राज्य को “काग” जैसा संवेदनशीलता भरा “राग” चाहिए …

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पिछले दो दिनों में वायरल हुई दो तस्वीरों ने मन को उद्वेलित कर दिया है। एक तस्वीर 9 जुलाई को प्रदेश के नगरीय निकाय एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने ट्वीट की थी। इसमें लिखा था कि “सिमटते पारिवारिक मूल्य कैसा निष्ठुर रूप ले सकते हैं, इसका उदाहरण कल भोपाल में अशोका गार्डन के निकट देखने को मिला। इन 90 वर्षीय माताजी को इनका संवेदनहीन परिवार, भारत होटल के निकट व्हील चेयर पर निराश्रित छोड़ भाग निकला। वर्षा में किसी ने तिरपाल के नीचे आसरा दिया। निगम कर्मचारियों को निर्देशित कर इनको वृद्धाश्रम भेजा गया। अगर आप इनके परिवार को जानते हैं तो तत्काल हमें सूचना दीजिए। पुलिस-प्रशासन उन्हें पारिवारिक दायित्वों का ज्ञान कराने के लिए लालायित है।”
दूसरी तस्वीर मुरैना से वायरल हुई। जिसमें 4 साल का मासूम अपनी गोद में दो साल के भाई का शव रखे हैं और सरकारी एंबुलेंस न मिलने पर पिता निजी वाहन की तलाश में निकला है। मासूम के आसपास लोगों की भीड़ जुटी, मामला उजागर हुआ और पुलिस ने वाहन का इंतजाम कर दो साल के बच्चे के शव के साथ परिजनों को रवाना किया।
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यह दोनों ही तस्वीरें संवेदनहीनता की पराकाष्ठा का सहज अवलोकन करवाती है। एक में परिवार की संवेदनहीनता तो दूसरे में सरकारी सिस्टम की। दूसरे मामले में जांच के आदेश हो गए हैं। पर शायद जांचों और दंडों से संवेदनशीलता की घुट्टी किसी को नहीं पिलाई जा सकती। वरना अभी तक संवेदनशीलता के झरने गली-मोहल्लों में सुखद अहसास करा रहे होते।
इस बीच संवेदनशीलता की महक धार जिले के मनावर तहसील के गुलाटी गांव से आई है। यह जानकारी कोई नई नहीं है। लेकिन एक शिक्षक की संवेदनशीलता का आदर्श उदाहरण जरूर है। यह शिक्षक हैं “शंकरलाल काग”। “काग” गुलाटी गांव के कन्या प्राथमिक शाला में प्राचार्य यानि हेड मास्टर हैं। गुलाटी गांव में उनकी पदस्थापना वर्ष 2008 में हुई। इससे पहले वह लाखनकोट गांव में पदस्थ थे। जहां स्कूल था लेकिन पढ़ने वाले बच्चे ही नहीं थे। जहां तनख्वाह लेना काग को अपराधबोध कराती थी। किसको पढाएं, मन में इस कोफ्त के साथ शंकरलाल काग तबादला लेकर वर्ष 2008 में अपने ही गांव गुलाटी आ गए।
यहां भी स्कूल की खराब स्थिति देखकर मन में निराशा हुई। फिर मन में आया कि क्यों न जब देश हमें सब कुछ दे रहा है तो खुद भी समाज की त्याग और समर्पण के भाव संग सेवा करें। एक सैनिक राष्ट्रभक्ति में प्राणों की आहुति दे देता है, तो क्यों न जब सरकार हमें सब कुछ दे रही है, तो उसका एक हिस्सा स्कूल और गरीब आदिवासियों की बच्चियों की सेवा में समर्पित कर दें। और फिर 2008 से ही शंकर लाल काग का राष्ट्रभक्ति का जुनून समर्पण की राह पर आगे बढ़ गया। स्कूल भी हीराभाई द्वारा दान दी गई जमीन पर बना था। और गांव के तीनों स्कूल दान की जमीन पर ही बने हैं। फिर शुरू हो गई गांव के ही शिक्षक के दानी बनने की कहानी। और अपनी तनख्वाह के पैसों से शंकरलाल काग बच्चों के कपड़े, मोजे, स्वेटर और हर जरूरी सामान जुटाने लगे।
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स्कूल में अपने पैसों से काम कराने लगे। अच्छा टॉयलेट हो, अच्छे कक्ष हों जहां बैठकर बच्चे सुकून से शिक्षा ग्रहण कर सकें। पीने के पानी की व्यवस्था के लिए आरओ लगवा दिया। हैंडपंप से बात नहीं बनती थी, तो अपने पैसों से ट्यूबबेल खुदवाकर उसमें मोटर डलवा दी। कमरों में टाइल्स लगवाए तो मार्बल का उपयोग भी किया। स्मार्ट क्लास, कुर्सी-टेबल और कालीन सब व्यवस्थाएं ऐसी कि स्कूल एकदम चकाचक। हर कक्ष में अपने पैसों से करीब बीस पंखे तो गर्मी के लिए कूलर की व्यवस्था भी। और जब देखा कि स्कूल आने में बेटियों को परेशानी होती है, तो डेढ़ लाख रुपए में एक कबाड़ का ट्रैक्टर खरीदा और उसे दुरुस्त कराकर उसमें बच्चों के बैठने के लिए कवर्ड ट्रॉली की व्यवस्था कर बच्चों को लाने-ले जाने का दायित्व भी संभाल लिया। बाद में गांव में सड़क भी बन गई और अब सरकार ने स्कूल की नई बिल्डिंग भी बनवा दी।
यह बिल्डिंग भी शंकरलाल काग की जिम्मेदारी पर ही बनी ताकि स्कूल का पैसा सरकारी मुलाजिमों की जेब में जाकर इमारत की दुर्गति न कर दे। सात लाख से ज्यादा राशि शंकरलाल काग स्कूल के लिए खर्च कर चुके हैं और सिलसिला जारी है। 2008 में विद्यालय में 55 बेटियां थीं, अब काग की मेहनत और समर्पण से इनकी संख्या 102 तक पहुंच गई। काग कहते हैं कि समाज और बेटियों की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है, हम सबकी है। और हजारों बेटियों को पढ़ा-लिखाकर अंधकार से उजाले की ओर ले जाकर काग ने इतिहास रच दिया है देशभक्ति का, त्याग और समर्पण का और एक शिक्षक के दायित्व का जो प्रतिमान काग ने गढ़ा है, वह अखिल भारतीय सेवा के अफसरों से लेकर दफ्तरों के बाबू तक सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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तो नेताओं से लेकर हर आम नागरिक के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है। दायित्व निर्वहन ऐसा कि हेड मास्टर काग साहब रोज स्कूल का टॉयलेट भी खुद ही साफ करते हैं। दो बेटे हैं, जो अपना-अपना काम कर रहे हैं और शंकरलाल काग अब पत्नी के निधन के बाद घर छोड़कर खेत में ही निवास बना लिए हैं। 87 वर्षीय पिता लूनाजी काग भी स्वस्थ हैं। तो राष्ट्रभक्ति की कहानी स्कूल भी बयां कर रहा है। स्कूल में प्रवेश द्वार पर बीच में लक्ष्मीबाई की तस्वीर, तो एक तरफ चंद्रशेखर आजाद तो दूसरी तरफ भगत सिंह की तस्वीर। अंदर कमरों में भी महाराणा प्रताप, शिवाजी और दूसरे महापुरुषों-क्रांतिकारियों के चित्र शंकरलाल काग की सोच को बयां करते हैं। काग के समर्पण का गवाह सरकारी स्कूल ऐसा कि निजी स्कूल भी शरमा जाए। बीस माह बचे हैं काग के रिटायरमेंट को और मधुकामिनी के पौधों की सुगंध से स्कूल परिसर और शंकरलाल का त्याग-समर्पण, बेटियों का जीवन सब कुछ महक रहा है।
राग संवेदनशीलता का यह उदाहरण सामने आते ही, पिछले दो दिनों की संवेदनहीनता भरी तस्वीरों की धुंध हटाने के लिए हमने धार जिले से काग का नंबर हासिल किया और उनसे सीधी बात की। 60 साल की उम्र में भी काग का उत्साह और बेटियों के प्रति सर्वस्व न्यौछावर करने का जज्बा देख मन प्रसन्न हो गया। कुछ साल पहले अमरनाथ यात्रा पर जाते समय जम्मू से बालटाल के बीच सैकडों किलोमीटर दूरी में चप्पे-चप्पे पर धूप, बारिश, समतल, खाई और पहाड़ियों पर तैनात सुरक्षा बलों का त्याग देखकर उन्हें सेल्यूट किया था। तो एक शिक्षक के रूप में काग का त्याग देखकर उन्हें भी सेल्यूट करने का मन बन गया। वह भी देशभक्ति है और यह भी देशभक्ति है। तरीका और अवसर मिलने का नसीब अपना-अपना है। और काग की इस बात ने तो दिल ही जीत लिया कि सरकार तनख्वाह बहुत देती है। कम में भी काम चलाया जा सकता है वरना कितना भी ज्यादा हो तो भी पूर्ति नहीं होती। सेल्यूट काग साहब आपके जज्बे, सोच, संवेदनशीलता और त्याग को। काश काग जैसा संवेदनशीलता का राग और ऐसा जज्बा प्रदेश के हर परिवार और सरकारी-गैर सरकारी कर्मचारी-अधिकारियों में पैदा हो जाए तो संवेदनहीनता से भरी तस्वीरों के लिए समाज में जगह ही न बचे।