इंदौर के महापौर उम्मीदवार को लेकर भाजपा पसोपेश में, जो नाम चर्चा में उनकी जनता में पहचान नहीं!

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Pachmarhi
Election

मीडियावाला के संपादक हेमंत पाल का जमीनी विश्लेषण

इंदौर के महापौर पद का मसला भाजपा के लिए उलझता नजर आ रहा है। विधायक को महापौर पद की उम्मीदवारी न देने के पार्टी के नीतिगत फैसले से भाजपा में जो पेंच आ गया, उसका आसान हल नजर नहीं आ रहा! बात सिर्फ उम्मीदवार का नाम घोषित करना नहीं, बल्कि इस पद के लिए ऐसे चेहरे को चुनना है, जिसकी जनता में अपनी पहचान होने के साथ स्वीकार्यता भी हो! फ़िलहाल तो ऐसा कोई नाम सामने दिखाई नहीं दे रहा!  images 6

भाजपा की परेशानी का बड़ा कारण यह भी है, कि कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार संजय शुक्ला के नाम की घोषणा काफी पहले कर दी। अब भाजपा के सामने दोहरी चुनौती है। उसे ऐसे उम्मीदवार की तलाश है, जो पार्टी की साख और पहचान को बनाए रखे और कांग्रेस के उम्मीदवार से मुकाबला करके किला फतह करने का दमखम रखता हो!

राजनीति के जानकर भी समझ रहे कि भाजपा को ऐसा कोई सर्वमान्य चेहरा दिखाई नहीं दे रहा, जो इंदौर की जनता को स्वीकार हो! क्योंकि, ये चुनाव नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह के चेहरे पर नहीं जीता जा सकता! ये गली-मोहल्ले की समस्याओं को हल करने के भरोसे पर जीता जाने वाला चुनाव है। सड़क, गंदगी, पानी, साफ-सफाई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर लोग अपना वोट देते हैं। इसके अलावा भी सबके पास अपने अलग-अलग मुद्दे हैं। उन्हीं समस्याओं को हल के लिए लोग महापौर का चुनाव करते हैं। इसमें केंद्र सरकार या राज्य सरकार की भूमिका को लगभग नगण्य होती है। राज्य सरकार की भूमिका को थोड़ा बहुत इसलिए देखा जाता है कि यदि भाजपा की सरकार है और इंदौर में भी भाजपा का महापौर है, तो सामंजस्य बना रहता है!    download

ऐसी स्थिति में विधायक रमेश मेंदोला ही एकमात्र उम्मीदवार सामने हैं, जो हर तरह से संजय शुक्ला का मुकाबला करने में समर्थ समझे जा सकते हैं। लेकिन, पार्टी ने उनके विधायक होने का बैरियर लगाकर रोक दिया। अब वे खुद चुनाव मैदान में नहीं होंगे, पर संभागीय चुनाव समिति सदस्य के तौर पर सही उम्मीदवार जरूर चुनेंगे! लेकिन, जो नाम चर्चा में हैं, उनमें से कोई ऐसा नहीं, जिसकी जीत का ख़म ठोंककर दावा किया जा सके। डॉ निशांत खरे और पुष्यमित्र भार्गव जरूर चर्चा में हैं, पर दोनों संघ से निकले हैं, न कि भाजपा से। लेकिन, संघ ने भी इस बात की पुष्टि नहीं की है कि वो इन दोनों के नाम का समर्थन करता है। डॉ निशांत खरे मुख्यमंत्री की पसंद हैं और पुष्यमित्र भार्गव का झंडा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने उठा रखा है!                                                                                    kailash vijayvargiya 69389

लेकिन, भाजपा के नेता और कार्यकर्ता का झंडा किसी के हाथ में नहीं है, सिवाय भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के। वे अकेले नेता हैं, जिन्होंने कहा कि महापौर पद का उम्मीदवार उसे बनाया जाए, जो पार्टी का कार्यकर्ता हो! इसका सीधा सा आशय है कि भाजपा उम्मीदवार थोपा न जाए, जिसकी कोशिश हो रही है।

इंदौर में महापौर की सीट सामान्य वर्ग के लिए है। लेकिन, यहां के जो भाजपा नेता महापौर का चुनाव लड़ने के लिए बेताब रहे हैं, उनमें ज्यादातर वही हैं, जो ओबीसी वर्ग से आते हैं। मधु वर्मा और जीतू जिराती दोनों ओबीसी होने के साथ हारे हुए विधायक हैं। दोनों ने अपने समर्थकों के जरिए सोशल मीडिया पर माहौल बनाने की कोशिश भी की, पर बात नहीं बनी। पार्टी ने इन दोनों को रमेश मेंदोला के साथ संभागीय चयन समिति में शामिल करके इनकी संभावनाओं को ख़त्म ही कर दिया। क्योंकि, जब इंदौर की सीट सामान्य है, तो उसे किसी ओबीसी उम्मीदवार को खड़ा किया जाना उचित नहीं कहा जा सकता! स्वाभाविक है कि ऐसा कुछ होता है, तो सामान्य वर्ग की नाराजी पार्टी को झेलना पड़ सकती है।

सियासी मंथन में माहिर लोगों को भी फ़िलहाल ऐसा कोई चेहरा नजर नहीं आ रहा, जो हर तरह से शहर की जनता को स्वीकार हो। भाजपा के नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे जैसे कुछ नाम भी हवा में हैं। लेकिन, वे पार्टी के नेता हो सकते हैं, जन नेता नहीं बन सकते। यदि उनका नाम आगे आता है, तो पार्टी के अंदर से ही खुलकर विरोध खड़ा होना तय है। उन्हें पूर्व संगठन महामंत्री सुहास भगत का ख़ास माना जाता रहा है। यदि उनका नाम सामने आता है, तो उनकी इसी योग्यता के कारण उनका पत्ता कटना तय है।                                                                    download 1

इसके अलावा संघ के खाते से डॉ निशांत खरे और पुष्यमित्र भार्गव के नाम भी चर्चा में लाने की कोशिश हो रही हैं! पर ये दोनों नाम इतने चर्चित नहीं हैं, कि इंदौर की जनता उन्हें पांच साल के लिए शहर की चाभी सौंप दे। डॉ खरे पेशे से डॉक्टर हैं और संघ की प्रतिनिधि सभा में हैं। कोरोना काल में वे प्रशासन के साथ संघ की तरफ से काम भी कर रहे थे। उन्होंने कई बार प्रशासन के साथ मंच की शोभा भी बढ़ाई, इसलिए अखबारों में उनका नाम छपता रहा! पर, वे महापौर बन सकते हैं, ऐसा दावा नहीं किया जा सकता। यदि वे और पार्टी ऐसा सोच रही है, तो यह ग़लतफ़हमी ही कही जाएगी। इसका कारण यह भी है कि कांग्रेस ने सामने जो उम्मीदवार उतारा है, वो किसी भी नजरिए से कमजोर नहीं है। इसी कड़ी में एक नाम पुष्यमित्र भार्गव का भी है, जो प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के नजदीकी हैं और पेशे से वकील हैं। लेकिन, पार्टी के एक धड़े का मानना है कि उनके लिए यह पड़ाव मुश्किल होगा। परखा जाए तो वे डॉ खरे जितनी भी पहचान नहीं रखते।

इसके अलावा भी कई ऐसे नेता हैं, जो अपने कथित समर्थकों के जरिए सोशल मीडिया पर अपना नाम चलाने की कोशिश कर रहे हैं, जिनका अपने शहर में ही कोई आधार नहीं है। लेकिन, वे जीत सकेंगे इसमें संदेह है। क्योंकि, भाजपा की परेशानी का बड़ा कारण यह है, कि कांग्रेस ने जो उम्मीदवार खड़ा किया, उसकी अपनी जमीनी पकड़ मजबूत है। साधनों की सम्पन्नता में भी उसे कमजोर नहीं समझा जा सकता। संजय शुक्ला को इस बात का भी फ़ायदा मिलेगा कि उनका आधा परिवार भाजपा से जुड़ा है। उनके पिता और भाई भाजपा में है और वे खुद कांग्रेस से विधायक हैं। कोरोना काल में जब ज्यादातर नेता घरों में कैद थे, उन्होंने लोगों की सड़क पर आकर मदद की, जिसे लोग भूले नहीं हैं।

कोरोना काल में उन्होंने शहर के लोगों और शहर से गुजरने वालों के लिए भी बहुत कुछ किया। दवाइयों के लिए जद्दोजहद और गरीबों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए भी वे जूझते रहे। इंदौर से गुजरने वाले लोगों को खाना और चप्पलें बांटी। यह वो संकट का समय था, जब भाजपा के नेता कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। इसके अलावा सबसे बड़ा मुद्दा जो भाजपा को नुकसान देगा, वह है नगर निगम का लगातार बढ़ता टैक्स। नगर निगम ने जनता को टैक्स के बोझ से लाद दिया है। लोगों की वो नाराजी भी भाजपा को झेलना पड़ेगी। ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय की सलाह ही सबसे सही लग रही है कि ‘पार्टी कार्यकर्ता को उम्मीदवार बनाया जाए!’ ऐसे में यदि मुख्यमंत्री या प्रदेश अध्यक्ष की पसंद को इंदौर की जनता पर थोपने की कोशिश की गई, तो पांसा उल्टा पड़ने में देर नहीं लगेगी! क्योंकि, पार्टी में सेबोटेज का खतरा भी खड़ा हो सकता है।