विजय सिंह जैसा IAS अधिकारी शायद कोई नहीं!

उनके साथ काम कर चुके पूर्व IAS एस एस उप्पल शेयर कर रहे हैं अपने अनुभव

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मैं वर्ष 1990 से 1993 तक नगर निगम इंदौर में प्रशासक के पद पर कार्यरत रहा। ये वही समय था जब इंदौर के विकास का खाका तैयार हो रहा था। इसी अवधि में आयुक्त इंदौर संभाग विजय सिंह थे। वे जितने सख्त अधिकारी थे, उतने भी सहृदय भी थे। मेरे प्रशासक कार्यकाल में उनके साथ कुछ अविस्मरणीय अनुभव रहे।

पहला अनुभव तो ये था कि इंदौर शहर के एमटीएच कम्पाउंड में शासकीय चिकित्सालय का एक भवन था जो बेहद जीर्णशीर्ण अवस्था में था। विजय सिंह ने नगर निगम को इसे गिराकर इस भूमि पर व्यावसायिक भवन बनाने के निर्देश दिए। राज्य शासन ने इस प्रोजेक्ट के लिए आयुक्त इंदौर संभाग इंदौर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन भी किया। इसमें कलेक्टर इंदौर और प्रशासक नगर निगम इंदौर को सदस्य नामांकित किया गया।

व्यवसायिक भवन के निर्माण के लिए टेंडर जारी किए गए। टेंडर में प्राप्त ऑफर में जिस ठेकेदार ने न्यूनतम दरें प्रस्तुत की थी, उसकी कार्यप्रणाली संतोषजनक नहीं थी। क्योंकि, पूर्व में उसी ठेकेदार ने नगर निगम के कई निर्माण कार्य न्यूनतम दरों पर प्राप्त कर उन्हें अपूर्ण छोड़ा हुआ था। अतः हमारे द्वारा यह टेंडर द्वितीय न्यूनतम निविदाकर्ता (सेकंड लोवेस्ट) को दिए जाने का प्रस्ताव तैयार कर आयुक्त के पास भेजा गया। आयुक्त ने शासन द्वारा गठित समिति के समक्ष इस प्रकरण को प्रस्तुत करने के आदेश दिए। समिति की बैठक से पहले हमारे द्वारा बैठक में प्रस्तुत किए जाने वाले प्रस्ताव के प्रारूप को तत्कालीन कलेक्टर को भी अवलोकनार्थ प्रस्तुत किया गया। जब उन्होंने यह देखा कि हमने द्वितीय न्यूनतम निविदाकर्ता को यह निर्माण कार्य आवंटित करने का प्रस्ताव दिया गया है, तो कलेक्टर ने बिना किसी टिप्पणी के प्रस्ताव का प्रारूप हमें वापस कर दिया।

बैठक की नियम तिथि पर नियत समय से आधा घंटा पूर्व मैं और आयुक्त नगर निगम शरद वेद संभाग आयुक्त कार्यालय में उपस्थित हो गए। साहब ने हमें नियत समय से 15 मिनिट पूर्व अपने कक्ष में बुलाकर पूछा कि प्रारूप प्रस्ताव पर कलेक्टर का क्या मत है। हमने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत करा दिया। हम लोग बैठक के लिए आयुक्त के सामने चुप बैठे रहे। जैसे ही घड़ी में नियत समय दर्शाया, उसी समय आयुक्त ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए और कलेक्टर की प्रतीक्षा करने लगे। कलेक्टर लगभग 15 मिनिट देर से बैठक में आए और उन्होंने बताया कि वे कानून एवं व्यवस्था में व्यस्त हो गए थे। इसलिए बैठक में आने में देर हुई।

इस पर आयुक्त ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और कलेक्टर से इंग्लिश में कहा कि देखिए मिस्टर मैंने इस प्रस्ताव पर साइन कर दी है। चाहें तो आप भी इस पर साइन कर सकते है। यह सुनते ही कलेक्टर साहब के पास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचा था। हस्ताक्षर करके कलेक्टर अनुमति लेकर चले गए। एमटीएच कम्पाउंड में निर्मित व्यवसायिक भवन वर्तमान में नगर निगम इंदौर के मुख्य व्यवसायिक भवनों में से एक है।

दूसरा मामला पलासिया चौराहे के पास का था। यहां चायनीज रेस्टारेंट व अन्य दुकानों में आने वाले ग्राहक अपने वाहन सड़क पर पार्क करते थे, इस कारण वहां अक्सर जाम की स्थिति बनी रहती थी। एक बार आयुक्त उस तरफ से कहीं जा रहे थे, तो उन्होंने यह स्थिति देखकर हमें इसका हल निकालने के निर्देश दिए। हमने इस काम्पलेक्स के तलघर में टेंट वालों की दुकानों के सामने रिक्त स्थान पर स्लेब डालकर पार्किंग बनाया, जिससे इस सड़क पर जाम लगना बंद हो गया। कुछ दिनों बाद तलघर में जिन व्यापारियों की टेंट की दुकानें थी, उनका एक प्रतिनिधि मंडल आयुक्त से मिला एवं अनुरोध किया कि पार्किंग के स्लेब के कारण उनकी दुकानों के सामने छोटे साईज के खाचें बन गए हैं। वे उन्हें आवंटित किए जाएं।

आयुक्त ने मुझ से इस संबंध में जानकारी प्राप्त की। मैंने उन्हें बताया कि ये खाचें साईज में छोटे है एवं इनमें अंधेरा रहता है। अतः इनमें कोई अन्य कोई व्यवसायिक गतिविधि प्रारंभ नहीं हो सकती है, सिर्फ टेंट व्यवसायी अपना सामान इनमें रख सकते है।

आयुक्त की सहमति के बाद हमने इन खाचों को टेंट व्यवसायियों को लागत मूल्य पर आवंटित कर दिया। कुछ समय बाद इस संबंध में किसी के द्वारा राज्य शासन को शिकायत भेजी गई। उस शिकायत पर मुझे कारण बताओ नोटिस दिया गया। तब तक विजय सिंह प्रमुख सचिव (गृह) के पद पर वल्लभ भवन में पदस्थ हो चुके थे।

मैं यह नोटिस लेकर उनके पास गया। उन्होंने नोटिस पढ़ा और मुझे इसका जवाब तैयार करके पुनः आने को कहा। कुछ दिनों बाद मैं नोटिस का जवाब लेकर विजय सिंह को बताने गया, तब उन्होंने मुझे कहा कि मेरे साथ चलों। वे तत्कालीन प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग के पास स्वयं मुझे लेकर गए। उनके कमरे में जाकर उनसे कहा कि उप्पल ने यह काम मेरे कहने पर किया था। अतः आप कारण बताओं नोटिस इनके स्थान पर मुझे दीजिए। यह सुनते ही प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग स्तब्ध रह गए और कुछ बोल नहीं पाए। उसके तुरंत बाद हम विजय सिंह के कक्ष में वापस आ गए। विजय सिंह ने मुझे आदेश दिया कि मैं नोटिस का जवाब भी तुरंत प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग को प्रस्तुत कर दूॅं।

मैंने उसी समय जाकर जवाब प्रस्तुत कर दिया जो प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग को बहुत ही संतोषजनक लगा और उन्होंने मुझे दिया गया कारण बताओं नोटिस भी निरस्त कर दिया। जबकि, उनकी यह ख्याति थी कि वे किसी भी अधिकारी को इतनी आसानी से बख्शते नहीं थे। कुछ भी हो, थोड़ा बहुत दण्ड जरूर देते थे, जिसमें उनको असीम आनंद की अनुभूति होती थी। लेकिन, उस घटना के बाद वे कुछ बोल नहीं सके।

विजय सिंह की खासियत थी कि वे अपने अधीनस्थों के हितों का बहुत ख्याल रखते थे और उन्हें यथोचित संरक्षण भी देते थे। हमारे द्वारा जब भी शहर में अतिक्रमण हटाया जाता था तो वे एक बार स्थल निरीक्षण करने जरूर आते थे। पुलिस महानिरीक्षक इंदौर को भी उन्होंने यह निर्देश दिए थे कि अतिक्रमण हटाते समय हमारी सुरक्षा की उचित व्यवस्था की जाए। विजय सिंह के अधीनस्थ कार्य करने के कारण मुझे जो अनुभव प्राप्त हुआ है वह मेरे प्रशासकीय कार्यकाल की सर्वोत्तम उपलब्धि है।