बोले तो, वहां धुलाई का पूरा खतरा है। धार्मिक आधार पर देश का बंटवारा जब एक बार हो गया तो ‘गजवा ए हिंद’ अर्थात् भारत के इस्लामीकरण का सपना क्यों देख रहे भाई? भारत में रह कर, षणयंत्र भी उसी के विरूद्ध ! हद है यार, कुछ तो शर्म करते। ये नया वाला भारत है, न !
बात, इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की ही है, जिस पर मोदी सरकार ने पांच साल के लिए प्रतिबंध लगाया है। कथित रूप से आतंकी गतिविधियों में शामिल होने और आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठनों से ‘संबंध’ होने के आरोप में सरकार ने पीएफआई और उससे जुड़े दूसरे संगठनों के खिलाफ ये कार्रवाई की है। पीएफआई और उसके नेताओं से जुड़े ठिकानों पर छापेमारी के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है। बताया जाता है कि पीएफआई के खिलाफ हुई छापेमारी में आईडी बनाने के तरीके का पूरा कोर्स, भारत को इस्लामिक राज्य बनाने के लिए ‘मिशन इंडिया 2047’ से जुड़े दस्तावेज और सीडी, बेहिसाब नकदी समेत कई आपत्तिजनक साक्ष्य हाथ लगे हैं। एजेंसियों के छापे के बाद केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक में प्रदर्शन हुए।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर कहा है कि पीएफआई के कुछ संस्थापक सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के नेता हैं। पीएफआई के जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) के साथ संबंध हैं। जेएमबी और सिमी दोनों संगठन पहले से प्रतिबंधित हैं। दावा किया गया है कि पीएफआई और उसके सहयोगी या मोर्चे, देश में असुरक्षा की भावना को बढ़ावा देकर एक समुदाय के कट्टरपंथ को बढ़ाने के लिए गुप्त रूप से काम कर रहे हैं। अग्निपथ, सीएए, रामनवमी-हनुमान प्रकटोत्सव जुलूस आदि-इत्यादि पर बवाल से लेकर नुपूर शर्मा के बयानों का समर्थन करने वालों की हत्या का पीएफआई कनेक्शन चर्चा का विषय रहे हैं।
यह वही पीएफआई है जिसने दो साल पहले केरल के मलप्पुरम जिले के तेनहीपलम शहर में एक विवादास्पद रैली निकाली थी। कहा जाता है कि ये रैली ‘1921 मालाबार हिंदू नरसंहार’ या मोपला नरसंहार की शताब्दी का जश्न मनाने के लिए थी। जुलूस में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परिधान में जंजीरों और रस्सियों से बंधे हुए लोगों के पीछे लाठियां लिए लुंगी पहने लोगों का एक बड़ा समूह था और ‘अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह’ जैसे नारे लग रहे थे। ऐसा माना जाता है कि मोपला नरसंहार में हुई जातीय हिंसा में लगभग 10,000 हिंदू मारे गए थे और दंगों के चलते एक लाख हिंदुओं को केरल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। सौ से अधिक मंदिर नष्ट कर दिए गए थे।
बाबासाहेब अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक, ‘पाकिस्तान, ऑर दि पार्टीशन ऑफ इंडिया‘ में मोपला नरसंहार के संदर्भ में लिखा, ‘गांधीजी हिंसा की प्रत्येक घटना की निंदा करने से चूकते नहीं थे किन्तु गांधीजी ने ऐसी हत्याओं का कभी विरोध नहीं किया। उन्होंने चुप्पी साधे रखी।‘
झूठ बोले कौआ काटेः
“गजवा ए हिंद पीएफआई का वह मिशन है जिसका नापाक सपना विदेशी इस्लामिक आक्रांता, मुग़लों और खिलजियों ने देखा था। जबकि, ‘मिशन इंडिया 2047’ दस्तावेज के एक अंश में कहा गया है, ‘पीएफआई का मानना है कि भले ही कुल मुस्लिम आबादी का 10 फीसदी इस (सोच) के पीछे है, लेकिन पीएफआई कायर बहुसंख्यक समुदाय को नियंत्रित कर सकता है। मैं इसे अंजाम दूंगा और प्रभुता वापस लाऊंगा।‘
बोले तो, 2050 तक भारत दुनिया में सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला देश होगा। 2015 में आई अमेरिका स्थित प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 2010 से 2050 के बीच मुस्लिमों की आबादी 73% बढ़ेगी। वहीं, ईसाइयों की आबादी इसी दौरान 35% तक बढ़ेगी, जो दूसरा सबसे तेजी से बढ़ने वाला धर्म है। हिंदू 34% तक बढ़ेंगे और वे दुनिया में तीसरी सबसे अधिक जनसंख्या वाले लोग हो जाएंगे। बता दें कि फिलहाल भारत दुनिया में मुस्लिम आबादी के मामले में इंडोनेशिया के बाद दूसरे नंबर पर आता है। दुनिया में उस समय तक जितनी मुस्लिम आबादी होगी, उसमें से 11% अकेले भारत में होगी।
केवल भारत की बात करें तो, साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी 121 करोड़ से अधिक है। इसमें 96 करोड़ के करीब हिंदू और 17 करोड़ के करीब मुस्लिम हैं। भारत की कुल आबादी में 79.8% हिंदू और 14.2% मुस्लिम हैं। इनके बाद ईसाई 2.78 करोड़ हैं और सिख 2.08 करोड़ हैं। शेष, बौद्ध और जैन धर्म को मानने वालों की आबादी 1% से भी कम है। 2001 की तुलना में 2011 में भारत की आबादी 17.7% तक बढ़ गई थी। इस दौरान मुस्लिमों की आबादी सबसे अधिक करीब 25% तक बढ़ी थी। जबकि, हिंदू 17% से कम बढ़े थे। इसी तरह ईसाइयों की आबादी 15.5%, सिख 8.4%, बौद्ध 6.1% और जैन 5.4% बढ़े थे।
वैश्विक जनसंख्या 1950 के बाद से सबसे धीमी गति से बढ़ रही है। वर्ष 2020 में यह घटकर एक प्रतिशत से भी कम रह गई। इसी तरह 1991 से 2001 के बीच हिंदुओं की आबादी 20% बढ़ी थी। इस दौरान मुस्लिमों की आबादी 36% से अधिक बढ़ गई। ईसाइयों की 23% से अधिक, सिखों की 18% से अधिक, बौद्धों की 24 % और जैन धर्म को मानने वालों की 26% आबादी बढ़ी। पिछले साल आए परिवार स्वाथ्य सर्वेक्षण यानी एनएफएचएस 5 की रिपोर्ट के अनुसार हिंदू महिलाओं में प्रजनन दर 1.9 और मुस्लिम महिलाओ में 2.3 है। अर्थात अभी भी हिंदू महिलाओं की तुलना में मुस्लिम महिलाएं अधिक बच्चे पैदा कर रही हैं।
ये आंकड़े क्या प्रमाणित नहीं करते कि भारत में मुस्लिमों सहित सभी धर्मों के लोग कितने सुरक्षित हैं। दूसरे देशों का क्या हाल ? 10 लाख उइगर मुस्लिमों को कैद में यातनाएं दे रहा चीन, तो फ्रांस ने इस्लोमोफोबिया में मुस्लिम विरोधी कानून तक लागू कर दिया। इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने तो हाल ही में कहा है कि जब तक हम नया नियम नहीं बना देते हैं, तब तक किसी भी नये मस्जिद का निर्माण नहीं होगा। हम मस्जिदों के निर्माण को नियंत्रित करेंगे, क्योंकि ये नागरिकों की सुरक्षा के लिए जरूरी है।
मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि चीन ने नजरबंदी कैंपों में बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के करीब 10 लाख उइगर मुस्लिमों को बंदी बना रखा है। इनकी आबादी करीब 1.20 करोड़ है। चीन पर उइगर मुस्लिमों के नरसंहार से लेकर जबरन मजदूरी कराने, जबरन नसबंदी कराने और महिलाओं से रेप सहित 16 हजार से अधिक मस्जिदों को नष्ट करने के आरोप हैं।
चीनी सरकार के आंकड़ों के अनुसार उइगर मुस्लिमों के अधिकतर इलाकों में 2015-2018 के दौरान जन्म दर 60% से अधिक गिर गई। 2019 में शिनजियांग में जन्म दर में 24% की गिरावट आई। लाखों बच्चों को जबरन उनके माता-पिता से अलग करके बोर्डिंग स्कूलों में भेज दिया गया। चीन पर 2014 से कम से कम 630 इमाम और अन्य मुस्लिम धार्मिक नेताओं को गिरफ्तार करने का आरोप है। इनमें से 18 की हिरासत में मौत हो गई थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन उइगर मुस्लिमों को उनकी दाढ़ी कटाने के लिए भी बाध्य करता रहा है।
हद है, मुस्लिम देश न केवल उइगर मुस्लिमों के मामले में चीन का समर्थन करते रहे हैं बल्कि उइगर मुस्लिमों के खिलाफ चीन द्वारा चलाए जा रहे वैश्विक अभियान का भी समर्थन करते रहे हैं। अरब देशों के कम से कम छह देशों मिस्र, मोरक्को, कतर, सऊदी अरब, सीरिया और यूएई ने चीन के इशारे पर न केवल उइगर मुस्लिमों को हिरासत में लिया बल्कि चीन को डिपोर्ट भी किया। हज जाने वाले उइगर मुसलामान तक नहीं बचे।
क्या कहीं गूंजा ‘गजवा ए चीन’ का नारा ? तुर्की ने जरूर उइगर मुस्लिमों के मुद्दे पर चीन के खिलाफ आवाज उठाई। लेकिन चीन की नाराजगी की वजह से बाद में तुर्की ने भी मौन साध लिया। म्यामांर में रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा से लेकर नूपुर शर्मा मामले में भड़क जाने वाले मुस्लिम देशों में अपने आर्थिक हितों के मूल्य पर कई गुना ताकतवर चीन का विरोध करके उसकी नाराजगी मोल लेने की हिम्मत नहीं है। रिपोर्ट्स के अनुसार, 50 मुस्लिम देशों में 600 अलग-अलग प्रोजेक्ट में चीन ने कुल 400 अरब डॉलर यानी 31 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया है।
यही नहीं, कई मुस्लिम देशों का चीन की तरह ही मानवाधिकार के मामले में रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है। इसीलिए ये देश उइगर जैसे मुद्दों पर खामोश रहते हैं, जिससे उनके यहां मानवाधिकार हनन के मुद्दों पर चर्चा न हो।
झूठ बोले कौआ काटे, भारत में धार्मिक आधार पर बंटवारे के बावजूद तुष्टिकरण और वोट की कुत्सित राजनीति का ही परिणाम है ‘गजवा ए हिंद’ जैसी विचारधारा वाले संगठनों का फलना-फूलना। पांच साल के प्रतिबंध से कुछ नहीं होना। राष्ट्रविरोधी विचारधारा को समूल नष्ट करना होगा। आत्मनिर्भर और मजबूत नये भारत के निर्माण से ही ऐसी आसुरी ताकतों को रोका जा सकता है।
और ये भी गजबः
साल 2010 में पीएफआई से जुड़े लोगों ने ईशनिंदा के आरोप में केरल के प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ काट डाला था। जोसेफ इदुकी जिले के एक कॉलेज में मलयालम पढ़ाते थे। कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन के 7 युवकों ने उन पर तब हमला किया जब वे अपने परिवार के साथ चर्च से प्रार्थना कर लौट रहे थे। कट्टरपंथियों का आरोप था कि जोसेफ ने परीक्षा के लिए जो प्रश्न तैयार किए थे उसमें ईशनिंदा वाले सवाल पूछे गए थे।
इस हमले के बाद जोसेफ का जीवन सामान्य नहीं रह गया था। हाल ही में जोसेफ की ऑटोबायोग्राफी रिलीज हुई है। इसके बाद एक बार फिर से धार्मिक असहिष्णुता का मुद्दा गर्म हो गया। जोसेफ का कहना है कि इस्लामिक कट्टरपंथियों ने तो उन्हें अपंग बनाया। परंतु, जिस ईसाई संप्रदाय से उनका संबंध है, उसने उन्हें बहिष्कृत करके उनका जीवन बर्बाद कर दिया। बिना किसी उचित कारण के उन्हें नौकरी से निकाल दिया। नौकरी छूटने के कारण हुए सामाजिक अलगाव और आर्थिक संकट से तंग आकर उनकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली।
खुद को ‘ईसाई कट्टरता का जीवित शहीद’ बताते हुए 63 वर्षीय जोसेफ का चर्च पर आरोप है कि उसने मुस्लिम समूहों के साथ सीधे टकराव से बचने के लिए उन्हें बलि का बकरा बनाया। बोले तो, जोसेफ द्वारा सेट किए गए पेपर पर विवाद बढ़ने के बाद वो गिरफ्तारी के डर से अंडरग्राउंड हो गए थे। पुलिस ने उनके खिलाफ सांप्रदायिक घृणा फैलाने का मामला दर्ज कर लिया था। बचने के लिए जोसेफ एक शहर से दूसरे शहर भाग रहे थे। जोसेफ के अनुसार, वो तीन बार हमले से बच गए, लेकिन चौथी बार हमलावरों ने उनका हाथ काट दिया।
हमले में अपना दाहिना हाथ खोने के बाद उन्होंने बाएं हाथ से पुस्तक लिखी। जोसेफ का कहना है कि चर्च ने शुरुआत में समर्थन करने के बाद उन्हें बहिष्कृत कर दिया। यही नहीं, उनकी पत्नी, दो बच्चों और बूढ़ी मां को भी नहीं बख्शा।
प्रो. जोसफ ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने पर पर कहा कि पीएफआई के कई पीड़ित तो आज जिंदा भी नहीं हैं। मैं उन पीड़ितों को याद करते हुए मौन रखना चाहूंगा। कभी-कभी चुप रहना बोलने से बेहतर होता है। उन्होंने कहा कि एक नागरिक के तौर पर वे केंद्र सरकार की मंशा भली-भांति समझ रहे हैं, पर अभी कोई नजरिया व्यक्त नहीं करना चाहेंगे।