Flashback: इंदौर पुलिस के अभिनव प्रयोग-कम्यूनिटी पुलिसिंग

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Flashback: इंदौर पुलिस के अभिनव प्रयोग-कम्यूनिटी पुलिसिंग

गृह विभाग में श्री विजय सिंह के साथ कार्य करते हुए उनके विचारों से पुलिस में नये सामाजिक प्रयोग या नवाचार करने की भावना जागृत हुई। उन दिनों जापान में टोक्यो की पुलिस ने केवल सुनियोजित जन संपर्क के माध्यम से अपराध नियंत्रण में क्रांतिकारी सफलता प्राप्त की थी।

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इन्दौर में 6 अगस्त, 1994 को डीआईजी रेंज का पद भार लेते ही मैंने परिवार परामर्श केंद्रों की परिकल्पना को मूर्त रूप देना प्रारंभ कर दिया। इंदौर संसाधनों, जागरूक नागरिकों तथा सकारात्मक मीडिया के कारण पुलिस नवाचार के लिए बहुत उपयुक्त स्थान था। इंदौर के पुलिस अधीक्षक श्री रुस्तम सिंह और उसके बाद श्री देवेन्द्र सिंह सेंगर का भरपूर सहयोग तथा मेरे वरिष्ठ आईजी श्री जी एस माथुर और फिर श्री स्वराज पुरी का मुझे मार्गदर्शन मिलता रहा। परिवार परामर्श केंद्र के प्रयोग की आशातीत सफलता और उपयोगिता से कुछ अन्य नवाचारों के लिए मेरा उत्साह बढ़ा।

सचिवालय में मैंने प्रयास कर ट्रैफ़िक सुधार के लिए सीधे रेंज डीआईजी को जो धन राशि भेजी थी वो इन्दौर में मुझे पलासिया और अन्य स्थानों पर ट्रैफ़िक सिग्नल लगाने में सहायक हुई।

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ग्वालियर पुलिस अधीक्षक के रूप में पुरानी ग्राम रक्षा समितियों से मेरा परिचय हुआ था। इनका उद्देश्य मात्र डाकू समस्या तक संकुचित था। मैंने नगर सुरक्षा समितियों का प्रत्येक थानों में गठन किया।इनमें धीरे-धीरे झुग्गी झोपड़ी से लेकर धनाढ्य वर्ग के लोग जुड़ते गए। समितियों के सभी छोटे-बड़े कार्यक्रमों में मैं शहर के विभिन्न क्षेत्रों में सम्मिलित होता था तथा समिति के सदस्यों एवं थाने के स्टाफ़ के बीच समन्वय का कार्य करता था।

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प्रारंभ में पुलिसकर्मियों को समितियों का काम उनके अधिकारों में हस्तक्षेप लगा। लेकिन धीरे-धीरे उनके सहयोग से होने वाले लाभ से उनकी मन:स्थिति बदलने लगी।समितियों के सदस्यों में से थाना तथा CSP सर्किल क्षेत्र के सदस्य प्रभारियों का मनोनयन किया। ये समितियाँ अपने क्षेत्र में यातायात व्यवस्था, रात्रि गश्त, सार्वजनिक पर्व और आयोजन, सांप्रदायिक सौहार्द तथा अपराधियों की सूचना आदि महत्वपूर्ण कार्यों में पुलिस की सहायता करने लगीं।शनैः शनैः सदस्यों की संख्या 1 हज़ार हो गई।

26 जनवरी, 1996 को नवनिर्मित अभय प्रशाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह जी ने स्वयं इन नगर सुरक्षा समितियों का औपचारिक उद्घाटन किया। वे सदस्यों के कार्यों को सुनकर इतने प्रभावित हुए कि कुछ वर्षों बाद उन्होंने नगर सुरक्षा समिति को क़ानूनी रूप दे दिया। पुलिस की सहायता के अतिरिक्त सक्रिय समितियों ने ब्लड डोनेशन, ग़रीब छात्रों की सहायता, वृक्षारोपण, स्वच्छता अभियान आदि सामाजिक कार्यों में भी भाग लेना प्रारंभ कर दिया। समितियाँ पुलिस और जनता के बीच सेतु बन गईं।

इंदौर मेडिकल कॉलेज के उत्साही आर्थोपेडिक डिपार्टमेंट के अध्यक्ष डॉक्टर डीके तनेजा के संपर्क में आने से सड़क दुर्घटनाओं की ओर मेरा ध्यान आकृष्ट हुआ। डाक्टर तनेजा द्वारा पुलिस कर्मियों, विशेष रूप से पुलिस ड्राइवरों तथा फ्लाइंग स्क्वाड के पुलिस कर्मियों का प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया जिसमें इन लोगों को दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को दुर्घटनास्थल से उचित ढंग से उठाने और उन्हें अस्पताल तक पहुँचाने की विधि बतायी जाती थी।गंभीर दुर्घटना में घायल व्यक्ति को एक घंटे के अंदर अस्पताल पहुँचाना एक चुनौती थी।मैंने प्राइवेट नर्सिंग होम एसोसिएशन के डॉक्टरों से चर्चा कर एक योजना बनायी जिसके अंतर्गत शहर के बाहर जाने वाली प्रत्येक सड़क पर एम्बुलेंस युक्त नर्सिंग होम का चयन किया। शहर या दूरस्थ क्षेत्रों के घायलों की पुलिस कंट्रोल रूम में सूचना प्राप्त होते ही निकटस्थ एम्बुलेंस को घटनास्थल पर भेजा जाता था और उसी नर्सिंग होम में घायल का तत्काल मुफ़्त उपचार किया जाता था। उसकी जान बच जाने पर वह अपना आगामी उपचार उसी नर्सिंग होम में पैसा देकर अथवा शासकीय अस्पताल में मुफ़्त करवा सकता था।इससे गरीबों को फ़्री उपचार मिलता था तथा प्राइवेट नर्सिंग होम को भी लाभ होता था। डॉक्टरों की मेडिको लीगल प्रकरण की परेशानियों का भी मैंने निदान किया।शासन द्वारा भी कुछ और एंबुलेंस दी गई।इस प्रकार जीवन रक्षक एम्बुलेंस सेवा का जनसहयोग से गठन हुआ।

 

रवींद्र नाट्य गृह में एक गरिमामय कार्यक्रम में मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह ने इस अभियान का औपचारिक उद्घाटन किया तथा हम लोगों का मनोबल बढ़ाया।

इंदौर के युवाओं में ब्राउन शुगर और स्मैक की लत बढ़ने लगी थी। शराब का आदी व्यक्ति किसी प्रकार अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर लेता है परन्तु ब्राउन शुगर का आदी व्यक्ति समाज और परिवार से पूरी तरह कट जाता है। मैंने पुलिस द्वारा नारकोटिक्स सप्लाई करने और बेचने वालों के विरुद्ध कार्रवाई करने को बढ़ावा दिया। इसके साथ ही जिनको लत लगी हुई थी उनको सुधारने की ओर भी मेरा ध्यान गया। बहुत अध्ययन करने के बाद ब्राउन शुगर और इसकी लत वाले लोगों के लिए नशा मुक्ति कैंप लगाने की योजना बनायी। मेरे मित्र और ज्वाइंट डायरेक्टर हेल्थ डाक्टर अशोक शर्मा ने बाणगंगा में ख़ाली पड़े टीबी सेंटर को उपलब्ध कराया तथा डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ़ की व्यवस्था की। समाज सेवी वॉलेंटियर्स तथा परामर्शदात्रियों को एकत्र किया।भोजन और दवा का प्रबंध किया गया। पुलिस रिकॉर्ड के आधार पर लत की बीमारी वाले व्यक्तियों को सभी संभव उपायों द्वारा कैंप तक लाया गया।पहला कैंप 6 अगस्त, 1996 को प्रारंभ हुआ। 45 दिवसीय इस कैंप में प्रथम सप्ताह बहुत कठिन था जिसमें आदी बीमारों को डॉक्टरों को देखते रहना पड़ता था। इसके उपरांत धीरे धीरे बीमार व्यक्तियों को योग, मनोवैज्ञानिक परामर्श, इंडोर खेल आदि के माध्यम से सामान्य किया जाता था। मनोचिकित्सकों की भी सहायता ली गई। उप मुख्यमंत्री श्री सुभाष यादव ने कैंप में आकर हमारा उत्साह वर्धन किया। कैंप से निकले हुए बीमार व्यक्तियों को काफ़ी समय तक संपर्क में रखा गया। इनमें से 25 पर प्रतिशत पुनः व्यसनी हो गए जो सामान्य है। कुल 4 ऐसे 45 दिवसीय शिविर आयोजित किये गए जिनमें सभी वर्गों के अनेक लोगों को नया जीवन मिला

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रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड तथा ऐसे अन्य सार्वजनिक स्थलों पर अनेक बाल अपराधी जेबकटी और चोरी आदि करते हैं। ऐसे बाल अपराधियों की रोकथाम करने के लिए तीन बाल कल्याण गृहों की स्थापना की। इनमें झुग्गी झोपड़ी के संदेहास्पद आवारा बच्चों को कुछ घंटों के लिए केंद्र में लाते थे। मुझे जानकर यह आश्चर्य हुआ कि इनकी बस्तियों में पानी की इतनी कमी है कि ये बच्चे महीनों तक स्नान नहीं करते हैं। इन केंद्रों पर स्नान की व्यवस्था करते ही इन बच्चों की सुंदरता एकदम निखर गई। इनके जीवन में खेल और मनोरंजन नहीं था जिसे उपलब्ध कराया गया।धीरे-धीरे आत्मविश्वास बढ़ने पर इन बच्चों ने इन केंद्रों पर रखी गई बच्चों की सचित्र पुस्तकों को खोलकर देखना शुरू किया और कुछ ने चॉक से ब्लैक बोर्ड पर चित्र बनाने शुरू कर दिये।इन बच्चों को स्कूल भेजने के लिए उनके अभिभावकों को प्रोत्साहित किया गया।

इंदौर पुलिस को तत्कालीन पुलिस महानिदेशक श्री सरत चंद्र तथा उनके बाद श्री देवप्रकाश खन्ना का पूरा प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। पुलिस मुख्यालय का प्रोत्साहन मिलने से हमारा मनोबल और ऊँचा हो गया। इंदौर के मेरे वरिष्ठ तथा अधीनस्थ अधिकारियों के पूर्ण सहयोग से ही यह संभव हो सका। मीडिया, विशेष रूप से नईदुनिया और भास्कर समाचारपत्रों द्वारा दिए जाने वाले सकारात्मक समाचारों से इन कार्यक्रमों को बहुत सफलता प्राप्त हुई। इनका रेंज के अन्य ज़िलों में विस्तार किया गया। सामुदायिक पुलिसिंग के लिए मुझे न्यूयार्क पुलिस का पत्र प्राप्त हुआ। शासन द्वारा मुझे दक्षिण कोरिया जाने के लिए नामांकित किया गया जिसमें कुछ कारणों से में सम्मिलित नहीं हो सका। पूरे भारत के लिए सामुदायिक पुलिसिंग का एक मॉडल तैयार करने के लिए ब्यूरो ऑफ़ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट द्वारा अन्य लोगों के साथ मुझे भी बुलाया गया। मुझे इस बात का संतोष और गर्व है कि सामुदायिक पुलिसिंग के अनेक कार्यक्रमों को स्थाई रूप से मध्य प्रदेश में तथा देश के अनेक भागों में अपनाया गया है।