‘चोर-चोर मौसेरे भाई’ की तर्ज पर कदमताल….

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‘चोर-चोर मौसेरे भाई’ की तर्ज पर कदमताल….

मध्यप्रदेश में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर विधानसभा में कुछ वर्षों से सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच नूराकुश्ती देखने को मिल रही है। दोनों ‘चोर-चोर मैसेरे भाई’ की कहावत चरितार्थ करते हुए सदन नहीं चलने दे रहे हैं। विधानसभा चलाने को लेकर भाजपा गंभीर है ही नहीं, क्योंकि उसे मालूम है कि इस समय प्रदेश में ज्वलंत मुद्दों की भरमार है। सदन पूरे समय चला तो जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। इस कारण उसकी रणनीति के अनुसार सदन तीन ही दिन चला, वह भी आधा-आधा दिन।

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सबसे मजेदार यह कि पोषण आहार घोटाला मामले में स्थगन पर चर्चा से पहले मुख्यमंत्री ने इस पर अपना वक्तव्य दे डाला और कांग्रेस शोर मचाती रह गई। दूसरी तरफ कांग्रेस को खुद को पाक साफ दिखाना था, इसलिए उसने अपने ढंग से सक्रिय रहकर चतुराई का परिचय दिया। वह तीनों दिन का फायदा उठाती दिखी। कांग्रेस ने पहले दिन लहसुन के मुद्दे पर बोरियां रखकर, दूसरे दिन पोषण आहार पर स्थगन को लेकर और तीसरे दिन आदिवासी विधायक के अपमान का मुद्दा उठाकर अपनी आक्रामकता दिखाई। सच यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के कार्यक्रमों के कारण भाजपा को सदन समय से पहले स्थगित कराना था, ताज्जुब यह कि कांग्रेस भी उसके साथ कदमताल करती नजर आई।

‘बदले-बदले से महाराज नजर आते हैं’….!

लोकसभा चुनाव में हार और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने के बाद महाराज अर्थात ज्योतिरादत्य सिंधिया बदले-बदले से नजर आने लगे हैं। कुछ घटनाओं को देखकर लोग कहने लगे है कि ‘महाराज आप ऐसे तो न थे’। पहले घटनाक्रम में सिंधिया अपने बेटे के साथ अपने प्रतिद्वंद्वी रहे भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के घर पहुंचे और बेटे को उनका आशीर्वाद दिलाया। घर जाना और घंटों गुफ्तगू करने तक तो ठीक है, लेकिन पैर छूकर आशीवाद दिलाना अप्रत्याशित। दूसरा, सिंधिया ग्वालियर अंचल के दौरे पर पहुंचे तो दलित वर्ग के लोगों के साथ बैठकर खाना खाया, यहां तक तो ठीक है लेकिन दलित के साथ एक थाली में भोजन करना, चौंकाने वाला लगा। ऐसा उन्होंने किया और इसके फोटो भी वायरल कराए। वे लगभग अपने हर प्रतिद्वंद्वी के घर पहुंच कर गले-शिकवे दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कम से कम सिंधिया घराने के महाराज की शैली तो नहीं है। साफ है कि ज्योतिरादित्य खुद को शिवराज सिंह चौहान की तर्ज पर तैयार कर रहे हैं। शिवराज सिंह बनना हर किसी के बूते की बात नहीं है। अपने व्यवहार और कार्यशैली की बदौलत ही वे मुख्यमंत्री पद पर रहने का रिकार्ड बना रहे हैं। सिंधिया रियासत के महाराज ऐसा करें तो चौंकना स्वाभाविक है। लिहाजा, इसके निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं।

किसी बम से कम नहीं रघुनंदन का लेटर….

रघुनंदन शर्मा भाजपा के उस वरिष्ठ नेता का नाम है जो सलीके से सच बोलने का माद्दा रखता है। एक बार उन्होंने फिर सच बोला, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड़डा को लिखे पत्र के जरिए। इसमें उन्होंने मध्यप्रदेश के मौजूदा भाजपा कार्यालय को तोड़कर नया कार्यालय भवन बनाने पर सवाल दागे। पत्र बहुत भावनात्मक है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि इस भवन को बनाने में किस तरह कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदरलाल पटवा, प्यारेलाल खंडेलवाल और नारायण प्रसाद गुप्ता जैसे नेताओं ने दिन-रात मेहनत की।

रघुनंदन शर्मा भाजपा
रघुनंदन शर्मा भाजपा

यह भवन इन तपस्वी नेताओं का स्मारक है। इसे तोड़ना समर्पित कार्यकर्ताओं के ह्रदय में पत्थर मारने जैसा है। शर्मा ने लिखा है कि यह दीनदयाल परिसर बनने के बाद ही भाजपा नीचे से ऊपर तक सत्ता में आई। यह हमारे लिए शुभ है। कुशाभाऊ ठाकरे जैसे तपस्वी का स्मारक है, इसलिए इसे जीवित रहने दें। यदि दूसरे विशाल कार्यालय भवन की जरूरत ही है तो पास में राज्य परिवहन निगम की रिक्त भूमि पर नया भवन खड़ा करवा लें। रघु जी ने दीनदयाल परिसर तोड़ने की स्थिति में बुलडोजर के सामने लेटने तक की चेतावनी दे डाली है। साफ है, रघु जी का यह लेटर किसी बम से कम नहीं है। सवाल है कि क्या इस वरिष्ठ नेता की भावनात्मक अपील का भाजपा नेतृत्व पर कोई असर होगा या पहले की तरह उन पर एक्शन हो जाएगा?

 गिरीश की साफगोई, गोपाल-गोविंद का रिकार्ड….

जब हर स्तर पर लोकतंत्र खतरे में है, लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर विधानसभा में जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पा रही है, ऐसी परिस्थिति में पत्रकार कौशल किशोर चतुवेर्दी की पुस्तक के विमोचन अवसर पर लोकतंत्र की झलक देखने को मिली। कार्यक्रम में सत्तापक्ष और विपक्ष के कई प्रमुख नेता मौजूद थे। यहां विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने साफगोई का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मैं चुनाव हारता भी हूं और जीतता भी, लेकिन मंच पर बैठे पीडब्ल्यू मंत्री गोपाल भार्गव और नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह की तारीफ करना होगी क्योंकि व अपने क्षेत्रों में अजेय हैं।

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गोपाल विधानसभा के लगातार 8 और गोविंद लगातार 7 चुनाव जीत चुके हैं। इनके व्यक्तित्व पर पुस्तक लिखी जाना चाहिए। किसी भी सफल नेता के लिए एक, दो और तीन बार तक चुनाव जीतना तो ठीक है लेकिन 7 और 8 बार कोई असाधारण व्यक्तित्व ही ऐसा करिश्मा कर सकता है। गौतम ने यह भी कहा कि शिवराज सिंह चौहान सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड बना चुके हैं और गोपाल सबसे ज्यादा बार चुनाव जीतने का। यदि इन पर पुस्तक लिखी जाए तो इसका लाभ आने वाली पीढ़ी को भी मिल सकता है। मौजूदा नेता भी इनसे कुछ सीख सकते हैं।

कांग्रेस मुक्त से ज्यादा, भय मुक्त हुए अरुणोदय….

कमलनाथ के खास पूर्व विधायक एवं वरिष्ठ नेता अरुणोदय चौबे का इस्तीफा कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ गोविंद सिंह राजपूत पहले ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं, अब अरुणोदय भी गए। बिट्ठल भाई पटेल के बाद सागर में ये दो नेता ही कांग्रेस का चेहरा थे। अब दोनों कांग्रेस के साथ नहीं रहे। इस नाते कह सकते हैं कि सागर कांग्रेस मुक्त होने की ओर अग्रसर है। हालांकि अरुणोदय को लेकर एक सच यह भी है कि वे बीते 8 साल से फरार चल रहे हैं।

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पहले वे धारा 302 के तहत हत्या के आरोपी बनाए गए थे। अब वे 307 के एक मामले में फरारी काट रहे हैं। इसलिए अरुणोदय के बारे में कहा जा सकता है कि वे कांग्रेस मुक्त होने से ज्यादा भय मुक्त हुए हैं। उनके निकट भविष्य में भाजपा में शामिल होने की संभावना है। प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री एवं खुरई विधानसभा क्षेत्र में उनके प्रतिद्वंद्वी भूपेंद्र सिंह ने उन्हें भाजपा में आने का आॅफर भी दे दिया है। अरुणोदय को परेशानी भूपेंद्र से ही थी। भूपेंद्र क्षेत्र में लगातार अपना दबदबा कायम करते जा रहे हैं। उनकी बदौलत तीन नगर परिषदों में निर्विरोध पार्षद जीतने के बाद अब खुरई नगर पालिका के 32 में से 21 पार्षद निर्विरोध चुन लिए गए हैं। ऐसा प्रेम-मोहब्बत से हुआ या खुद को बचाने के भय से, यह सवाल है।