South Africa: दुनिया बेहद खूबसूरत है, नीला समन्दर, एक खुला आसमान

दीवारों में कैद होकर रहते हुए हम जीवन को सिर्फ नष्ट कर रहे होते हैं

South Africa: दुनिया बेहद खूबसूरत है, नीला समन्दर, एक खुला आसमान

गाँधी तीर्थ : दक्षिण अफ्रीका

स्वाति तिवारी का यात्रा संस्मरण 
मेरी इच्छाएं भी अजीब हैं, मैं जब जंगल के बीच होती हूँ तो हरियल होना चाहती हूँ, समन्दर के किनारे होती हूँ तो हवा जैसी होना चाहती हूँ, अखबार पढ़ती हूँ तो खोजी पत्रकार होना चाहती हूँ, यात्रा पर हूँ तो वास्को-डी-गामा बनना चाहती हूँ, नीला पानी-नीला आसमान देखूँ तो अशांत मन शांत होने लगता है और बेबस पर अत्याचार मुझे आक्रोश से लाल कर देता है| मृत्यु मुझे स्तब्ध करती है और दुःख, पीड़ा नि:शब्द कर देते हैं, एक अजीब सी बेचैनी मुझे सदा घेरे रहती है क्या वह मुझसे कुछ कहती है? नहीं जानती मैं, पर वह शायद मुझे यायावरी का मार्ग दिखाती है——-शायद तब मैं फक्कड़ और घुमक्कड़, अश्वमेधी हो कर सतत घूमना चाहती हूँ| एक खानाबदोश मन कहता है किसी दीवार में कैद होकर रहते हुए हम जीवन को सिर्फ नष्ट कर रहे होते हैं, दुनिया बेहद खूबसूरत नीला समन्दर है, एक खुला आसमान, एक हरा-भरा जंगल, एक बड़ा सा ऊँचा पहाड़ जिस पर चढ़ते रहो, हमारा इतिहास हमारी यायावरी प्रवृत्ति से संबद्ध रहा है, हम इसे मानव की एक मूल प्रवृत्ति भी कह सकते हैं।

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मैं संवेदना के अंतिम बिंदु तक अंदर से एक लेखक हूँ, शायद इसीलिए एक साहित्यिक यायावर को यात्रा का अद्भुत आकर्षण सदैव अपनी ओर खींचता और उसे कागज पर उकेरने के लिए विवश करता है। कहीं पढ़ा था संसार के बड़े-बड़े यायावर अपनी मनोवृत्ति में लेखक थे। फाह्यान, ह्वेन सांग, इत्सिंग, इब्न बतूता, अलबरुनी, मार्कोपोलो, बर्नियर, टेवर्नियर… जितने भी यायावर हुए, इन सबके यात्रा विवरणों में साहित्यिक यायावर हमारे सामने स्वतः आ जाता है जो कहता है देखो उन दुर्लभ जगहों को, उन दृश्यों को, सुनो वो आवाजें जो शायद तुम्हें पुकारती हैं अपनी कहानी सुनाने के लिए, जाओ किसी पेड़ की किसी पत्ती को छूकर उस टहनी को साज़ बना लो जहाँ बजेगा फिर सरसराता कोई संगीत|

मैं तब चल पड़ती हूँ उन टहनियों की तलाश में, किसी रेगिस्तान की तपती रेत के टीलों पर जहाँ अचानक हरी घास के गुच्छे की तरह मन में जाने कितनी नयी इच्छाएं दूब बन उग आती हैं, जानती हूँ किसी गृहस्थी के दरवाजे इतनी आसानी से बंद कर निकलना इतना आसान नहीं है, पर मन के दरवाजे बंद कर लेना उससे भी कठिन, तब एक समझौता ही एकमात्र रास्ता दिखाता है कि जब परिस्थितियाँ घुमक्कड़ी को इजाजत देंगी चल पड़ेंगे| कहाँ सोचा था कि अचानक ऐसी परिस्थिति निर्मित होगी कि मैं एक प्रयास भर से दक्षिण अफ्रीका की यायावरी पर मय हमसफ़र निकल उस हाथी के गुलाबी बच्चे को देखने के बारे में सोचूँगी जिसकी खबर कुछ इस तरह कहीं पढ़ी थी—–

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“एक समाचार था कि वन्यजीवों की तस्वीरें उतारने वाले एक फ़ोटोग्राफ़र ने अत्यंत ही दुर्लभ गुलाबी रंग के हाथी के बच्चे को कैमरे में क़ैद करने में कामयाबी हासिल की| दक्षिण अफ़्रीक़ी देश बोट्स्वाना में गुलाबी रंग के एक हाथी का बच्चा लगभग 80 हाथियों के झुंड के साथ ओकावेंगो नदी के पास से गुज़र रहा था तभी बीबीसी वन्य जीवन कार्यक्रम के लिए फ़िल्म की शूटिंग कर रहे माइक होल्डिंग ने उसकी तस्वीरें उतार लीं| विशेषज्ञों का मानना है कि वो एल्बिनो नस्ल का हाथी रहा होगा, जो कि अफ़्रीक़ा के जंगलों में बहुत ही दुर्लभ है|

इस हाथी की लंबी उम्र को लेकर विशेषज्ञ बहुत आश्वस्त नहीं हैं क्योंकि अफ़्रीक़ा की चिलचिलाती सूरज की किरणों की वजह से उसे अंधापन और चमड़े की बीमारी हो सकती है|” माइक होल्डिंग का कहना था, “हमने गुलाबी हाथी को केवल कुछ मिनटों के लिए देखा, जब ये हाथी अपने झुंड के साथ नदी को पार कर रहा था|” माइक होल्डिंग ने कैमरे में गुलाबी हाथी के क़ैद करने के पल को याद करते हुए कहा था- “निश्चित तौर पर शिविर में सभी के लिए वह क्षण बहुत ही उत्साहजनक था, हम जानते थे कि ये बहुत ही दुर्लभ क्षण हैं| किसी को भी अपनी आँखों पर यक़ीन नहीं हो रहा था|” पर्यावरणविद् माइक चैस का कहना है-“हम सिर्फ़ तीन एल्बिनो हाथी के बच्चों के बारे में जानते हैं जो कि दक्षिण अफ़्रीक़ा के क्रुगर नेशनल पार्क में पाए गए हैं|” ये खबर मैंने कहीं पढ़ी थी मन दुखी हुआ कि सुन्दर नस्ल का वह हाथी क्या सचमुच दक्षिण अफ्रीका की गर्मी सह पाएगा?

मन उस सुन्दर हाथी को देखना चाहता है पर क्रूगर पार्क जा कर भी मैं उसे नहीं देख पायी और फिर यह हाथी ही क्यूँ मुझे तो सोने का शहर भी देखना था जो कहीं बचपन की कहानियों में आता था और देखना थे वे भूखे शेर जो अपने शिकार को पूरी योजना बनाकर घेरते हैं फिर जिनके दहाड़ने से विशाल जंगल भी थरथरा जाता है|

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कहते हैं दक्षिण अफ्रीका के जंगलों में शेर और शिकार को देखना बिलकुल अपने आदिम इतिहास में पहुँचने जैसा है, हाँ सच ही तो है आदिम इतिहास यही तो कहता है कि आदिम समय में जब इंसान जंगल के नियमों के अनुसार अपना जीवन यापन करता था, जिसका अर्थ होता था शिकार करो या शिकार बन जाओ उसी आदिम इतिहास को देखने की जिज्ञासा थी| मन कहीं भयभीत था कि क्या मैं उस भयावह दृश्य को देख भी सकूँगी?

मैं जानती हूँ कि मैं नहीं देख सकती कोई हिंसक दृश्य? और फिर देखना भी क्यूँ? अगर देखना ही है तो प्रकृति में बहुत कुछ है जो सौंदर्य के रूप में परिभाषित है, जैसे किसी पंछी का सुमधुर संगीत जैसा चहचहाना, हवाओं का नील समन्दर के ऊपर से बहते हुए मन को भी बहा ले जाना, किसी निर्जन वन प्रदेश में मयूर का नाच उठना, हरे भरे पहाड़ों से उतरते झरने, ठण्डे पड़ते काले पत्थरों की चमक, कहीं सुबह की उजली-उजली धूप के टुकड़ों के बीच से किसी बादल का खरगोश की तरह अचानक फुदक जाना क्या ये देखना भी उस गुलाबी हाथी के बच्चे को देखने जैसा ही रोमांचक नहीं होगा?

दक्षिण अफ्रीका सिर्फ और सिर्फ आदिम जंगल नहीं है अब, म्सथुलूनदी के तट पर स्थानीय रिवराइन पेड़ों की छाँव में स्थित लिटिल बुश कैंप, साबी साबी की सबसे निर्जन और छोटी पाँच सितारा लॉज जहाँ प्राकृतिक झाड़ियों और घास के मैदानों का नजारा जिसमें प्राचीन पेड़ों, कलात्मक जलते हुए शैंडलियर के नीचे आउटडोर डाइनिंग “बोमा” में परोसा जाने वाला डिनर, घास फूस के कमरे ये सब भी तो एडवेंचर ही कहा जाएगा? है ना?

चट्टान से छलांग, बाज की तरह आकाश की असीमित ऊँचाइयों से गोता लगाना ना हो तो नीचे हरी भरी धरती को खूब देर तक देखते रहना, देर तक किसी समुद्र के किनारे रेत पर कोई अपनी पसंद का नाम लिखते हुए बैठे रहना, समुद्री हवाओं को साँसों में भरते हुए ताजगी का कोई नया अहसास, प्रकृति की भूमिगत कला दीर्घाओं में प्रवेश, जहाँ दीवारों पर स्टेलैग्माइट और केल्साइट की उभरी हुई कलाकृतियाँ देखने के लिए केप टाउन, गार्डन रुट, मपुलमल्न्गा, साबी के रास्तों में जाने कितनी आदिम गुफाएँ [केविंग] मिलेंगी, यह विश्वास क्या कम सुन्दर कहा जा सकता है? ऐसा बहुत कुछ था दक्षिण अफ्रीका की यात्रा का आकर्षण|

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देखना था मुझे एक ऐसा स्थान, एक ऐसा देश जहाँ अब्सेलिंग क्लुफिंग के बड़े चर्चे होते हैं, रोमांच का एक अनोखा अनुभव सीधी चट्टानों पर नीचे की ओर जाना और अद्भुत अनुभव होता है इसमें दोहरी रस्सियों के सहारे नीचे उतरना, चेन रस्सियों के सहारे पहाड़ों से नीचे तंग घाटियों और बीहड़ से दिखते खड्डों में उतरना क्या प्रकृति में समाने जैसा नहीं कहा जाएगा?
हमने कितनी जगह सोची थी जाने की पर सब संभव नहीं होता| देखना चाहती थी पूर्व और पश्चिम के संगम का शहर, दक्षिण अफ्रीका का वह हिस्सा जहाँ भारतीय सबसे ज्यादा हैं, जहाँ देखनी थी आर्ट, संगीत और भोजन की मिश्रित शैली|

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एक शहर जहाँ नरम, रेतीले समुद्र तट हैं, सर्फिंग का आनंद है और साल भर गुनगुना मौसम रहता है| जी हाँ मैं डरबन जाना चाहती थी, सबट्रॉपिकल मौसम के चलते सुना था जहाँ साल भर एक सी हरियाली रहती है| किसी मित्र ने बताया था डरबन जाओ तो तट रेखा को देखने अल सुबह ला लूसिया रिज जाना|

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डरबन की खाड़ी को देखने के लिए दक्षिण की ओर देखना समुद्र वृत्ताकार घूमता हुआ दिखाई देखा, सलाह मिली थी शॉपिंग के लिए डरबन में कई जगह हैं, हालाँकि मैं सिर्फ घूमने ही जाती हूँ शॉपिंग के बाद घर आकर पछताने से बचती हूँ| उम्हलांगा की चट्टानों के आसपास समुद्र के इर्द गिर्द बनी पटरियों का एक अलग आनंद अब भी कहीं मन को आनंदित करता रहता है क्योंकि अपनी सीमित समय की दक्षिण अफ्रीका यात्रा में हमारे पास सबसे कम समय डरबन के लिए था| समय हमेशा हमसे वही करवाता है जो समय की मंशा पर समय द्वारा ही लिखा जाता है, शायद डरबन के लिए समय ने कहीं किसी अदृश्य वॉल पर हमारे लिए कोई और वक्त लिखा होगा, समय जब आएगा तो वहाँ की भी लम्बी यात्रा हो जाएगी यह आश्वासन मन को देना लाजमी लगता है यह जानते हुए भी कि डरबन दक्षिण अफ्रीका का तीसरा सबसे बड़ा शहर है| व्हेल और डॉलफिन को देखने के लिए तो डरबन जाना ही होगा पर यह वह बंदरगाह है जो विश्व के दस सबसे बड़े बंदरगाह में शामिल है|

दक्षिण अफ्रीका में ऐसा बहुत कुछ देखा है जो बताने लायक है जैसे केप टाउन और गार्डन रूट का प्राकृतिक विस्तार| और हाँ, इस्टर्न केप कोस्ट पर व्हाइट सैंड बीच भी तो है जो रजत पट सा दिखाई देता है| और हाँ, पोर्ट एलिजाबेथ तेज हवाओं वाला शहर, जहाँ जीवन आमतौर पर समुद्र के किनारे ही घूमता है और जिसे प्रकृति-प्रेमियों के लिए जन्नत कहा गया है| धन्यवाद नौवें विश्व हिंदी सम्मलेन जिसके बहाने एक डेस्टिनेशन के रूप में दक्षिण अफ्रीका की विविधता, सुन्दरता, संस्कृति, प्रकृति बहुत कुछ देखने को मिला|

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दक्षिण अफ्रीका सिर्फ जंगल जीवन नहीं है, सिर्फ एक अफ़्रीकी देश नहीं है यहाँ बहुत कुछ है लोगों से लेकर प्रकृति तक| जीवन की विविधता समेटे समृद्ध जीवन का कोई अनदेखा चित्रपट सा, जहाँ और भी कई अहसास हैं| एक ऐसा डेस्टिनेशन जहाँ से लौटने के बाद हम अपने जीवन पर पुनर्विचार करते हैं|

कहा जाता है कि दक्षिण अफ्रीका एक इन्द्रधनुषी देश है, जिसमें केप टाउन के लिए कहा जाता है कि इसका सोंदर्य किसी स्त्री के सौन्दर्य की तरह ही रहस्यमयी, चुम्बकीय आकर्षण वाला, रिझाने वाले शोख हसीन स्वरुप वाला है| यह शहर अपने अद्वितीय जीवन शैली के साथ दक्षिण अफ्रीका के किसी भी अन्य शहर की तुलना में बहुत अलग और ख़ास है|

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अफ्रीका की आनंद नगरी सा जीवन जहाँ लोग हलकी सी गुनगुनी धूप में वाइन का आनंद लेते, खूबसूरत तटों पर उतरती खेलती सूरज की रोशनी के साथ कोहरे में मुँह छुपाते बादलों से अठखेलियाँ करते टेबल माउंटेन को देखते हुए लुका छिपी का दृश्य अपने कैमरों में उतारने के लिए घंटों खड़े देखे जा सकते हैं|

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केप टाउन बेहद साफ़-सुथरा रंगीन शहर है| बो-कॉप में चटक रंगों से सजे घर, विक्टोरिया और अलबर्ट वॉटर फ्रंट में विदेशी-स्वदेशी संगीत गाते गुनगुनाते म्यूजिक प्रेमी, सलीके और करीने वाले शहर में शानदार होटलों में विभिन्न संस्कृतियों को दर्शाते लोग शहर की आन-बान-शान बढ़ाते हैं| किसी खदान से निकले तराशे हुए कोहिनूर सा यह शहर मनोरंजन की एक अलग अलख जगाये, अपनी संभावनाओं का विस्तार करता है| दक्षिण अफ्रीका में यात्रा के लिए यह एक सबसे ख़ास आकर्षण कहा जा सकता है कई आर्ट गैलरियों, म्यूजियमों, रेस्तरां और शानदार बारों वाला शहर जहाँ सूरज की किरणें आशा का संचार करती सी लगती हैं| कहीं पढ़ा था केप टाउन एक विशाल परिवार के सबसे लाडले बच्चे जैसा शहर है जिसे सब प्यार करते हैं| शायद ही कोई ऐसा पर्यटक होगा जो दक्षिण अफ्रीका जाए और यहाँ ना जाए? यात्रा में केप टाउन के साथ गार्डन रुट और केप वाइनलैंड्स की एक श्रृंखला है|

दक्षिण अफ्रीका के तटीय मैदान, गोल्फकोर्स, पुराने जंगल और खूबसूरत घरों वाले इस देश में गार्डन रूट सबसे ज्यादा दर्शनीय माना गया है| कहते हैं कि आउटशूम जो दुनिया के सबसे ज्यादा ऑस्ट्रिच की संख्या के कारण जाना जाता है, जिसे गार्डन रूट में ही शामिल कर दिया गया है| यह वही जगह तो है जहाँ कहते हैं कि कई सदियों से आदिम रहवासी और हाथी ऑतेनिक्वा पहाड़ों से आते जाते हैं| यहाँ बैरन वाइन फ़ार्म भी मशहूर है, यह प्लेटनबर्ग बे के बाहर स्थित है| यह एक महत्वाकांक्षी परियोजना है जिसने वाइन बनाने के काम को एक सर्वथा नवीन जगह स्थापित कर दिया|

खालिस अंगूर से बनी वाइन अफ्रीकी परंपरा का अटूट हिस्सा तो है ही, वहीं इसका लगातार बढ़ रहा कारोबार अफ्रीकी अर्थव्यस्था में अहम योगदान करता है। वादियों के आँचल में विस्तृत अंगूर के बागान को यहां आम बोलचाल में वाइनयार्ड्स या वाइन स्टेट्स कहते हैं। दरअसल पहले अंगूर के बागवान खुद ही परंपरागत तकनीक से वाइन बनाते थे इसलिए उनके बागान और डिस्टिलरी एकमुश्त थे। अब इस उद्यम ने संगठित उद्योग की शक्ल ले ली है। अकेले राबर्टसन वाइन वैली में ही 51 वाइनरीज हैं। वाइन का सुरूर आप पर हावी हो उसके पहले अफ्रीका का खास सदर्न राइट व्हेल, डॉलफिन, बोतल नोज, द हम्प बैक जरुर देख सकते हैं|

दक्षिण अफ्रीका के जंगल हमें पूरा इको सिस्टम तो समझाते ही हैं यह पर्यावरण तंत्र की सबसे अच्छी व्याख्या भी रेखांकित करते हैं| अपनी सुंदरता और समृद्धि की वजह से दक्षिण अफ्रीका ने कई संघर्ष देखे हैं| इसके अमूल्य हीरे और सोने जैसे बहुमूल्य संसाधनों के कारण कई अन्य देशों की नीयत इसके लिए बिगड़ती रही है|

इस देश को प्रकृति के शानदार प्रचूर मात्रा में मिले उपहार इसकी सम्पन्नता का एक हिस्सा है| एक कहावत याद आ रही है, कहते हैं कि यात्री वह देखता है जो उसे दिखता है, सैलानी वह देखता है जो वह देखने आया होता है कोई भी यात्रा तभी सफल होती है जब वह हमारी सब ना सही अधिकतर इच्छाओं को पूरी कर दे| गुलाबी हाथी तो नहीं दिखा पर बहुत कुछ ऐसा देखा जो मन के एल्बम में लग गयी तस्वीरों में संजोया है अपनी स्मृति पटल पर उकेरते हुए उसकी शब्दों की यायावरी तो अब करनी है लिखते हुए जो आपको भी ले जाए सुदूर दक्षिण अफ्रीका के उस अंतिम बिंदु तक जहाँ से इतिहास के पन्ने पलट गए थे|

एक देश जो टाइम ज़ोन में भारत से ३.५ घंटे पीछे है, जिसकी बहुलता का प्रतिनिधित्व इसके ९ प्रांत इस्टर्न केप, फ्री स्टेट, गौंतेंग, क्वाजुलुनाटला, लिंपोपो, नॉर्थ वेस्ट, नॉर्दन केप, म्पुमलांगा और वेस्टर्न केप करते हैं| जिसकी जलवायु मेरी यायावरी को सितम्बर के माह में पसंद आई थी जहाँ शांत और सुहावनी, गुनगुनी धूप वाले दिन थे| जो अमेरिका या यूरोप जैसा महँगा नहीं है, जिसकी मुद्रा रैंड है, जिसे लोग “बक” कहते हैं मुझे तो शासकीय व्यवस्थाओं के तहत जाना था पर घूमना तो अपनी ही जेब से था| इसलिए कुछ रुपए रैंड में कन्वर्ट कराकर ले गई थी|

एक रैंड शायद भारतीय रुपये में १७-१८ रुपये के बराबर होगा| बच्चों द्वारा समझा दिया गया था कि अफ्रीका में टिप देना एक प्रथा जैसा है देते रहिएगा, जो सुरक्षित और सम्मानित बने रहने में कारगर भूमिका अदा करती है| एक रेस्तरां में १०-१५ फीसदी टिप देना मानक है| उफ़! बगैर जरुरत एक पैसा भी बिगाड़ना मुझे पसंद नहीं है, पर सोचती हूँ पर्यटन लोगों का रोजगार भी है और प्रशंसा लोगों को बेहतर करने की प्रेरणा भी देती है इसलिए टिप को मैं प्रशंसा का माध्यम मान लेती हूँ|

दिमाग में वे सड़कें कभी नहीं थीं जो मलाई जैसी चिकनी हों, मुझे अमेरिका की सड़कों से ज्यादा सड़क किनारे के लॉन याद रहे जो अमेरिका को धूल के नामो निशान से मुक्त करते हैं, सड़क हमेशा अपने देश की, खास कर प्रदेश की याद रही, वह भी इंदौर से धार तक अपने गृह नगर के बीच की, जहाँ यह पूछना अत्याचार की श्रेणी में आएगा कि सड़क कहाँ है? या अखबारों के वे समाचार, जो कहते हैं कि पहली ही बारिश में सड़क बह गई, गड्ढे मत गिनियेगा? ऐसे में यदि कोई हमसे कहे, हमारी सड़कें मलाईदार या रेशमी सर्फेस वाली हैं तो आप विश्वास नहीं कर पाएँगे|

दक्षिण अफ्रीका के लिए मैंने सुना था वहाँ की चमकदार सड़कों का गुण गान| मैंने भी जाकर देखा किसी खोजी पत्रकार की तरह, सच्ची उनकी सड़कें रेशमी कपड़े की तरह हैं, लगता है कि बस फिसल ही जाएँगे| इसका प्रमाण है साउथ अफ्रीका के केप टाउन शहर से १५ किलोमीटर दूर चेपमेन पहाड़, जो पश्चिम केप प्रायद्वीपीय इलाके में है| इस पहाड़ की घाटियाँ पास ही समुद्र के किनारे को छूती हैं, वाह! इन पहाड़ों के क्या कहने?

एक अद्भुत अनुभव है इन पर से गुजरना| इन पहाड़ों के नाम की भी एक कहानी है, कहते हैं इन पहाड़ों का नाम एक अंग्रेज ब्रिटिश जहाज के कप्तान जॉन चेपमेन के नाम पर रखा गया है, यहाँ पहाड़ों को काट कर रास्ते बनाए गए हैं एक तरफ पहाड़ आपके सिर पर किसी छतरी की तरह एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैला हुआ है और दूसरी ओर नीले रंग का समंदर यहाँ से वहाँ तक, इस रास्ते पर लगता है तीन समानांतर रेखाएँ खिंची गई हैं एक पहाड़ी श्रृंखला, बीच में चिकनी चमकती सरसराती सड़क और तीसरी रेखा नीले पानी की| यह सड़क ड्राइविंग के लिए खूब प्रसिद्ध है रोमांच से भरपूर, एक अनोखी यात्रा| हालाँकि दुर्घटनाओं के चलते यहाँ तेज ड्राइविंग प्रतिबंधित है|

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इतनी खास विशेषताओं के बाद यह जानना भी जरुरी है कि दक्षिण अफ़्रीका, अफ़्रीका के दक्षिणी छोर पर स्थित है। दक्षिण अफ़्रीका उत्तर में नामीबिया, बोत्सवाना और जिम्बाब्वे तथा उत्तर-पूर्व में मोजाम्बिक और स्वाजीलैंड की सीमाओं के साथ लगता है। लेसोथो एक ऐसा स्वतंत्र देश है, जो पूरी तरह से दक्षिण अफ़्रीका से घिरा हुआ है। दक्षिण अफ़्रीका में पश्चिम से पूर्व तक बहती हुई लिम्पोपो नदी हिन्द महासागर में गिरती है। लिम्पोपो नदी को घड़ियाल नदी भी कहते हैं। भारत की तरह ही दक्षिण अफ़्रीका भी तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है।

दक्षिण अफ़्रीका में भी ग़रीबी, शिक्षा का अभाव और एचआईवी एड्स जैसी समस्याएँ हैं। जातीय रूप से सबसे ज़्यादा विविधताओं वाला देश दक्षिण अफ़्रीका ही है। दक्षिण अफ़्रीका में अफ़्रीका के किसी भी देश से ज़्यादा सफ़ेद रंग वाले लोग (गोरे लोग) रहते हैं। अफ़्रीकी जनजातियों के अलावा दक्षिण अफ़्रीका में कई एशियाई देशों के लोग भी हैं जिनमें सबसे ज़्यादा भारत से आए लोगों की संख्या है। हिन्दू धर्म के अनुयाइयों की उपस्थिति यहाँ साम्राज्यवाद-काल से बहुत पहले, मध्यकाल से ही रही है। दक्षिण अफ़्रीका एवं पूर्व अफ़्रीकी तटीय देशों में हिन्दू जनसंख्या अधिक संख्या में निवास करती है।

हमारे लिए यह जानना भी उतना ही आवश्यक है कि अफ्रीका हिंद महासागर के दूसरे छोर पर स्थित है, इसलिए प्रकृति ने ही उससे हमारा संबंध निश्चित कर दिया है। अफ्रीका से हमारे संबंध सदियों पुराने रहे हैं और भारत ने वहाँ के राजनैतिक ढाँचे, स्थापत्य-कला और रुचियों को काफी समय से प्रभावित किया है। पंद्रहवी शताब्दी के अंत में जब वास्को डी गामा केरल के तट पर उतरा तो पश्चिम से स्वयं व्यापार करने की भारतीय व्यापारियों की आकांक्षा बढ़ी। यूरोपीय सू़त्र को पकड़कर पहले भारतीय व्यापारी अफ्रीका पहुँचे, फिर पुर्तगालियों ने भारतीयों को मोजाम्बिक के अपने आधिपत्य वाले क्षेत्र में प्रशासनिक और शैक्षिक कामों में लगाया।

इसके साथ ही पुर्तगाली व्यापारियों के दास-सेवकों के रूप में भारतीय अफ्रीका पहुँचे| अफ्रीकी क्षेत्रों में गन्ने की खेती और रबड़ आदि के उत्पादन में कुशल श्रमिकों की आवश्यकता हुई। गन्ने आदि की खेती में भारतीयों की कुशलता के कारण बड़ी संख्या में तमिल क्षेत्रों, कोलकाता और हिंदी भाषी क्षेत्रों से अनुबंध के आधार पर लोगों को अफ्रीका ले जाया गया। लगभग 11 लाख लोग गिरमिटिया मजदूर की तरह अफ्रीका ले जाए गए। वहाँ उनके साथ दासवत ही व्यवहार होता था और वहाँ की कठिन परिस्थितियों में काफी लोग मर गए। फिर 1891 से 1896 के दौरान केन्या-युगांडा रेल लाइन बिछाने के लिए पंजाब से लगभग 32 हजार भारतीय मजदूरों को वहाँ ले जाया गया, जिनमें से 2500 जल्दी ही बीमारी, विपरीत मौसम और जंगली पशुओं का शिकार हो गए। फिर भी दक्षिण अफ्रीका, केन्या और तंजानिया आदि क्षेत्रों में उनकी अच्छी उपस्थिति थी। मॉरीशस में तो वे बड़ी संख्या में थे ही।

अफ़्रीका या कालद्वीप, एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है| अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवँ यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवँ हिन्द महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य (जो भूमि के दो बड़े टुकड़ों को जोड़ता है) इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है।

इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। माना जाता है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्‍यता की जन्‍मभूमि माना जाता है। यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र एवं कार्थेज) का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है|

यहाँ लोगों से मिलते हुए मेरे जेहन में गिर के जंगलों में रहने वाले कुछ लोगों के चेहरे उभर रहे थे, नए साल का एक जश्न हमने अपने परिवार के साथ जूनागढ़ और गिर के जंगलों की यात्रा करते हुए मनाया था तीनों बच्चे और दामाद आनंद भी साथ थे, दरअसल नया साल और तिवारी जी का जन्मदिन एक दिन के अंतर से ही आते हैं तो बच्चे अमेरिका से पापा के बर्थ-डे सेलिब्रेशन के लिए आते हैं, हम गिर के जंगल देखने जिस रिसोर्ट में रुके थे वहाँ शाम को कुछ आदिवासी लड़कों ने फायर केंप में अफ़्रीकी नृत्य प्रस्तुत किया था, तब रिसोर्ट के मैनेजर ने बताया था कि यहाँ गिर में कुछ अफ्रो-इंडियन रहते हैं, मतलब एंग्लो-इन्डियन की तरह एफ्रो-इन्डियन?

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गुजरात के जूनागढ़ से लगभग 100 किलोमीटर दूर जांबूर नामक स्थान पर बसा है भारत का यह दक्षिण अफ्रीका। वहाँ जाकर ऐसा लगता है मानो आप भारत में नहीं बल्कि अफ्रीका के किसी गाँव में हैं। दरअसल ये लोग अफ्रीकी मूल के गुजराती हैं, जो जांबूर गाँव में रहते हैं। वे पूरी तरह गुजरात के खानपान, रहन-सहन और रीति-रिवाजों में रंग चुके हैं। गुजरात में उन्हें सिद्दी बादशाह या फिर हब्शी के नाम से जाना जाता है, जो कि मुस्लिम धर्मावलंबी हैं। गुजरात में इनके आगमन के बारे में कहा जाता है कि आज से तकरीबन दो सौ साल पहले जूनागढ़ के नवाब इन लोगों को यहाँ पर लेकर आए थे। उस वक्त गिर के जंगलों में शेरों ने बहुत ही आंतक मचा रखा था।

आए दिन वे गाँव में घुसकर लोगों को अपना शिकार बनाते थे। तब किसी ने नवाब को बताया कि साउथ अफ्रीकी लोग शेरों को काबू में करना अच्छी तरह जानते हैं। नवाब उस समय दस-बारह लोगों को साउथ अफ्रीका से यहाँ लाए थे। वर्तमान में कुछ सिद्दी बादशाह गिर के जंगलों में स्थित अभयारण्यों में सुरक्षा गार्ड्‍स की नौकरी करते हैं तो कुछ ऑटो चलाकर अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं। दरअसल यह प्रजाति आदिवासियों की प्रजाति नहीं है फिर भी इस प्रजाति को अब भारत में आदिवासी का दर्जा मिल चुका है। सरकार की तरफ से आदिवासियों के लिए मिलने वाली सभी सुविधाएँ इन्हें मिली हुई हैं। इनका ‘धमाल’ नृत्य पूरी दुनिया में विख्यात है|

एक विचित्र संयोग था कि दो यात्राएँ मेरे अन्दर कैसे एक दूसरे को कोरिलेट कर रही थीं? मैं देख रही हूँ अफ्रीका के लोगों को, अपनी टैक्सी में, रेस्टॉरेंट में, रिसेप्शन पर, सम्मलेन में ,पर मन? मन लौट कर भारत के गिर के जंगलों की तरफ जा रहा है? याद आ रहे हैं खाल और पत्ते लपेटे चेहरे पर सफ़ेद पेंट से डरावना मेकअप किए लड़के जिन्हें अफ़्रीकी नस्ल का बताया गया था, हाँ उस बात में मुझे सच्चाई लगती है, फिर शेरों को वश में करने की कला भी अफ्रीका में ही देखी, गिर में भी तो शेर हैं| सोचती हूँ श्रम और बहादुरी का भी आयात निर्यात दुनिया में कितना पुराना है| रोजी रोटी आदमी को कहाँ ले जाकर बसा देती है| मेरे मन में कभी अफ्रीका के जंगल और कभी गिर के जंगल आ जा रहे थे और वो गिरमिटिया कौन? जो मजदूरी के लिए यहाँ से वहाँ ले जाए जाएँ वे गिरमिटिया ही तो हुए, तो क्या जो भारत लाए गए थे वे गिरमिटिया नहीं कहे जाने चाहिए?

जंगल से याद आई बचपन की सुनी बातें, जब छोटे थे तो भूत-प्रेत के किस्से सुनने में बड़ा मजा आता था, आज भी आता है पर तब की बात ही कुछ और थी| गाल पर हाथ टिकाए आश्चर्य से चौड़ी होती आँखें लिए सुनते थे, फिर? फिर क्या हुआ? ऐसे ही एक बार एक विचित्र किन्तु सत्य कहा जाने वाला किस्सा सुना था कि अफ्रीका के जंगल अपने रहस्य के लिए भी जाने जाते हैं| यहाँ ऐसे कई दिलचस्प पेड़ पाए जाते हैं जिनके बारे में सुनने पर आप अचरज में पड़ जाएँगे| यहाँ के जंगलों में ऐसा पेड़ पाया जाता है जो इंसानों की तरह हँसने वाली आवाज़ निकालता है।

जिसके फूलों में आटा या दूसरी कोई पिसी चीज लगा देने से हँसने जैसी आवाज़ पैदा होती है। दक्षिण अफ्रीका के घने जंगलों में नरभक्षी पेड़ भी पाया जाता है। किस्सों में कभी सुना था, इसके अलावा इंसानों या किसी जीव का खून चूसने वाले पेड़ भी इन्हीं जंगलों में पाए जाते हैं। यहाँ पाया जाने वाला एक पेड़ तो ऐसा है जिसके तने से धुआँ निकलता है, जबकि ऐसा ही एक पेड़ है जो खुद ही आग की लपटों जैसा जलने लगता है। जिसके फूल तेल फेंकने लगते हैं और तेल अपने आप गैस बनकर जलने लगता है। देखने का मन है ऐसे पेड़ को पर कौन दिखाए, कैसे समझाऊँ गाइड को इतनी अँग्रेजी कहाँ आती है कि इसे अजीबोगरीब किस्से को ट्रांसलेट कर पूछूँ क्या उसने ऐसा कोई पेड़ देखा है? कोशिश करती हूँ पर नहीं समझा पाती|

केप टाउन में क्रिकेट मैच होने वाला है न्यूज वाले चैनल बता रहे हैं हाँ याद आया अपने गहरे समुद्रों और घने जंगलों की वजह से जाना जाने वाला दक्षिण अफ्रीका भारतीयों में वहाँ होने वाले क्रिकेट मैचों के लिए काफी लोकप्रिय है नस्लभेदी सरकार के अंत के बाद जब दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट में लौटा, तो भारत ने पहली बार मेज़बानी की| दोनों के बीच पहला वनडे 10 नवंबर, 1991 को कोलकाता के ईडन गार्डंस में खेला गया| अफ्रीका से हमारा रिश्ता कोई 10 नवम्बर 1991 से क्रिकेट के कारण नहीं है बल्कि भारत-अफ्रीका को जोड़ने वाली सबसे मज़बूत डोर है दक्षिण अफ्रीका में बिताया महात्मा गाँधी का कीमती वक्‍़त|

वहाँ गाँधीजी द्वारा गुज़ारे 21 सालों में वे सिर्फ मोहनदास करमचंद गाँधी वकील ना रहकर कार्यकर्ता, फिर नेता और फिर महात्मा में बदले| अहिंसा और सत्याग्रह जैसे सिद्धांतों का पहला प्रयोग भी गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका में ही किया, सत्याग्रह हाउस है तो इसका शाश्वत प्रमाण| मुझे तो गाँधी वाला अफ्रीका भी देखना था| अफ्रीका हमारे लिए अमेरिका या यूरोप की तरह का आकर्षण नहीं रहा, पर एक दूसरे महाद्वीप की यात्रा या विदेश यात्रा के आकर्षण की तरह तो रहा ही है| सारे भारतीय जानते हैं कि महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह का मार्ग इसी देश से साधा था| महात्मा गाँधी 1893 में दक्षिण अफ्रीका पहुँचे थे और अगले 21 साल यहाँ रहे| एक ट्रेन के प्रथम श्रेणी के कम्पार्टमेंट से निकाले जाने की घटना के बाद इस देश में भारतीयों के कानूनी और राजनीतिक अधिकारों की लड़ाई का नेतृत्व करने की वजह से वे उस वक्त यहाँ रंगभेदी सरकार के बड़े दुश्मन बन गए थे|

कहा जाता है कि गाँधीजी के सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन की नीति ने अश्वेत लोगों को इसी तरह के विरोध प्रदर्शन करने व एकजुट होने के लिए प्रेरित किया| इतिहासकार मानते हैं कि अफ्रीकन नेशनल काँग्रेस (एएनसी) की स्थापना की मूल प्रेरणा गाँधीजी ही थे| इसी पार्टी ने ही अफ्रीका में रंगभेद नीति के विरोध में राजनीतिक आंदोलन खड़ा किया| एएनसी ने नेल्सन मंडेला के नेतृत्व में 1994 का चुनाव जीता था और इसके साथ ही देश से रंगभेद औपचारिक रूप से खत्म हो गया|

हमारे महात्मा गाँधी हमें अपने देश में कम याद आते हैं, पर किसी दूसरे देश में गाँधी प्रतिमा देखते हैं तो गर्व से कैसे सिर ऊँचा कर लेते हैं हम भारत वासी, जोहान्सबर्ग में गाँधी चौराहे पर 2003 में लगी गाँधी प्रतिमा को देखती हूँ| इस स्क्वेयर का नाम ही गाँधी स्क्वेयर है, मन कैसे प्रसन्नता से भर भर जाता है, एक पल को लगता है अपने पिता को देख रही हूँ, प्रतिमा को भरे मन से नमन भी करती हूँ, फिर जाने कैसी पीड़ा मन पर हावी होने लगी, कैसे अपने ही देश में गाँधी जी को लोग राजनैतिक स्वार्थों के लिए कुछ भी बोलते हैं, दिमाग में गाँधीगिरी चालू होने लगती है, हम एक रेस्तरां में एक एक कप कॉफ़ी लेते हैं|

दक्षिण अफ्रीका की यात्रा मेरे लिए अब यात्रा भर नहीं रही गाँधी तीर्थ नाम देती हूँ मैं इसे, आपकी क्या राय है?

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Author profile
Dr. Swati Tiwari
डॉ .स्वाति तिवारी

डॉ. स्वाति तिवारी

जन्म : 17 फरवरी, धार (मध्यप्रदेश)

नई शताब्दी में संवेदना, सोच और शिल्प की बहुआयामिता से उल्लेखनीय रचनात्मक हस्तक्षेप करनेवाली महत्त्वपूर्ण रचनाकार स्वाति तिवारी ने पाठकों व आलोचकों के मध्य पर्याप्त प्रतिष्ठा अर्जित की है। सामाजिक सरोकारों से सक्रिय प्रतिबद्धता, नवीन वैचारिक संरचनाओं के प्रति उत्सुकता और नैतिक निजता की ललक उन्हें विशिष्ट बनाती है।

देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कहानी, लेख, कविता, व्यंग्य, रिपोर्ताज व आलोचना का प्रकाशन। विविध विधाओं की चौदह से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। एक कहानीकार के रूप में सकारात्मक रचनाशीलता के अनेक आयामों की पक्षधर। हंस, नया ज्ञानोदय, लमही, पाखी, परिकथा, बिम्ब, वर्तमान साहित्य इत्यादि में प्रकाशित कहानियाँ चर्चित व प्रशंसित।  लोक-संस्कृति एवं लोक-भाषा के सम्वर्धन की दिशा में सतत सक्रिय।

स्वाति तिवारी मानव अधिकारों की सशक्त पैरोकार, कुशल संगठनकर्ता व प्रभावी वक्ता के रूप में सुपरिचित हैं। अनेक पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का सम्पादन। फ़िल्म निर्माण व निर्देशन में भी निपुण। ‘इंदौर लेखिका संघ’ का गठन। ‘दिल्ली लेखिका संघ’ की सचिव रहीं। अनेक पुरस्कारों व सम्मानों से विभूषित। विश्व के अनेक देशों की यात्राएँ।

विभिन्न रचनाएँ अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में अनूदित। अनेक विश्वविद्यालयों में कहानियों पर शोध कार्य ।

सम्प्रति : ‘मीडियावाला डॉट कॉम’ में साहित्य सम्पादक, पत्रकार, पर्यावरणविद एवं पक्षी छायाकार।

ईमेल : stswatitiwari@gmail.com

मो. : 7974534394