रोटी की या चोटी की राजनीति (Politics);
कहते हैं कि ‘ ऊँट भी पहाड़ के नीचे आता है ‘.रूस- यूक्रेन युद्ध की वजह से अब यही स्थिति रोटी को लेकर है .रोटी गेंहूं से बनती है और दुनिया के दूसरे सबसे बड़े गेंहूं उत्पादक देश भारत ने गेंहूं के निर्यात पर पाबन्दी लगा दी है .कहने को ये आपदा को अवसर में बदलने वाला फैसला है किन्तु इस फैसले से दुनिया का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित होता दिखाई दे रहा है . एक जमाने में गेंहूं के लिए दुनिया के दादाओं की धमकी का शिकार भारत के सामने आज दुनिया ही विनयवत दिखाई दे रही है .
भारत में पिछले सात साल में गेंहूं का उत्पादन भले ही बढ़ा हो लेकिन रोटी लगातार मंहगी होती जा रही है,इस वजह से बढ़े हुए उत्पादन का जनता को कोई लाभ नहीं हो रहा. सात साल पहले जो गेंहूं का आटा 17 रूपये किलो मिलता था वो ही आज 40 रूपये किलो तक पहुँच गया है .बावजूद इसके भारत सरकार ने गर्मी और लू की वजह से गेहूं उत्पादन प्रभावित होने की चिंताओं के बीच भारत ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। सरकार को उम्मीद है कि इस निर्णय से गेहूं और गेहूं के आटे की खुदरा कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी, जो पिछले एक साल में औसतन 14-20 प्रतिशत बढ़ी है.
गेंहू के निर्यात पर रोक के बाद पहली बार संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने वर्चुअल न्यूयॉर्क फॉरेन प्रेस सेंटर ब्रीफिंग के दौरान कहा कि “हमने भारत के फैसले की रिपोर्ट देखी है। हम देशों को निर्यात को प्रतिबंधित नहीं करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं क्योंकि हमें लगता है कि निर्यात पर कोई भी प्रतिबंध भोजन की कमी को बढ़ा देगा।” उन्होंने कहा कि लोग भुखमरी की कगार पर खड़ें हैं। हमें उम्मीद है कि भारत अन्य देशों द्वारा उठाई जा रही चिंताओं को सुनेगा और अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगा पर पुनर्विचार करेगा ।”
आपको याद रखना होगा कि आज दुनिया भर में प्रति वर्ष 749,467,531 टन गेहूं का उत्पादन होता है। चीन प्रति वर्ष 131,696,392 टन उत्पादन मात्रा के साथ दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है। भारत 93,500,000 टन वार्षिक उत्पादन के साथ दूसरे स्थान पर आता है।लेकिन ये सब एक दिन में नहीं हुआ और न सात साल में हुआ .इसकी शुरुवात 1965 में तब हुई जब भारत-पाक युद्ध के दौरान 1962 में देश में भुखमरी की नौबत आयी और 1965 में भयंकर अकाल पड़ गया .जब हम अमेरिका की पीएल-480 स्कीम के तहत हासिल लाल गेहूं खाने को बाध्य थे। इसी बीच, अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शास्त्रीजी को धमकी दी गई थी, अगर युद्ध नहीं रुका तो गेहूं का निर्यात बंद कर दिया जाएगा। शास्त्रीजी ने कहा- बंद कर दीजिए गेहूं देना। इतना ही नहीं, उन्होंने अमेरिका से गेहूं लेने से भी साफ इनकार कर दिया था।
साल 1965 के बाद नेहरू युग में ही देश में हरित क्रांति की और कदम बढ़ाये और अगले तीन दशक में देश को न सिर्फ खाद्यान के मामले में आत्मनिर्भर बना दिया बल्कि खुद एक बड़ा निर्यातक बन गया भारत .आज भारत 31 .60 करोड़ टन गेंहूं सालाना पैदा करता है ,ये तब है जबकि देश के किसानों ने सरकार की नीतियों के खिलाफ पूरे एक साल तक देश में आंदोलन किया ,750 से ज्यादा किसानों ने बलिदान दिया .भारत का खाद्यान्न उत्पादन चालू फसल वर्ष 2020-21 में 2.66 प्रतिशत बढ़ कर 30 करोड़ 54.3 लाख टन के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने का अनुमान है। इसका कारण पिछले साल अच्छी मॉनसून की बारिश के बीच चावल, गेहूं और दालों के बेहतर उत्पादन का होना है।फसल वर्ष 2019-20 (जुलाई-जून) में, देश का खाद्यान्न उत्पादन (गेहूं, चावल, दाल और मोटे अनाज सहित) रिकॉर्ड 29.75 करोड़ टन रहा था।
हम भारत सरकार के गेंहूं निर्यात पर रोक का समर्थन करते हैं साथ ही चाहते हैं कि भारत की जनता को इस अतिरिक्त गेंहूं उत्पादन का लाभ मिलना चाहिए .देश में लगातार और चौतरफा बढ़ रही मंहगाई की वजह से दो जून की रोटी लगातार मंहगी हुई है. सिर्फ रोटी ही नहीं बल्कि रोटी पकने की गैस ,और खाद्य तेल भी मंहगे हुए हैं .यदि गेंहूं का निर्यात रोका गया है तो उसका श्रेय और लाभ देश की जनता को मिलना ही चाहिए .लेकिन हो उलटा रहा है. गेंहूं के दाम सौ रूपये क्विंटल बढ़ गए हैं. जमाखोरों ने अपना काम शुरू कर दिया .सरकार को इस पर भी नजर रखना चाहिए.
इसे दुर्भाग्य कहिये या सौभाग्य कि दुनिया में गेंहूं उत्पादन में दूसरे नंबर पर रहने वाले भारत में कुप्रबंधन की वजह से हर साल 1200 टन खाद्यान्न खराब हो जाता है .हमारे पास भंडारण की क्षमता पर्याप्त नहीं है ऐसे में यदि दुनिया की मांग को देखते हुए देश भविष्य में गेंहूं के निर्यात में उदारता बरतता है तो ये एक मानवीय कदम हो सकता है .लेकिन ये मानवीयता तभी दिखाई जा सकती है जब इसके कूटनीतिक और आर्थिक लाभ दोनों हों .भारत को इस साल 70 लाख टन गेंहूं निर्यात करना था .
भारत दुनिया के तमाम देशों को अपना गेंहूं बेचता है. लेकिन रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया कि गेंहूं सप्लाई चैन टूट गयी है ,इस वजह से दुनिया में खाद्यान का संकट पैदा हो गया है.इस पर भी भारत ने गेंहूं के निर्यात पर रोक लगाने की घोषणा कर इस संकट को और गहरा कर दिया है .आज भारत के पास मौक़ा है कि वो विश्वगुरु की तरह व्यवहार करते हुए दुनिया को इस संकट में उबरने में मदद कर सकता है .लेकिन ये मदद कब और कैसे की जाएगी कहना कठिन है .भारत के इस फैसले का लाभ चीन उठा सकता है क्योंकि चीन गेंहूं के उत्पादन में दुनिया में नंबर एक पर है .
भारत की सनातन सांस्कृति तो मानती है कि दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है ,लेकिन आज इस दाने -दाने पर मोदी का नाम लिखा जा रहा है .ताकि देश के भीतर 80 करोड़ से अधिक की बेरोजगार और दो जून की रोटी न जुटा पाने वाली आबादी मुफ्त के राशन के बहाने प्रधानमंत्री की जय-जय बोलती रहे और बदले में सत्तारूढ़ दल की झोली वोटों से भरती रहे .लेकिन ये अलग मुद्दा है .आज तो भारत पहाड़ है और दुनिया ऊँट .संयोग से खाद्यान्न के मामले में ऊँट पहाड़ के नीचे आ चुका है .