शिवराज की सोच दिल को छू गई, तो गीता का जाना दु:खी कर गया…

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शनिवार का दिन बड़ा शांत-शांत गुजरा। राजधानी भोपाल में न तो कोई राजनैतिक हलचल ही रही और न ही कोई बड़ी खबर ही सरपट दौड़ती नजर आई। भोपाल में दिन में एक निजी चैनल पर कही गईं शिवराज की बातें दिल को छू गई थीं, तो शाम होते-होते आईएएस अफसर एम.गीता की मौत ने दु:खी जरूर किया। हालांकि एम. गीता से कभी कोई सीधी मुलाकात नहीं थी, लेकिन मध्यप्रदेश में कई जिलों में पदस्थापना के दौरान खबरों के जरिए उनका जिक्र जरूर होता रहा। दिन में शिवराज ने एक सवाल के जवाब में बड़ी बेबाकी से कहा था कि उनके लिए राष्ट्र प्रथम है, पार्टी दूसरे दूसरे स्थान पर और व्यक्ति तीसरे स्थान पर है। पार्टी मुझे जो दायित्व देगी, मैं उसका पूरी तरह से तहेदिल से पालन करूंगा। पार्टी कहेगी कि भोपाल में रहो, तो भोपाल रहूंगा और यदि कहेगी कि जैत में रहो तो जैत में रहकर जो काम मिलेगा, वह करता रहूंगा।

निश्चित तौर से शिवराज की यह बात दिल को छू गई थी कि पार्टी के प्रति समर्पण भाव हो तो ऐसा…। दरअसल हाल ही में जब से भाजपा केे संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति से शिवराज का नाम अलग हुआ, तब से यह परिवर्तन सवालों में बना हुआ है। अमेरिका प्रवास से लौटे कैलाश विजयवर्गीय से जब यही सवाल पूछा गया, तो उन्होंने सामान्य लहजे में कहा था कि यह तो पार्टी की रुटीन प्रक्रिया है। पर शिवराज अब खुद भी इतने मंझे हुए अनुभवी राजनेता हो गए हैं कि छोटी-मोटी बातों से उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। और उन्हें यह भली भांति पता है कि एक विचारधारा विशेष पर चलकर और राष्ट्रभाव की पूजा कर ही उन्होंने पांव-पांव वाले भैय्या से पांच बार के सांसद और चार बार के मुख्यमंत्री रहने की बड़ी उपलब्धि हासिल की है।

अब जीना यहां, मरना यहां … का मूलमंत्र ही उनकी पूजा है। ऐसे में क्या संसदीय बोर्ड और क्या केंद्रीय चुनाव समिति, जो भी वहां रहकर काम करेगा…वही पार्टी के लिए काम करेगा और राष्ट्र के लिए काम करेगा। भाजपा व्यक्ति आधारित दल नहीं है, कैडर बेस पार्टी है और यह अनुशासन शिवराज के मन-मस्तिष्क में स्थायित्व पा चुका है। तो शिवराज का वक्तव्य और उनकी बॉडी लैंग्वुएज यह बयां कर रही थी कि राष्ट्र, पार्टी और तब व्यक्ति का स्थान है उनके जीवन में। यह बात बड़ी सुखकर थी कि जैत में भी रह सकता हूं, तो पार्टी कहे तो दिल्ली-भोपाल में भी रहने में कोई तकल्लुफ नहीं।

वहीं शाम को मन दु:खी हो गया, जब यह खबर आई कि 1997 बैच की मध्यप्रदेश कैडर की आईएएस अधिकारी एम.गीता का निधन हो गया। मृत्यु तो शाश्वत सत्य है, लेकिन जब कोई युवा उम्र में दुनिया छोड़ता है तो मौत सोचने पर मजबूर कर देती है। एम. गीता के जाने ने इसीलिए ज्यादा दुःखी किया है। मजबूरी में छत्तीसगढ़ कैडर ज्वाइन करने वाली एम. गीता की आत्मा मध्यप्रदेश में ही बसती थी। वह अविभाजित मध्यप्रदेश की आईएएस अफसर थी और छत्तीसगढ़ बनने के बाद उन अफसरों में शुमार थीं, जिन्हें छत्तीसगढ़ कैडर आवंटित किया गया था।

बाकी अफसरों ने अपनी ज्वाइनिंग 2005 में छत्तीसगढ़ में दे दी थी, लेकिन एम. गीता ने मध्यप्रदेश में बने रहने के लिए पूरा संघर्ष किया। अंततः सारी लड़ाई हारने के बाद वर्ष 2014 में उन्हें छत्तीसगढ़ के लिए रिलीव किया गया और उन्हें मध्यप्रदेश से रवानगी डालनी पड़ी। और आठ साल बाद अब छत्तीसगढ़ की सीनियर आईएएस एम.गीता ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। अब वे हमारे बीच नहीं रहीं। लंबे समय से वे किडनी की बीमारी से जूझ रहीं थीं। दिल्ली में उनका इलाज चल रहा था। 

गीता पिछले कई माह से दिल्ली के अस्पताल में वेंटिलेटर में थीं। एम गीता को 27 मई को गंभीर हालत में दिल्ली के बीएम कपूर अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तब से वह कोमा में थीं। छत्तीसगढ़ शासन में वह कृषि विभाग की सचिव थीं। बाद में उन्हें प्रमुख आवासीय आयुक्त पद पर दिल्ली भेजा गया था, जिसका प्रमुख उद्देश्य इलाज कराना था। बाद में उन्हें केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति मिली और उन्हें कृषि मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेट्री पद पर पोस्टिंग मिली थी।

खैर बातें चाहे शिवराज ने कही हों या फिर गीता का इस दुनिया को अलविदा कहना हो…दोनों ही संदर्भ बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं। इनमें सबसे अहम बात है कि व्यक्ति तो चला जाता है, पर जाने के बाद जितने भी पल वह जिंदा रहता है तो अपने व्यक्तित्व के दम पर। इसलिए पदों के मिलने पर भी व्यक्ति को दुनियादारी में इस कदर नहीं मदहोश होना चाहिए कि उसका व्यक्तित्व ही चर्चा करने लायक न बचे। एक बड़े व्यक्तित्व ने शनिवार को जहां अपनी सोच और दर्शन से, सहजता-सरलता से प्रभावित किया, तो दूसरे बड़े व्यक्तित्व के जाने ने हमें कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया।