ऑपरेशन लोटस की धुरी फिलहाल महाराष्ट्र है और इसकी तुलना दो साल पहले मध्यप्रदेश में हुए बदलाव से हो रही है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के हालात बाहरी तौर पर देखने में भले ही एक जैसे नजर आ रहे हों, लेकिन दोनों में आंतरिक तौर पर अंतर बहुत है। पहला तो बड़ा अंतर यह है कि मध्यप्रदेश में जन्मजात कांग्रेसी विचारधारा के सभी नेता अपनों से खिन्न होकर हिंदुत्व की विचारधारा और केसरिया रंग में रंगने को बेताब हुए थे। वहीं महाराष्ट्र में हिंदुत्व विचारधारा के दल ने अपनी मूल स्थिति को बरकरार रखते हुए हिंदुत्व विचारधारा के दूसरे बड़े दल को दरकिनार कर कांग्रेस की विचारधारा के दलों से गठबंधन किया था और अब उसके कुछ विधायक एक बार फिर हिंदुत्व विचारधारा के बड़े दल की तरफ हाथ बढ़ा रहे हैं।
तो दूसरा अंतर यह भी है कि मध्यप्रदेश में इस्तीफा देने के बाद भी निवर्तमान मुख्यमंत्री ने सीएम हाउस खाली करने में पर्याप्त वक्त लिया था। वहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री इस्तीफा देने से पहले ही सीएम हाउस खाली कर अपने घर “मातो श्री” की ममता की छांव मे पहुंच गए हैं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के गिरने के बाद भी कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर काबिज रहे और अब भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के बतौर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं। तो शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे सीएम पद के साथ पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने का प्रस्ताव दे चुके हैं और अपने दल के विधायकों से यही गुजारिश कर रहे हैं कि मुंबई आकर खुले मन से बात तो हो। समानता अगर है तो सबसे बड़ी यह कि दोनों ही जगह पीड़ित पक्ष में कांग्रेस शामिल है और बागी विधायकों पर वरदहस्त उसी विचारधारा का है, जिसका मध्यप्रदेश में था। रिसॉर्ट, सुरक्षा और चार्टर्ड बसों की चमक भी एक जैसी है। तो शिफ्टिंग के दौरान सुरक्षित हवाई सफर की प्रकृति भी एक जैसी है।
अंतर यह भी है कि मध्यप्रदेश में तो खेल भाजपा और कांग्रेस के बीच था। महाराष्ट्र में खेल में भाजपा भले ही हो, लेकिन मुख्य संग्राम तो शिव सेना के सैनिकों के बीच है। शायद इसीलिए मध्यप्रदेश में माहौल पूरी तरह से नोंक-झोंक भरा था, लेकिन उद्धव ठाकरे बहुत ही कोमलता से भरे याचक बनकर अपनों की मान-मनौव्वल करते दिखाई दे रहे हैं। एक कहावत याद आ रही है कि हाथी के दांत खाने के अलग होते हैं और दिखाने के अलग। उद्धव जितनी कोमलता का अहसास करा रहे हैं, इसमें भी उनकी कठोरता छिप नहीं रही।
और शेर शिकार करने से पहले इतनी सावधानी बरतता है, चुप्पी साधता है कि शिकारी को सांस लेने की भनक भी न लग पाए। शिंदे ने भी अगर यही किया, तो हो सकता है कि उद्धव भी अब यही कर रहे हों। अंतर यह भी है कि मध्यप्रदेश में दल-बदल कानून की कसौटी पर बागी विधायकों की संख्या खरी नहीं उतरी थी। सभी विधायकों ने इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता लेकर फिर से चुनाव लड़ा था।
महाराष्ट्र की तस्वीर पर गौर करें तो मूल स्थिति तो यह है कि शिवसेना की गद्दी किसके खाते में जाएगी? शिंदे के खाते में गई, तो क्या उद्धव शांत बैठ जाएंगे। या फिर शिंदे के अरमानों पर पानी फेरने का काम करेंगे? तो दूसरी तरफ मराठी मानुष क्या बाला साहब ठाकरे का चेहरा इतनी जल्दी भुला देगा कि उनके परिवार को संकट में छोड़ शिंदे की मुस्कान पर फिदा हो जाए? मराठी माटी की तासीर शायद ऐसी कतई नहीं है। इस बात का अहसास शिंदे को भी होगा। वहीं उद्धव ठाकरे ने भी पूरा भरोसा यदि शिंदे पर किया है, तो कोई न कोई ब्रह्मास्त्र अपने पास भी बचाकर जरूर रखा होगा।
महाराष्ट्र के वर्तमान हालात और उद्धव ठाकरे पर मिर्ज़ा ग़ालिब का यह शेर पूरी तरह से माकूल है। हमें तो अपनों ने लूटा गैरो में कहाँ दम था। इसकी दूसरी लाइन है कि अपनी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था। पर जिस तरह से महाराष्ट्र की राजनीति में शिंदे का कद लगातार बढ़ता गया, उसमें यह कतई नहीं कहा जा सकता कि कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था। यहां लूटा तो अपनों ने है, पर पानीदार बनकर।
कश्ती उथले नहीं, गहरे पानी में ही डूबी है। वरना ऐसे हालात कभी न बन पाते कि दो तिहाई विधायक मूल दल से अलग होने का मन बनाकर रिसॉर्ट की शरण में जाकर सूरत संभालकर गुवाहाटी चले जाएं और ठाकरे परिवार हाथ पर हाथ रखे बैठने को मजबूर हो जाए। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में राज्यपाल की भूमिका भले ही एक जैसी रहे और बागी विधायकों को संरक्षण भी पूरा मिले, लेकिन उस एपीसोड को भुलाया नहीं जा सकता है जब राज्यपाल ने फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी और बाद में उन्हें अल्पमत की वजह से इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा था।
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फिलहाल ऑपरेशन लोटस भले ही सफल हो लेकिन मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के हालात अलग-अलग हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ राजनीति के चाणक्य शरद पवार और शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे बनाम फडणवीस और शिंदे का सियासी संग्राम समुद्र की तरह शांत और गंभीर दिखने के साथ ज्वार-भाटा की उथल-पुथल से भी भरा है, मध्यप्रदेश की तरह सीधा और सपाट कतई नहीं। ऑपरेशन लोटस में महाराष्ट्र के हालात मध्यप्रदेश से जुदा हैं। बदलाव की कोशिश से पहले भी जुदा हैं और बदलाव की सफलता के बाद भी जुदा रहेंगे…।