ओखा यानि देश का पश्चिमी छोर, इससे भी आगे जाकर बसे थे रणछोर (okha means the western end of the country ranchor had settled even further)…

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ओखा यानि देश का पश्चिमी छोर, इससे भी आगे जाकर बसे थे रणछोर (okha means the western end of the country ranchor had settled even further)…
द्वारिका से तीस किलोमीटर आगे है देश का पश्चिमी छोर ओखा। ओखा यानि समुद्र तट रक्षक बल की निगरानी में देश की चाक-चौबंद सुरक्षा। और नौसेना के अलावा भी दूसरी सभी सुरक्षा एजेंसियां यहां पूरी तरह से सजग हैं। यहां से समुद्री अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा पर चौकसी की खास जरूरत रहती है, क्योंकि पड़ोस में पाकिस्तान की आहट भी रहती है तो बाकी अरब देश और अमानत में खयानत के लिए तो कोई भी कभी भी खतरनाक साबित हो सकता है।
तो ओखा में नौसेना-तट रक्षक बल की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है, जिसके लिए चौबीस घंटे नौसेना अरब सागर पर नजर रखे हुए है। तो कृष्ण ने द्वापर युग में ही तय कर लिया था कि हम कोई सीमा से बंधकर नहीं रह सकते, सो वह ओखा से भी आगे समुद्र में जाकर बस गए। ऐसी जगह जिसे “बेट द्वारिका” कहते हैं, तो लोगों का कहना यह भी है कि सुदामा और कृष्ण की भेंट के कारण इस स्थान को “भेंट द्वारिका” कहते थे…पर अब यह बेट द्वारिका हो गया है। शायद कृष्ण जी यह सोच रहे होंगे कि कलियुग में जब लोगों को एक-दूसरे से भेंट करने में कोई दिलचस्पी नहीं रहेगी और क्रिकेट यानि बेट-बॉल का खेल हर व्यक्ति की पसंद बनने लगेगा, तब हमारी भेंट द्वारिका भी बेट द्वारिका के नाम से जानी जाएगी।
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वह स्थान, जहां अब तक लोग नाव से ही उस पार पहुंच पाते थे…पर अब ओखा से बेट द्वारिका को जोड़ने के लिए समुद्र सेतु बनकर तैयार हो रहा है। शायद 2023 में भक्तगण द्वारकाधीश की पांच हजार चार सौ तेईस साल पुरानी उस मूर्ति के दर्शन करने के लिए सड़क मार्ग से बेट द्वारिका पहुंच सकेंगे, जहां अभी तक नाव से ही समुद्र पार कर पहुंचा जा सकता था। कहा जाता है कि बेट द्वारिका के द्वारिकाधीश की मूर्ति उनकी पत्नी रुकमणि ने अपने हाथों से बनाई थी, जब कृष्ण ने द्वारिका से दूरी बना ली थी। मूर्ति का आकर्षण अद्वितीय है, तो बेट द्वारिका की भूमि भी, जलवायु भी और वायु भी बहुत ही सुखदायी है। क्योंकि ओखा से भी आगे जाकर रणछोर जो बसे थे।
जो मथुरा में तेज गर्मी में इतने तपे थे कि फिर समुद्र के बीच में जाकर बसे थे, जहां मौसम खुशगवार रहे और दुश्मनों से दूरी भी बरकरार रहे। पर ऐसा रह नहीं पाया, क्योंकि कृष्ण का वंश श्रापित हुआ और यदुवंश भी खत्म हुआ। और अंततः सोमनाथ के करीब भालका तीर्थ में पीपल के वृक्ष के नीचे बैठे कृष्ण के पैर के पद्म पर शिकारी ने निशाना साधा और योगेश्वर देहत्याग कर परमधाम लौट गए।
बेट द्वारिका में त्रेतायुग की यादें भी ताजा हो जाती हैं। यहां पर दुनिया का एकमात्र हनुमान और उनके पुत्र मकरध्वज का मंदिर भी है। यहां मानव मुख धारण किए हनुमान छोटे आकार में हैं और मकरध्वज का आकार बड़ा है। मान्यता है कि हनुमान इसी स्थान से पातालकोट में प्रविष्ट हुए थे। हनुमान की मूर्ति का आकार चावल के दाने जैसा कम हो रहा है और जिस दिन आकार पूरा घटेगा, तब कलियुग खत्म हो जाएगा। खैर बेट द्वारिका के कई स्थानों की अलग-अलग महिमा है। एक का जिक्र और करूं तो शंखोधर मंदिर का महत्व यह है कि जो भक्त यहां दर्शन नहीं करेगा, उसे आधा पुण्य ही मिलेगा। इस मंदिर का जिक्र स्कंद पुराण और भागवत कथा में भी है। पर यहां आने वाले ज्यादातर श्रद्धालु इस मंदिर और इसके महत्व से अनभिज्ञ हैं।
खैर द्वारिका से बेट द्वारिका के बीच रुकमणि का विश्व का एकमात्र मंदिर भी है। तो आठवें ज्योतिर्लिंग दारुकावन में नागेश्वर महादेव बिराजे हैं। तो गोपीतालाब वह स्थान है, जहां तालाब भी है, अर्जुन कुंड भी है और गोपीनाथ का मंदिर भी है। द्वारिका के द्वारिकाधीश मंदिर में दर्शन बहुत ही मन मोहने वाले हैं, तो द्वारिका पीठ भी इसी परिसर में स्थित है। तो बृज की रज माथे पर लगाकर भक्त कृष्ण के द्वारिका-बेट द्वारिका धाम के दर्शन किए बिना चैन नहीं पा सकता। जहां कृष्ण हैं, वहां शिव का धाम भी है। तो रणछोर देश के पश्चिमी छोर से भी आगे विराजे यह अहसास करा रहे हैं कि वह हर सीमा से परे हैं।