झाबुआ से शुरू ‘ऑपरेशन क्लीन…!

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झाबुआ जिले में दो दिन में दो बड़े विकेट के क्लीन बोल्ड होने के बाद यह मैसेज तो चला ही गया है कि अब सहन करने का समय निकल चुका है। ‘जीरो टॉलरेंस’ का टाइम शुरू हो चुका है। किसकी कितनी एप्रोच है, अब यह भी मायने नहीं रखता। अब 2023 दिखने लगा है। 2022 की अंतिम तिमाही शुरू होने को है। इसके बाद 2023 के नौ महीने और बाकी रहेंगे, फिर चुनाव की कसौटी पर दलों की आजमाइश का समय शुरू हो जाएगा।

वैसे झाबुआ में सरकार के एक्शन के अलग-अलग निहितार्थ हैं। झाबुआ प्रदेश के सुदूर पश्चिम में स्थित जिला है, जो आदिवासी बाहुल्य है। केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार का फोकस फिलहाल आदिवासी मतों पर है। यह वह आदिवासी क्षेत्र है, जहां ‘जयस’ संगठन ने डॉ. हीरालाल अलावा के जरिए कांग्रेस से ही सही खाता तो खोल लिया है। और अब ‘जयस’ के जरिए कम से कम अनुसूचित जनजाति विधानसभा क्षेत्रों पर तो डॉ. अलावा की सीधी नजर है। ऐसे में नौकरशाहों का तानाशाही भरा और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा चेहरा भाजपा के चेहरे की रौनक पर असर डाल सकता है। और दो दिन में दो विकेट चटकाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यही संदेश दिया है कि मध्यप्रदेश की जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करने वाले खिलाड़ी नौकरशाहों को अब मैदान से बाहर का रास्ता दिखाने में न तो अफसरों की पहुंच बाधा बनेगी और न ही बड़ी-बड़ी सिफारिशों का जादू चलेगा। यदि जरूरत पड़ी तो जिस तरह झाबुआ को क्लीन किया है, उसी तरह प्रदेश के दूसरे जिलों में भी ‘ऑपरेशन क्लीन’ का प्रयोग जारी रहेगा। कोई भी नौकरशाह यह न समझे कि वह तुर्रम खां है और मनमानी और तानाशाही भरे रवैये से टेबल पर पैर पसारकर मनमानी और तानाशाही को अंजाम देता रहेगा। तो देखने वाली बात भी यही है कि झाबुआ क्लीन हो गया, अब आगे क्या सीन बनेगा, जो नौकरशाहों पर नकेल कसने के लिए आजमाया जाएगा। वैसे तो इस वक्त अब स्क्रीन पर ऐसे ही सीन की डिमांड है, ताकि फिल्म सुपरहिट होने में कोई संशय न रहे। मर्ज यदि बिगड़ा नजर आ रहा है, तो कड़वी दवा दिए बिना सेहत नहीं सुधर पाएगी। सरकार भी अब इस बात को पूरी तरह समझ चुके हैं और उसी के मुताबिक ‘ऑपरेशन क्लीन’ को अंजाम दिया जा रहा है।

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वैसे हाल ही में महाकौशल में आदिवासी नायकों शंकरशाह और रघुनाथ शाह को शीश झुकाने खुद उपराष्ट्रपति धनखड़ महाकौशल पधारे थे। तो 17 सितंबर को कुनो आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब 11 अक्टूबर को एक बार फिर महाकाल परिसर कॉरिडॉर को लोकार्पित करने उज्जैन आने वाले हैं। और इस यात्रा में महाकाल परिसर से मोदी की मौजूदगी में 2023 में भाजपा विजय का संकल्प जरूर दोहराएगी। इसके लिए झाबुआ की तर्ज पर दूसरे आदिवासी जिलों में पहले हालातों को खंगाला जाएगा और उसके बाद गड़बड़ी मिली, तो मानो फिर खैर नहीं। झाबुआ में हुए एक्शन के बाद विकास और जनकल्याण को अब एक ही गाड़ी के दो पहिए की तरह देखा जा रहा है। और उम्मीद है कि सरकार को जहां से भी नौकरशाहों के बारे में फीलबैड का फीडबैक मिलेगा, सरकार वहां हिट करने में देर नहीं करेगी। कम से कम आधा सैकड़ा आदिवासी विधानसभा सीटों पर तो यह फार्मूला फिट रहेगा और इसका मैसेज सभी 230 विधानसभा सीटों पर नौकरशाहों के तेवरों को नियंत्रित करेगा। प्रदेश में झाबुआ की तर्ज पर ‘ऑपरेशन क्लीन’ का असर शायद अब बिना ब्रेक के दिखता रहेगा।