बदलता भारत-2: विपक्ष व विश्व समुदाय चकित-मुदित है नये भारत से

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मेरा ऐसा मानना है कि 2014 में देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के गठन के बाद भारत में नई सुबह की नई फसल रोपित की। सुबह नई,सूर्योदय नया,सरकार नई,जोश नया,लक्ष्य नये,पीढ़ी नई,सदी भी नई। एक राजनीतिक दल के तौर पर भारतीय जनता पार्टी ने जो कमियां शासन व्यवस्था में महसूस की,जो इरादे वह देश कल्याण,लोक हित के रखती थी,जिस विकास अवधारणा को वह प्रतिपादित करती थी,उसे परिणाम में बदलने के लिये नये सफर की शुरुआत हुई।
     एक तरफ जहां कांग्रेस समेत समस्त विपक्ष चकित था,वहीं दूसरी तरफ दुनिया भी इस अजूबे से हैरत में थी कि जिस व्यक्ति को तत्कालीन केंद्र सरकार ने खून का सौदागर प्रचारित कर रखा था, जिस पर पूरे समय सीबीआई,पुलिस,रॉ जैसे सरकारी अभिकरणों का शिकंजा कस रखा हो,जिसके प्रति अल्पसंख्यक वर्ग के दिलों में नफरत और खौफ पैदा कर रखा हो,जिसे उसके अपने दल के सर्व शक्तिमान और सर्वग्राह्य नेता अटल बिहारी वाजपेयी तक राजधर्म न निभा पाने  का उलाहना दे चुके हो, वह नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी को भारी बहुमत के साथ केंद्र में सत्तारूढ़ कर देश के प्रधानमंत्री बन गये हैं। जैसे 2004 में भाजपा समेत कोई भी यह अनुमान नहीं लगा पा रहा था कि अटलजी की सरकार वापस नहीं बन पायेगी, वैसे ही 2014 के आम चुनाव में भी ज्यादातर मानकर चल रहे थे कि भाजपा सबसे बड़ा दल बनकर तो उभर सकता है, किंतु गठजोड़ और तोड़फोड़ से ही सही, सरकार तो कांग्रेस ही बनायेगी। फिर भी मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी तो इसलिये कि देश की बहुसंख्यक जनता वैसा चाहती थी। कांग्रेस और गांधी परिवार से मुक्ति की दिशा में कदम बढ़ाने का फैसला जनता का था,जिसे भाजपा ने थाम लिया।
     ऐसे में कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष को सबसे बड़ा झटका तो यह जानकर लगा कि भाजपा ने 543 सदस्यों वाली लोकसभा में 282 सीटें प्राप्त कर अपने बूते ही सरकार बनाने की ताकत जुटा ली। जबकि गठबंधन के साथ 336 सीटें मिली थी। भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में 116 सीट की छलांग लगाई थी। इस तरह से 2014 के चुनाव में देश को 14वां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में मिला । इस विजय से देश की जनता का बहुसंख्यक वर्ग,राष्ट्रवादी सोच रखने वाले,भारतीयता याने हिंदूत्व के हिमायती,कांग्रेस को सतत सरकार में देखते हुए उब चुके लोग,पहली बार मतदान का स्वाद चखने वाली युवा पीढ़ी,कांग्रेस विरोधी,भाजपा तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बीच आशा,उत्साह और नई उम्मीदों का संचार हुआ । यह बहुत बड़ा परिवर्तन भारत के इतिहास में दर्ज हुआ। आजाद भारत ने देश में नई राजनीतिक संस्कृति के उदय की लालिमा को देखा। यह सुबह 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद हुए चुनाव में भारतीय जनमानस के तात्कालिक आक्रोश की परिणिति की तरह नहीं थी। ये देश में समग्र बदलाव को लाने के लिये कटिबद्ध‌ जनता की चेतना थी, जिसमें किसी तरह का भ्रम या आक्रोश नहीं,बल्कि सोचा-समझा कदम था और अपेक्षित परिणाम।
     उस समय तो यह कल्पना आसान नहीं थी कि देश जिस करवट आ गया है, वह इतनी आसानी से अब दूसरी तरफ नहीं पलटेगा। कांग्रेस समेत गैर कांग्रेसी,गैर भाजपा विपक्ष भी सोच रहा  था कि यह परिवर्तन तात्कालिक है, जो मनमोहन सरकार की विफलता,गांधी परिवार के प्रति जनता में बढ़ता रोष और कांग्रेस के भीतर पनपता विरोध , सोनिया गांधी में नेतृत्व क्षमता और समन्वय की कमी, राहुल गांधी के विचार शून्य व्यक्तित्व और राजनीतिक अपरिपक्वता की वजह से हुआ है, जिसका प्रभाव पांच साल बाद समाप्त हो जायेगा। एक तरह से देश का विपक्ष ऐसी मदहोशी में था, जिसका उतारा खटाई से नहीं सच्चाई से ही हो सकता था, लेकिन उस नीम बेहोशी का क्या किया जाये,जो खुली आंखों में छाई रहती है। भारत का विपक्ष दुष्प्रचार, निजी हमले,गुजरात के पीछे छूट चुके मसलों के घिसे-पिटे मसालों से तरकारी को स्वादिष्ट बनाने में जुटा था। जबकि उसमें खमीर और खटास उभर चुका था। वे मसाले दुर्गंध पैदा कर रहे थे।
     कांग्रेस और गैर भाजपा विपक्ष मोदी के गुजरात कार्यकाल की कैसेट बजाता रहा,जिसे सुनने वाले अरसा पहले उकता चुके थे। उसी नीम बेहोशी में कांग्रेस और गैर भाजपा विपक्ष ने 2019 का आम चुनाव लड़ा और शेख चिल्ली ख्वाब संजोते हुए अपने हक में परिणाम आने के प्रति आश्वस्त बने रहे। उधर नरेंद्र मोदी निष्काम कर्म योगी की तरह लक्ष्य भेदी निगाहों से निशाने साधते चले गये। वे न तो विपक्ष के हमलों से विचलित हुए, न किसी आरोपों के जवाब में उलझे। विपक्ष यह आकलन करने में बुरी तरह विफल रहा कि उनका पाला जिस व्यक्ति से पड़ा है, वह कोई साधारण तौर-तरीकों वाला राजनेता नहीं,बल्कि राष्ट्र के लिये जीवनदायी,निष्ठावान कार्यकर्ता है, जो भारत मां की सेवा का संकल्प लेकर राष्ट्रीय स्वयं स्वयं संघ से दीक्षित-प्रशिक्षित है। जिसने ध्येय के प्रति निष्ठा और समर्पण के चलते ही घर-परिवार का भी त्याग कर रखा है। जिसने हिमालय की कंदराओं में रहकर जप-तप किया है। जो अर्जुन की तरह लक्ष्य साधक,चाणक्य की तरह विचारशील और दृढ़ निश्चयी,सम्राट अशोक की तरह चक्रवर्ती साम्राज्य का अभिलाषी, विवेकानंद की तरह योग-ध्यान-आध्यात्म का उपासक और देश को अंग्रेज और मुगलकालीन मानसिक दासता से मुक्त कराने को कृत संकल्पित योद्धा है।
     इसलिये जब 2019 आम चुनाव के नतीजे आये तो राजनीतिक दल फिर से चकित थे और विश्व समुदाय मुदित था। भाजपा आनंदित थी और देश का बहुसंख्यक वर्ग मुग्ध था भारतीय राजनीति के नये अवतार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व तले देश में नये युग के आरंभ से। इस बार फिर से भाजपा ने स्वतंत्र रूप से 303 सीटें प्राप्त की थीं, जबकि गठबंधन को 353 सीटें मिली थीं। याने भाजपा की 21 सीटें बढ़ी थीं और सहयोगी दलों की एक सीट कम हुई थी। भाजपा के इस बढ़े जनाधार से चारों तरफ आश्चर्य मिश्रित प्रतिक्रिया हो रही थी।
    भाजपा का विजय रथ 2014 के बाद से रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। वैसे भी जिस राजनीतिक दल और उनके नेताओं का ध्येय वाक्य चरैवति-चरैवति हो, वे विश्राम के लिये कैसे रुक सकते हैं? केंद्र में पदारूढ़ होने से पहले ही भाजपा ने कुछ राज्यों में अपने पैर मजबूती से जमा लिये थे। मप्र,गुजरात,महाराष्ट्र,गोवा,हरियाणा,राजस्थान,हिमाचल,छत्तीसगढ़ से होता हुआ यह रथ 2020 तक देश के करीब डेढ़ दर्जन राज्यों में फतह का झंडा लहरा चुका है। 1951 में स्थापित भारतीय जनसंघ ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी में रूपातंरित होकर दक्षिण भारत को छोड़कर कमोबेश समूचे देश को नाप लिया । यह स्वतंत्र भारत में देश का अकेला ऐसा गैर कांग्रेसी राजनीतिक दल है, जिसने संसद में 2 सीटों से सफर शुरू कर 303 सीटों के जादुई आंकड़े को छू लिया । जिसे किसी राज्य की सत्ता हासिल करने में करीब 30 साल लग गये। यह चमत्कार करने का अवसर कांग्रेस को कभी नहीं मिला, क्योंकि उसने अपना सफऱ शून्य से नहीं सैकड़े से शुरू किया था। हां, अब जरूर वह संसदीय इतिहास के न्यूनतम आंकड़े के साथ उम्मीदों के काले-काले बादलों को निहारती रहती है, जो हमेशा बिना बरसे ही गुजर जाते हैं। कांग्रेस को 2014 में 161 सीटों का नुकसान हुआ और वह 44 सीटों पर सिमट गई तो 2019 में जरूर उसकी 53 सीटें हो गईं। दुर्भाग्य कि जिस दल ने देश पर 67 बरस एक छत्र राज किया, वह न्यूनतम से 9 सीटें अधिक पाकर प्रसन्नचित्त नजर आई।