गांधी के सपनों का भारत, और मोदी के सपनों का
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 28 मई को गुजरात के अटकोट में एक रैली को सम्बोधिक करते हुए कहा था कि हम गांधी जी के सपनों का भारत बनाने के कार्य में आठ साल से जुटे हैं। गांधी जी चाहते थे कि गरीबों, दलितों, पीड़ितों, आदिवासियों और महिलाओं को अधिक अधिकार मिले। हमारी सरकार इसी के लिए कार्य कर रही है। स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाएं हमारी सरकार की प्राथमिकता है और भारतीय संस्थानों से हम अपनी जरूरतों की पूर्ति में लगे हैं। इसके बाद की रैली में उन्होंने गांधीजी के साथ साथ सरदार पटेल का भी जिक्र किया और उनके सपनों के भारत की बात भी कही। ये दोनों ही नेता गुजरात के थे, जहाँ के मोदी भी हैं।
प्रधानमंत्री यही नहीं रुके, उन्होंने कहा कि हमारी सरकार गरीबों को मकान उपलब्ध करा रही है और अभी तक हम 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को मकान दे चुके हैं। करोड़ों लोगों को बिजली और जल प्रदाय योजना का लाभ मिल रहा है। जहां अनाज की समस्या है, वहां अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है। मुफ्त में गैस उपलब्ध कराई जा रही है। गरीबों का इलाज मुफ्त किया जा रहा है और हर भारतीय के लिए मुफ्त टीके की व्यवस्था की गई है।
प्रधानमंत्री ने ये बातें उस दिन कहीं, जिस दिन पूरे देश में बड़े पैमाने पर सावरकर की जयंती मनाई जा रही थी। प्रधानमंत्री के भाषण में सरकार की उपलब्धियों का बखान भी इसलिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि गुजरात में इस वर्ष दिसम्बर तक विधानसभा चुनाव होना हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, ”जब हर नागरिक तक सुविधाएं पहुंचाने का लक्ष्य होता है तो भेदभाव भी खत्म होता है, भ्रष्टाचार की गुंजाइश भी नहीं रहती, ना भाई-भतीजावाद रहता है ना जात-पात का भेद रहता है, इसलिए हमारी सरकार मूलभूत सुविधाओं से जुड़ी योजनाओं को नागरिकों तक पहुंचाने में जी जान से जुटी हुई है।”
पिछले 8 साल में मोदी सरकार जिन 8 योजनाओं में भारी सफलताओं का दावा करती है, उन सभी योजनाओं को आखिरी आदमी के फायदे की बताती है। इन योजनाओं में गरीबों को रोजगार के लिए कर्जा देने, बीमा कराने और रसोई गैस से जुड़ी योजनाएं तक शामिल हैं। मोदी सरकार का कहना है कि मुद्रा योजना में लोगों को कम ब्याज पर धन मिला है, जिससे वे खुद का रोजगार कर पा रहे हैं। उज्जवला योजना में महिलाओं को रसोई गैस वितरित की गई, जिससे उन्हें धुएं से निजात मिलीं। 2 हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों के लिए पीएम किसान सम्मान निधि शुरू की गई, जिसमें सरकार किसान परिवारों को हर महीने 500 रुपये दे रही है। ये रुपये सीधे किसानों के पास पहुंचाए जा रहे हैं। सरकार का दावा है कि इस योजना से किसानों को बड़ी राहत मिलेगी।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना में उन लोगों को कर्ज दिया जा रहा है, जो गैर कार्पोरेट व्यवसायी हैं। छोटे-छोटे कारोबारियों को सरकार ने 10 लाख रुपये तक का कर्ज अपना निजी कारोबार शुरू करने के लिए दिया है। इस योजना की भी 3 कैटेगरी हैं। शिशु योजना में 50 हजार रुपये तक, किशोर योजना में 5 लाख रुपये तक और तरुण योजना के तहत 10 लाख रुपये तक का कर्ज दिया गया हैं। इस कर्ज का लाभ उठाकर लाखों लोगों ने अपना रोजगार शुरू किया हैं। यह दावा सरकार का हैं।
एक और योजना का प्रचार मोदी सरकार बहुत उत्साह से करती है और वह है आयुष्मान भारत योजना। 2018 में शुरू हुई, इस बीमा योजना के तहत गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा की सुविधा मिल रही है। सरकार का दावा है कि यह भी एक तरह का मेडिक्लैम ही है और 50 करोड़ भारतीय इससे लाभान्वित हुए हैं।
इसके अलावा प्रधानमंत्री आवास योजना भी मोदी सरकार की एक ऐसी योजना के रूप में प्रचारित है, जिसके तहत होम लोन के ब्याज में सरकार 2.60 हजार रुपये तक सब्सिडी देती थी। इस योजना से लाखों लोग लाभान्वित हुए हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री जन-धन योजना में जीरो बैलेंस अकाउंट खोले गए और बिना किसी शुल्क के फंड ट्रांसफर की सुविधा लोगों को मिली। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को 5 किलो राशन हर महीने मुफ्त मिल रहा हैं। खाद्य सुरक्षा कानून के तहत यह सुविधा शुरू की गई।
मोदी सरकार की ये सभी योजनाएं गरीबों के हित में बताई जाती हैं। यह एक विचित्र संयोग ही है कि पिछले 8 साल में ही 20 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए। देश में बेरोजगारी की दर भी अपने चरम पर है और महंगाई भी अपने उच्चतम शिखर पर है। आंकड़ों में न जाएं, तो भी यह बात समझ में आती है कि खाने-पीने की चीजों के दाम बेहताशा बढ़ गए हैं। 3 साल में ही खाद्यान्न के दाम लगभग 1.5 गुने से ज्यादा बढ़ गए हैं। विभिन्न वित्तीय एजेंसियां भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर गंभीर चेतावनियां दे रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गांधी जी के भारत की कल्पना को साकार करने की बातें कह रहे हैं, लेकिन गांधी जी ने सर्वधर्म समभाव और वसुधैव कुटुम्बकम के विचारों को हमेशा प्राथमिकता दी है। गांधी जी की सोच रोजगार बढ़ाने की तरफ ज्यादा रहीं और उपभोग को सीमित करते हुए जन कल्याण की भावना प्रमुखता से प्रदर्शित की गई। गांधी जी चाहते थे कि इंसान की असीमित आवश्यकताओं और सीमित संसाधनों के बीच संतुलन बना रहें। गरीबी और अमीरी की खाई कम की जाएं, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि देश का 1 प्रतिशत पूंजीपति वर्ग देश के 30 प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा किए हुए हैं और जितनी दौलत उस वर्ग ने पिछले 30 वर्षों में नहीं कमाई, उससे ज्यादा केवल 2 वर्षों में प्राप्त कर ली। गांधी जी का स्पष्ट फॉर्मूला था कि अगर कभी भी किसी पर अहम हावी होने लगे, तो वह यह कसौटी अपनाए कि उसने अपने जीवन में सबसे गरीब और कमजोर आदमी के लिए उठाए जाने वाले कदम कितने लाभप्रद हैं। स्पष्ट है कि गांधी जी अंत्योदय की बात करते थे और गांधी जी का यही विचार दीन दयाल उपाध्याय ने भी अपनाया था।
गांधी जी की विकास की अवधारणा यही थी कि विकास का लाभ महिलाओं, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, दलितों को भी उसी समान मिले, जिस समान समाज के अग्रणी लोगों को उसका लाभ मिलता है। देश जिस दिशा में जा रहा है, वह गांधी जी की बताई दिशा है या नहीं, यह जानने के लिए इतना बताना काफी है कि स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, सक्षम भारत और समृद्ध देश जैसे नारों के बावजूद 38 प्रतिशत से अधिक भारतीय बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और उसमें भी सबसे बड़ी बीमारी पानी से होने वाले रोगों के कारण है। जल शक्ति मंत्रालय बनाने के बाद भी अशुद्ध पानी से होने वाली डायरिया जैसी बीमारियां खत्म नहीं हुई।
यह जानना हमेशा सुखद होता है कि हमारे प्रधानमंत्री गांधी जी की बातें करते हैं और उनके बताए मार्ग पर चलने के दावे भी करते हैं। इसके विपरीत जब अर्थशास्त्री आंकड़े पेश करते हैं, तब वे आंकड़े विरोधाभासी होते हैं। जाहिर है गांधी जी के बताए मार्ग पर चलने में अभी कुछ कमी रह गई है।