Flashback: बाबरी मस्जिद विध्वंस और मध्य प्रदेश सचिवालय

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6 दिसम्बर, 1992 की दोपहर को मैं अपने चार इमली, भोपाल स्थित मकान में TV पर उस दिन होने वाली अयोध्या में कार सेवा के बारे में जानने के लिए TV सुन रहा था। TV पर आने वाले समाचार अस्पष्ट थे।देर शाम को मुझे स्पष्ट हुआ कि कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया है। अगले दिन दिनांक 7 को सुबह कुछ अधिकारियों और मित्रों के फ़ोन आने लगे कि बच्चों को स्कूल भेजें या नहीं। मैं उस समय गृह विभाग में एडिशनल सेक्रेटरी के पद पर था और इसीलिए लोग मुझसे पूछ रहे थे। व्यक्तिगत रूप से मैं आश्वस्त था कि भोपाल का बाबरी मस्जिद से कोई लेना देना नहीं है और यहाँ का सौहार्द बहुत गहरा है।उन सभी को मैंने बच्चे भेजने के लिए कह दिया परन्तु बाद में मैंने DIG श्री बीबीएल पंडित से पूछा कि स्थिति क्या है? उन्होंने बताया कि पूर्ण शांति है।ऐसी चर्चा थी कि गई रात को कलेक्टर एम ए ख़ान ने सभी महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से बात कर ली थी और शांति बनाए रखने का आश्वासन ले लिया था। मैंने स्वयं अपनी दोनों बच्चियों को स्कूल भेज दिया था।

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प्रतिदिन के अनुसार मैं सुबह 10 बजे वल्लभ भवन में अपने कक्ष में पहुँचा और अपना कार्य प्रारंभ कर दिया। लगभग 11 बजे प्रमुख सचिव श्री के एस शर्मा जी ने मुझे अपने कक्ष में बुलाया। उनके कक्ष में जाकर मैं सामने की कुर्सी पर बैठ गया तो उन्होंने मुझे वहाँ से मेज़ के बाईं तरफ़ की कुर्सी पर बैठने का संकेत दिया। उनके कक्ष में दो फ़ोन लगे थे जिसमें एक डायरेक्ट था और एक PBX था जिस पर भी बाहर से कॉल आ सकती थी। दोनों ही फ़ोन की घंटियाँ लगातार बज रहीं थीं। उन्होंने एक फ़ोन मेरी तरफ़ आगे बढ़ाते हुए कहा कि इसको आप अटेंड करें। मुझे तुरंत स्पष्ट हो गया कि शहर में स्थिति गंभीर हो चुकी है। बुधवारा तथा कुछ क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों के विरोध प्रदर्शन के उपरांत पुराने शहर में स्थिति बिगड़ चुकी थी।सेना को बुलाने का सुझाव जिला प्रशासन को दे दिया गया। केंद्र सरकार ने पहले ही सेना को सतर्क कर रखा था। सेना के कुछ कॉलम बहुत शीघ्र ही जहांगीराबाद कंट्रोल रूम पहुँच गए। आने वाले फ़ोन भाँति भाँति के थे। दिल्ली के उच्चाधिकारी स्थिति जानने के लिए तथा कुछ प्रभावशाली लोग अपने करीबियों का पता बता कर उनकी सुरक्षा की माँग कर रहे थे। पत्रकार स्थिति जानना चाहते थे। हम लोगों को स्वयं स्थिति जानने में बहुत कठिनाई हो रही थी। सबसे विकट स्थिति यह थी कि पुलिस मुख्यालय और भोपाल कंट्रोल रूम से कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी।

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आने वाले फोनों से ही स्थिति का आकलन करना पड़ रहा था।फ़ोन पर मैं लोगों को आश्वस्त करने का संक्षिप्त उत्तर दे रहा था।आधे घंटे बाद गृह विभाग के लिपिक वर्ग एक होशियार रमेश शर्मा, सहायक कक्ष में आए और मेरे कान में कहा कि 2 मिनट के लिए मेरे साथ आइये। मैं अनुमति लेकर उसके साथ बाहर निकला तो वह मुझे चौथी मंज़िल से पाँचवी मंज़िल की खुली छत पर ले गया जहाँ कुछ लोग एकत्र थे।वहाँ से उत्तर दिशा में अनेक स्थानों से धरती से आकाश तक ऊँचे धुएँ के विशाल खंभे दिख रहे थे।हवा स्थिर थी।रमेश शर्मा ने धुआँ उठने वाली बस्तियों के नाम बताना शुरू कर दिये। लौटकर मैंने श्री के एस शर्मा को उस दृश्य से अवगत कराया।गृह विभाग में मैं क़ानून व्यवस्था संबंधित कार्य नहीं देखता था परंतु इस समय प्रमुख सचिव ने सभी को छोड़कर केवल मुझे अपने साथ रखा क्योंकि मैं मैदानी अनुभव का एक पुलिस अधिकारी भी था।सेना के कॉलम कंट्रोल रूम में ही खड़े थे क्योंकि वे बिना कलेक्टर के हस्ताक्षर के शहर में जाने के लिए तैयार नहीं थे।कलेक्टर का कहीं पता नहीं चल रहा था। आख़िर शाम होने से थोड़ा पहले वे कहीं से कंट्रोल रूम पहुँचे और तब सेना मार्च के लिए निकली। दंगा अपने चरम पर पहुँच चुका था और शहर में कर्फ्यू लगाने की कार्रवाई चल रही थी। रात लगभग ग्यारह बजे तक प्रमुख सचिव के कक्ष में, जो कंट्रोल रूम में परिवर्तित हो गया था, हम लोग बैठे रहे और फिर गृह विभाग में एक औपचारिक कंट्रोल रूम बनाकर घर गए।


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अगली सुबह 9 बजे मैं फिर प्रमुख सचिव कक्ष में पहुँचा। मैं अधिकृत जानकारी के लिए पुलिस मुख्यालय से संपर्क करना चाह रहा था परन्तु असफल रहा।सिटी कंट्रोल रूम से सहायक उपनिरीक्षक इत्यादि से कुछ थोड़ी बहुत जानकारी मिली उसी आधार पर मैं केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी स्थिति बता रहा था। शासन की कार्रवाई के नाम पर दोपहर में कलेक्टर एम ए ख़ान और पुलिस अधीक्षक सुभाष अत्रे का स्थानांतरण कर दिया गया। उनके स्थान पर भोपाल में ही पदस्थ प्रवेश शर्मा को कलेक्टर बना दिया गया तथा दुर्ग के पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र सिंह को पदस्थ किया गया।सुरेन्द्र सिंह विशेष वायुयान से रात को भोपाल पहुँचे और आते ही अपने कार्य में जुट गए। केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन सिंह एयरपोर्ट से सीधे कंट्रोल रूम पहुँचे और पुराने शहर में जाने की उन्होंने माँग की। पुलिस अधीक्षक ने उन्हें कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रखते हुए भ्रमण के लिए भेजा। रात तक पुराने भोपाल में दंगा काफ़ी सीमा तक नियंत्रित हो गया था। पुलिस द्वारा जगह-जगह गोली चालन किया गया था जिसका कोई स्पष्ट विवरण शासन अर्थात् हमारे पास नहीं था।

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अगला दिन दंगे का तीसरा दिन था। पत्रकारों ने मुख्यमंत्री श्री सुंदरलाल पटवा से अधिकृत जानकारी के लिए एक पत्रकार वार्ता करने की ज़ोरदार माँग की।11 बजे प्रमुख सचिव को मुख्य सचिव श्रीमती निर्मला बुच का निर्देश मिला कि 12 बजे मुख्यमंत्री की प्रेसवार्ता के लिए नोट तैयार करें। प्रमुख सचिव महोदय ने यह कार्य मुझे सौंप दिया। हमारे पास कोई भी आंकड़े नहीं थे। प्रमुख सचिव के कक्ष में ही टाइपिस्ट आ गया और मैं उसे सीधे टाइप करने के लिए डिक्टेशन दे रहा था।अन्तिम आशा से भोपाल कंट्रोल रूम फिर फ़ोन लगाया और सौभाग्य से प्रधान आरक्षक जगन्नाथ ने अपनी व्यक्तिगत जानकारी से मुझे मृतकों के आंकड़े दिये।किसी प्रकार शीघ्र नोट तैयार कर उसकी अनेक साइक्लोस्टाइल प्रतिलिपियाँ लेकर मैं प्रमुख सचिव के साथ पांचवें तल पर कान्फ्रेंस हॉल पहुँचा। बहुत बड़ी संख्या में पत्रकार उपस्थित थे। उन्हें नोट वितरित करवाया। मुख्य सचिव महोदया ने बताया कि मुख्यमंत्री जी नहीं आएंगे और उन्होंने प्रमुख सचिव से कहा कि आप ब्रीफ़िंग करें। उन्होंने यह कार्य मुझे सौंप दिया।मैंने ब्रीफ़िंग की और फिर पत्रकारों के आक्रामक प्रश्नों के उत्तर आत्मविश्वास से दिये। कक्ष में लौटकर प्रमुख सचिव ने मेरे कार्य पर प्रसन्नता व्यक्त की।प्रमुख सचिव कक्ष के फ़ोन तथा पत्रकार वार्ता का क्रम पाँच दिन तक चला और मैं ब्रीफ़िंग करता रहा।

एक दो दिन के बाद ही दंगे का स्वरूप बदल गया।पहले पुराने भोपाल में बहुसंख्यक समुदाय के घरों और दुकानों में आग लगायी गई परंतु फिर नए भोपाल, विशेष रूप से BHEL क्षेत्र में, अल्पसंख्यकों के घरों को निशाना बनाया गया।उस समय सोशल मीडिया नहीं था लेकिन समाचार पत्रों ने अर्धसत्य और स्थिति को बढ़ा चढ़ाकर अफ़वाहें फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 11 दिसंबर तक क़ानून व्यवस्था सुधर गई लेकिन फिर भी 15 दिसंबर को मध्य प्रदेश सहित हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।सत्ता राज्यपाल श्री कुंवर महमूद अली तथा उनके चार सलाहकारों के पास आ गई। 31 दिसंबर को एक विचित्र नव वर्ष उपहार के रूप में मुख्य सचिव श्रीमती निर्मला बुच, प्रमुख सचिव गृह श्री एस के शर्मा और एक माह पूर्व ही आए पुलिस महानिदेशक श्री डीके आर्या को उनके पदों से हटा दिया गया।

मध्य प्रदेश के इस भीषणतम दंगे के पश्चात बने जस्टिस केके दुबे आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भोपाल में दंगों में कुल 139 लोग मारे गए जिसमें 36 लोग पुलिस की गोली से मारे गए।यह दंगा भोपाल और मध्य प्रदेश के इतिहास में एक काला पृष्ठ बन गया।