयों में हिंदी में कामकाज की प्रगति बेहद धीमी!

गर्व का विषय है कि न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी आज सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति के रूप में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। इस कारण यह विश्वास है कि इस दिशा में न्यायमूर्ति माहेश्वरी विधि और न्याय के क्षेत्र में राष्ट्रभाषा हिन्दी को किस प्रकार प्रभावी बनाया जा सकता है, इस दिशा में यथासंभव अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करेंगे। न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी मध्यप्रदेश के होने के साथ ही दोनों भाषाओं पर समान प्रभुत्व है। वे एक हिन्दी प्रेमी भी है तथा हिन्दी भाषा उनकी अपनी मातृभाषा भी है। इस कारण सर्वोच्च न्यायालय में हिन्दी में फैसलों तथा कार्यवाही हिन्दी में किस प्रकार संभव है, इस पर निश्चित ही वे विचार करेंगे।

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यह बात संतोष प्रदान करती है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस दिशा में प्रभावी कार्यवाही की है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी वेबसाईट पर अपने निर्णयों के अनुवाद नौ भाषाओं में उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। ये निर्णय हिन्दी, मराठी, कन्नड़, तमिल, पंजाबी, गुजराती, मलयालम और बंगाली भाषाओं में उपलब्ध होगे। सर्वोच्च न्यायालय का यह एक महत्वपूर्ण कदम है। इस कार्य में सर्वोच्च न्यायालय एआय ट्रस्ट की मदद लेगा जिससे निर्णयों के स्थानीय भाषा में उपलब्धता आसान और शीघ्र होगी। गुजराती भाषा में गुजरात उच्च न्यायालय के अनेक फैसलों का अनुवाद भी गूगल सर्च एवं उनकी साइट पर उपलब्ध है। इस संबंध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सन् 2020 में अपने निर्णयों में संशोधन भी किया है।

Law and Justice: उच्च न्यायालयों में हिंदी में कामकाज की प्रगति बेहद धीमी!

इलाहाबाद हाईकोर्ट के कई न्यायाधीशों ने हिन्दी में निर्णय दिए हैं। एक न्यायाधीश तो संस्कृत में भी निर्णय दे चुके हैं। यहां फैसलों का हिन्दी अनुवाद भी उपलब्ध करवाया जाता है। इस संबंध में सन 2019 में इलाहाबाद निर्णयों का हिन्दी आदेश का अनुवाद (प्रक्रिया) नियम 2019 लागू किया गया। इसके लाभ ही राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की सहमति के उपरांत संविधान 348 (2) के अंतर्गत अंग्रेजी के साथ हिन्दी के उपयोग के लिए अनुमति प्रदान की गई है। निश्चित ही इससे इन राज्यों के उच्च न्यायालयों में हिन्दी के प्रयोग में वृद्धि हुई है।

हिन्दी के प्रयोग को न्यायालयों में बढ़ाने के संबंध में 18वें लाॅ कमिशन की राय यह रही है कि सर्वोच्च न्यायालय में हिन्दी को अनिवार्य भाषा बनाया जाना उचित नहीं होगा। उसका यह भी कहना था कि सामाजिक संरचना को दृष्टिगत रखते हुए न्यायपालिका पर इस संबंध में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय हिन्दी को सर्वोच्च न्यायालय में लागू करने और राज्यों के उच्च न्यायालय में स्थानीय भाषा के उपयोग के संबंध में प्रस्तुत एक याचिका को निरस्त कर चुका है।

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लेकिन वैयक्तिक कानून और न्याय के संबंध में बनाई गई संसदीय समिति का कहना है कि केन्द्रीय सरकार को हिन्दी एवं स्थानीय भाषाओं को सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय में लागू करने के लिए न्यायपालिका से सलाह करने की आवश्यकता नहीं है। अनुच्छेद 348 के साथ ही राष्ट्रभाष अधिनियम की धारा 7-क को एक साथ पढ़ने से यह स्पष्ट है कि न्यायालयों के लिए हिन्दी भाषा के वैकल्पिक प्रयोग का प्रावधान केन्द्रीय सरकार द्वारा किया जा सकता है। इसके लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता भी नहीं है।