मध्यप्रदेश में अब तीन से छह साल तक की उम्र वाले छोटे बच्चों का बेहतर भविष्य तय करने के लिए राज्य सरकार ने शाला पूर्व शिक्षा नीति लागू करने का निर्णय लिया है। प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा के तहत बच्चों के सर्वागीण विकास हेतु स्वास्थ्य देखभाल सुरक्षा एवं पोषण के साथ सीखने के अवसर उपलब्ध करवाए जाएंगे। ऐसे केन्द्रों को महिला एवं बाल विकास विभाग अनुमति प्रदान करेगा।
वर्तमान परिवेश में तीन वर्ष की आयु के बाद बच्चे को ऐसे वातावरण की आवश्यकता होती है जहां से घर से बाहर घर जैसा वातावरण मिले। पारिवारिक, सामुदायिक परंपराओं तथा प्रारंभिक वर्षो में बच्चों की देखभाल के साथ उनकी शाला जाने की शिक्षा की तैयारी सुनिश्चित कराने यह पॉलिसी लागू की गई है।
शिशु देखभाल एवं शिक्षा सुविधा तीन वर्ष से अधिक उम्र के सभी बच्चों को उनकी छह वर्ष तक की आयु पूर्ण होंने तक उपलब्ध कराई जाएगी। शाला पूर्व शिक्षा हेतु आवश्यक व्यवस्था उपलबध कराने का दायित्व राज्य सरकार उठाएगी।
महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा का क्रियान्वयन किया जाएगा।
यहां होगी लागू–
मध्यप्रदेश में आंगनबाड़ी केन्द्र, शिशुगृह, प्ले स्कूल, शाला पूर्व शिक्षा केन्द्र, नर्सरी स्कूल, किंडर गार्टन, प्रारंभिक स्कूल, बालवाड़ी और गृह आधारित देख रेख के ऐसे केन्द्र जहां तीन से छह वर्ष के बच्चों को दर्ज किया जाता है वहां पर यह नीति लागू होगी।
भयमुक्त शिक्षा, नही होगी कोई परीक्षा-
इस नीति के तहत बच्चों को शारीरिक दंड देने, मानसिक रुप से प्रताड़ित करना प्रतिबंधित रहेगा। सभी बच्चों के लिए उनके निर्धारित पड़ौस में शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराने की शाासन की बाध्यता होगी। तीन से छह वर्ष तक के बच्चों की किसी भी प्रकार की परीक्षा नहीं ली जाएगी। बच्चों के अभिभावकों के लिए बच्चों के साथ घर में किये जाने वाले व्यवहार, उकी मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को समझे हेतु विशेषज्ञों से जागरुकता शिविर आयोजित करवाए जाएंगे।
बीस बच्चों पर होगा एक शिक्षक-
इस नीति के तहत बीस बच्चों पर एक शिक्षक होगा। इसके बाद भी प्रति बीस बच्चों पर एक अतिरिक्त शिक्षक होगा। इन शाला पूर्व शिक्षा केन्द्र के संचालन के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग नोडल विभाग होगा और वह प्ले स्कूल, प्री प्राइमरी स्कूल, प्रीपेरेट्री क्लासेस, नर्सरी स्कूल को मान्यता प्रदान करेगा।
केन्द्रों पर यह सुविधाएं होंगी-प्राथमिक विद्यालय परिसर में आंगनबाड़ी केन्द्रों को जगह दिलाई जाएगी। बाधारहित ग्राउं ड फ्लोर पर अनुकूल भवन होंगे। बआलक-बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालय होंगे। सभी बच्चों के लिए स्वच्छ एवं सुरक्षित पेयजल व्यवस्था रहेगी। भवन में किचन शेड, भंडार कक्ष होगा। आउटडोर एक्टिविटीज के लिए समतल मैदान, खुला स्थान रहेगा। सुरक्षा के लिए बाउंड्रीवाल होगी। खेल सामग्री, उपकरण, पिक्चर बुक तथा कहानियों की किताबें, कैलेण्डर, चार्ट, पोस्टर, पुराने समाचार पत्र पत्रिकाएं , खेलकूद सामग्री, खेलकूद उपकरण ।
स्कूल जाने के लिए तैयार कराया जाएगा-
बचों की आयु और आवश्यकतानुसार रोचक पाठयक्रम का निर्माण किया जाएगा जो उनकी क्षमताओं को बढ़ा सके। पाठयक्रम ऐसा होगा जो बच्चों को स्कूल जाने के लिए तैयार करता हो। बच्चों की प्रतियोगिता, प्रतियोगिता नहीं होगी। इसकी जगह स्पोर्ट मेला, रचनात्मक मेले होंगे। बच्चों को खेल-खेल में शिक्षा दी जाएगी। पाठयक्रम मातृभाषा, स्थानीय भाष बहुभाषा में सहज और सरल होगा। पाठयक्रम लेख पूर्व अभ्यास और पढ़ने के पूर्व अभ्यास पर केन्द्रित होगा। बच्चें की सीखने की गति पर निगरानी रखी जाएगी। प्रशिक्षित शिक्षकों की देखरेख और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए सभी छात्रों के लिए पियर टयूटरिंग आनंदपूर्ण गतिविधि के रुप में लागू की जाएगी। समर कैंप होंगे। बच्चों को पूरक पोषण आहार वितरण होगा। पांच से छह वर्ष के बच्चों के लिए शाला जाने की तैयारी संबंधी गतिविधि होगी। पूरी शिक्षा केवल नौ माह की होगी। स्कूल चले की तरह आंगनबाड़ी चले अभियान होगा। खेल गतिविधियां आयोजित की जाएंगी। बच्चों को शिशु विकास कार्ड और प्रमाणपत्र देंगे।