मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह नसीहत सिंगरौली में महापौर प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में मतदाताओं को दी है कि शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, पर ध्यान रखना कि इसमें फंसना नहीं है। मतदाताओं के लिए यह नसीहत गांठ में बांधकर रखने लायक है। सिंगरौली नहीं पूरे प्रदेश और देश के मतदाताओं ने अगर इस पर अमल करने की ठान ली, तो देश का भाग्य पांच साल में भी बदल जाए। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद का नाम ‘भाग्यनगर’ करने का भाव प्रकट किया है। पर अगर मतदाताओं ने शिवराज की नसीहत पर अमल किया तो प्रदेश-देश का हर नगर ही ‘भाग्यनगर’ बन सकता है। शिवराज के विचारों की गूंज देवर्षि नारद के कानों तक पहुंच गई। तो वह गहन ध्यान से बाहर आकर देवभूमि के ह्रदयप्रदेश के सिंगरौली नामक स्थान पर पहुंच गए। यह जानने के लिए कि माजरा क्या है, जो इतनी गहन सीख दी जा रही है। वहां पहुंचकर देवर्षि को पता चला कि नगरीय निकाय चुनाव का संदर्भ है और मतदाता ठगे न जाएं और सतर्कता से सब कुछ जानकर यह तय करें कि किसको मत देकर शिकार होने से बचा जा सकता है। यही सीख शिवराज दे रहे हैं। देवर्षि समझ गए कि माजरा गंभीर है।
इस बीच जानवरों की आवाजें भी देवर्षि का ध्यान अपनी ओर खींचने लगीं। नारायण-नारायण रटते हुए देवर्षि ने आंखें मूंदी, तो पास में ही बाघ, चीते, भालुओं के गुर्राने की आवाज सुनाई देने लगीं। ध्यान लगाया तो पता चला कि पास में ही दो नेशनल पार्क हैं। संजय राष्ट्रीय उद्यान, सीधी जिले में स्थित है। थोड़ा दूर नजर डाली तो और ज्यादा बाघों की आवाजें सुनाई देने लगीं। पता चला कि यह बांधवगढ़ नेशनल पार्क है, उमरिया जिले में स्थित है। ऐसा राष्ट्रीय उद्यान है जो 32 पहाड़ियों से घिरा है। ह्रदयप्रदेश में और नजर डाली तो बाघ ही बाघ और नेशनल पार्क नजर आने लगे। देवर्षि का दिल खुश हो गया। वे एक वन अफसर के पास पहुंच गए और पत्रकार बनकर सवाल करने लगे कि साहब यह बताओ कि यदि कोई बाघ का या अन्य वन्यजीव का शिकार करता है, तो सजा का प्रावधान क्या है? साहब का तो यह प्रिय विषय था, सो वह वृतांत को विस्तार से बखान करने लगे।
वन अफसर ने बताया कि विप्र…शिकारी जो वन्यजीव का शिकार करते हैं, उनके खिलाफ कड़ी सजा का प्रावधान है। जानवरों पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया था। इसका मकसद वन्य जीवों के अवैध शिकार, मांस और खाल के व्यापार पर रोक लगाना था। इसमें वर्ष 2003 में संशोधन किया गया जिसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 रखा गया। इसमें दंड और जुर्माना को और भी कठोर कर दिया गया है। इसके सेक्शन 9 के तहत शिकार पर प्रतिबंध है। इस एक्ट में चार सूचियां बनाकर 200 से ज्यादा जानवरों को रखा गया है। इन सूचियों में पहली सूची में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और बड़े जानवरों को रखा गया है। जिनके शिकार पर कम से कम तीन और ज्यादा से ज्यादा 7 साल की कैद के साथ 10 हज़ार रुपये कैद तक की सजा हो सकती है। हालांकि अगर दूसरी बार भी कोई शिकार करता है तो उसका जुर्माना बढ़कर 25,000 रुपये हो जाता है। इसी कानून के तहत जंगली जानवरों को कैद करना या किसी भी जंगली जानवर को पकड़ना, फंसाना, जहर देना या लालच देना दंडनीय अपराध है। इसके दोषी को सात साल तक की सजा या 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
पूरा वृतांत सुनकर नारायण-नारायण जपते नारद जी वहां से अंतर्ध्यान हो गए। एक जगह चुनावी सभा हो रही थी, तो वह मतदाताओं के मन की बात जानने लगे। एक अस्सी साल के बुजुर्ग के पास पहुंच गए। मासूमियत से सवाल दाग दिया कि दादा कितने चुनाव देख लए। दादा बोले कि हमने चुनाव तो पूरे देखें हैं देश के, पर वोट एकाध चुनाव में नहीं दे पाए। देवर्षि ने दूसरा सवाल दाग दिया कि दादा जौ बताओ कि का नेता मतदाताओं का शिकार कर लेत हैं। दाना डालकें जाल में फंसा लेत हैं का। सवाल सुनकैं दादा सोच में पड़ गए। बोले कि बात तो सही कहत हो बेटा। शिकार तो होत है मतदाता को, लेकिन बिडंबना जो है कि और कौनऊ चारा नईंया मतदाता के पास। अब ई 21 वीं सदी में तो हालत भौत सुधर गई भैया। मानो बीसवी सदी में तो मतदाता अंगूठा छाप और नेता चतुर-चालाक। भोले-भाले मतदाता खौं थोडे़ से दाने चुगा कै ही जाल में फंसा लेत ते। मानो अब हालत भौत सुधरी है…फिर दादा गहरी सांस लेके बोले कि फिर भी शिकार तो मतदाता को होई रओ भैया। अब तुमई बताओ कि जिन नेतन खौं तनक सी वेतन मिलत, उनके तो महल बन गए और मतदाता तो अबे तक झोपड़ी मेंई घिसट रओ। का मानें ईखौं। पर दादा ने बड़े मन से बात करी कि भैया नेता भी अपनें और देश भी अपनों। कैऊ नेता चले गए दुनिया छोड़ कैं, हमाई उमर निकर गई…पर हमने कोऊ खौं मुड़ी से बांध कै कछू लै जातन नईं देखौ। जिननें जितनों शिकार करवे की सोची, उनकी उतनी अई कुगत (दुर्दशा) भई। देश से जीने दगा करो, ऊनैं कभऊं सुख नईं भोग पाऔ। जवानी में भलेई मजा करत दिखाऊत रयै, पर भैया भुगतौ तो सबनै इतईं है सब।
देवर्षि ने अंतिम सवाल दाग दओ कि दादा तुमाए ई क्षेत्र में तो जंगली जानवर भी भौंत हैं। दादा भी ताड़ गए सवाल और बोलन लगे कि हां भैया पहले तो इनकौ खुल्लम खुल्ला शिकार होत तौ, मानो अब भौत कड़ाई हो गई। अब तो जेल और जुर्माना के डर से शिकारियन की हवा खराब है। और भैया हो सकै तो इन नेतन के लानै भी ऐसो कछू हो जाए कि जिननैं शिकार करो मतदाताओं खौ, उन्हें भी मजा लेवे की जगह सजा भुगतनै परै, तो हो सकत कै हालत पूरे सुधर जाएं और देश कौ भी भलौ हो जाए। देवर्षि भी दादा के मन की बात सुन यह सोचने लगे कि वाह री बिडंबना कि जानवरों के शिकारियों को सजा और मतदाताओं के शिकारियों का मजा। और सूर्यास्त होता देख नारायण-नारायण जपते देवर्षि देवलोक को प्रस्थान कर गए।