ओंकारेश्वर में मांधाता पर्वत पर सीएनजी, इलेक्ट्रिक वाहनों को ही अनुमति

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ओंकारेश्वर में मांधाता पर्वत पर सीएनजी, इलेक्ट्रिक वाहनों को ही अनुमति

भोपाल: ओंकारेश्वर में मांधाता पर्वत पर आचार्य शंकर की प्रतिमा, शंकर संग्रहालय एवं आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान की स्थापना में भारतीय वास्तु एवं स्थापत्य को ध्यान में रखते हुए देशज सामग्री पत्थर, काष्ठ, मिट्टी, ईंट आदि का अधिकतम उपयोग होगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्राथमिकता वाली इस परियोजना में मांधाता पर्वत को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए केवल सीएनजी एवं इलेक्ट्रानिक वाहनों को ही प्रवेश की अनुमति दी जाएगी। प्रकल्प में विभिन्न स्थानों पर 3 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी बनेंगे। सौर एवं अन्य वैकल्पिक उर्जा तथा जैविक सामग्रियों का उपयोग करते हुए यह परियोजना शून्य अपशिष्ट आधारित होगी। इस परियोजना से रोजगार सृजन के नए अवसर भी उपलब्ध होंगे।

ओंकारेश्वर में आचार्य शंकर की 108 फीट की बहुधातु प्रतिमा तथा शंकर संग्रहालय के लिए मांधाता पर्वत पर लगभग 11.50 हेक्टेयर भूमि एवं आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान हेतु गोदड़पुरा पर्वत पर लगभग 22.10 हैक्टेयर भूमि संस्कृति विभाग को आवंटित है। बताया गया कि आचार्य शंकर संग्रहालय के लिए मांधाता पर्वत पर आवंटित परिसर में अस्थाई रूप से निवासरत 30 परिवारों को नगर परिषद ओंकारेश्वर द्वारा ओंकारेश्वर नगर में पुर्नवास के लिए आवास निर्माण हेतु भूमि चिन्हांकित की गई है। इस भूमि पर आवास निर्माण के लिए हर परिवार के बैंक खाते में 2.50 लाख रुपए की राशि संस्कृति विभाग द्वारा नगर परिषद के माध्यम से प्रदान की जाएगी।

संग्रहालय परिसर में बनेंगे छह मंदिर
आचार्य शंकर संग्रहालय परिसर में सिटी 6 मंदिरो- शिव मंदिर, सांई मंदिर, शनि मंदिर, राम मंदिर, नर्मदा मंदिर तथा निखिल आश्रम में स्थापित मूर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा विधि-विधान के साथ विद्वान आचार्य के माध्यम से राजराजेश्वरी मंदिर में की जाएगी। इन मंदिरों के पुजारियों के लिए परिसर के बाहर अन्यत्र स्थान पर अस्थायी कुटिया उपलब्ध कराई जाएगी।
हरियाली अमावस्या से लगेंगे 10 फीट तक के पौधे


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28 जून को हरियाली अमावस्या से मांधाता पर्वत पर सघन पौधरोपण प्रारंभ होगा। इसमें नीम, पीपल, वटवृक्ष, गुलमोहर, बेलपत्र, पलाश, करंज तथा कचनार आदि पौधे लगाए जाएंगे। इन पौधों की उंचाई 8 से 10 फीट की होगी ताकि वर्षाऋतु में ये पौधे जड़ पकड़ सकें। डेढ वर्ष तक इन पौधों का प्रबंधन, पोषण व रखरखाव भी किया जाएगा।