प्रेमचन्द का कथा-साहित्य भारतीय परिवेश का जीवंत दस्तावेज है प्रेमचंद जन्मजयंती मनाई गई

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मंदसौर से डॉ घनश्याम बटवाल की रिपोर्ट

मन्दसौर। कोरोना काल के दो साल बाद कला, साहित्य, संगीत और सांस्कृतिक गतिविधियों का क्रम जिले में भी शुरू हो रहा है। इसी कड़ी में प्रगतिशील लेखक संघ जिला इकाई द्वारा मंदसौर के नूतन विद्यालय सभागार में मुंशी प्रेमचंद जन्मजयंती मनाई गई।

महान कथाकार, उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द ऐसे कालजयी साहित्यकार हैं जिनका साहित्य आज के दौर में और अधिक प्रांसगिक हो जाता है। प्रेमचन्द का कथा साहित्य भारतीय परिवेश का सामाजिक एवं सांस्कृतिक दस्तावेज है। यह कहा अपनी रचना के माध्यम से वरिष्ठ जनवादी साहित्यकार श्री जनेश्वर ने।

अन्य वक्ताओं ने भी प्रेमचंद के यथार्थ चित्रण के महत्व को प्रतिपादित किया प्रगतिशील लेखक संघ मन्दसौर इकाई द्वारा आयोजित प्रेमचन्द जयंती समारोह में व्यक्त किये। प्रलेस के प्रतिभाशाली युवा कहानीकार स्व. आलोक पंजाबी की स्मृति को समर्पित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ जनवादी लेखक जनेश्वर ने की। मुख्य अतिथि कृषि वैज्ञानिक एवं साहित्यकार नरेन्द्र सिंह सिपानी थे।

इस अवसर पर श्री सिपानी कहा प्रेमचन्द ने साहित्य को जीवन के यथार्थ से जोड़ने के साथ ही उसमें मनुष्यता के तत्वों का भी समावेश किया। यही कारण है कि प्रेमचन्द का साहित्य जन-जन के जीवन के साथ एकाकार हो गया।

स्वागत उदबोधन में प्रलेस अध्यक्ष कैलाश जोशी ने प्रेमचन्द के कथा-साहित्य में साम्प्रदायिक सद्भाव को रेखांकित करते हुए कहा साम्प्रदायिक सद्भाव के कहानीकार के रूप में प्रेमचन्द निश्चय ही बेमिसाल हैं। वे ऐसे हिन्द- मुस्लिम पात्रों का निर्माण करते हैं जिनमें असाधारण धार्मिक सहिष्णुता होती है। प्रेमचन्द का कथा- साहित्य भारत का सामाजिक व सांस्कृतिक दस्तावेज है।

विचारक एवं पत्रकार डॉ स्वप्निल ओझा (पिपलियामंडी) ने कहा प्रेमचन्द ने अपने लेखन के माध्यम से आम आदमी की पीड़ा को न केवल मजबूत आवाज़ दी बल्कि उसके संघर्ष को वैचारिक धार भी दी। संघर्ष के इस यथार्थ को प्रेमचन्द ने स्वयं भोगा।

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नाट्य निर्देशक एवं फिल्मकार प्रदीप शर्मा ने कहा प्रेमचन्द ने अंग्रेजी शासनकाल में दमन के बावजूद अभिव्यक्ति के खतरे उठाए।उनके लिए लेखन एक मिशन था। जब तक मनुष्य का शोषण होता रहेगा प्रेमचन्द साहित्य भी प्रासंगिक रहेगा। आज अभिव्यक्ति कुंद होकर थम गई प्रतीत होने लगी है। प्रेम भी चंद लोगों में सिमट रहा है ऐसे में कालजयी रचनाकार मुंशी प्रेमचंद अधिक प्रासंगिक होगये हैं।

इस अवसर पर आयोजित कवि गोष्ठी में जनवादी कवि जनेश्वर, डॉ उर्मिला तोमर, मृदुला आलोक पंजाबी, नरेंद्र भावसार, महेश त्रिवेदी, नन्दकिशोर राठौड़, नरेंद्र त्रिवेदी, असद अंसारी अजय डांगी आदि ने सम सामयिक विषयों पर केंद्रित रचनाओं का पाठ किया।

अतिथियों का स्वागत संगठन के उपाध्यक्ष कीर्ति नारायण कश्यप, सचिव दिनेश बसेर, नरेन्द्र अरोरा कॉमरेड सईद चौधरी ने किया।

कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार डॉ घनश्याम बटवाल, हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रांतीय कार्यसमिति सदस्य, टीवी उद्घोषक ब्रजेश जोशी, फ़िल्म संवाद लेखक राकेश राठौड़, बालाजी टेलिफिल्म्स के क्रू लेखक संजय भारती , मालवी गीतकार आकाशवाणी कलाकार श्याम चौबे, टीवी आर्टिस्ट संतोष परसाई, अभिव्यक्ति संस्था प्रमुख गायत्री शर्मा, संजय दोसी, सामाजिक कार्यकर्ता महेश दुबे श्रीमती चंदा डांगी, अजीजुल्लाह खालिद अशोक डबकरा सहित नगर के साहित्यकार तथा गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

संचालन प्रलेस राज्य कार्यसमिति के सदस्य असद अंसारी ने किया तथा आभार माना प्रकाश गुप्ता ने।

आरम्भ में सरस्वती चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलित किया गया, अंत में मंदसौर के प्रेमचंद, कवि, कहानीकार, लेखक आलोक पंजाबी के असामयिक निधन पर मौन रखकर सामुहिक श्रद्धांजलि अर्पित की गई।