श्रेय लेने की जल्दबाजी में सांसद कई बार चूके, इस बार भी!
ऐसा लगता है कि इंदौर के सांसद शंकर लालवानी को हर बात में श्रेय लेने की बहुत जल्दबाजी रहती है! इस जल्दबाजी में कई बार उनसे चूक भी होती है। ऐसी ही एक चूक उनसे प्रधानमंत्री के उज्जैन आगमन के मौके पर हुई। अभी मंगलवार को प्रधानमंत्री के आगमन पर उन्होंने फेसबुक पर एक फोटो शेयर किया, जिसे उन्होंने उज्जैन का फोटो बताया। जबकि, फोटो गुजरात का था। आधे घंटे से ज्यादा समय तक यह पोस्ट उनके फेसबुक वॉल पर रही। प्रधानमंत्री जब इंदौर आकर हेलीकॉप्टर से उज्जैन के लिए निकले, उसके कुछ देर बाद ही लालवानी ने जल्दबाजी में फेसबुक पर फोटो शेयर करते हुए उज्जैन नगरी में प्रधानमंत्री का स्वागत होने की बात लिखी।
सांसद से ये चूक हो गई कि उन्होंने गलत फोटो पोस्ट कर दिया। इस फोटो पर जनता से अभिवादन स्वीकार करते बोर्ड पर गुजराती में लिखा हुआ था। फोटो के शेयर करने के बाद काफी लोगों ने सांसद लालवानी की पोस्ट पर कमेंट भी किए। गलती का अहसास होने के बाद लालवानी ने फोटो वाली ये पोस्ट डिलीट कर दी। लेकिन, जो खिल्ली उड़ना थी, वो तो उड़ चुकी थी।
शंकर लालवानी की ये श्रेय लेने की आदत पहली बार नहीं देखी गई! वे हमेशा ही सबसे आगे रहने की कोशिश में निशाने पर आ जाते हैं। अभी शहर के लोग स्वच्छता अवॉर्ड मामले में भी उनके राष्ट्रपति के हाथों अवॉर्ड लेने की बात को भूले नहीं थे कि ये नई गलती हुई। देश में छठी बार इंदौर को स्वच्छता में अव्वल रहने का अवार्ड मिला। शहर की ये उपलब्धि सभी के साझा प्रयासों का नतीजा है। नगर निगम के अधिकारियों ने रणनीति बनाई, सफाईकर्मियों ने उसे क्रियान्वित किया और जनता ने उसमें सहयोग किया। लेकिन, इस सफलता का श्रेय लूटने वालों में कोई पीछे नहीं रहा। यहां तक कि राष्ट्रपति से अवार्ड लेने में भी वे लोग आगे रहे, जिन्हें इस कामयाबी का पूरा श्रेय नहीं दिया जा सकता। नगर निगम कमिश्नर प्रतिभा पाल और सांसद शंकर लालवानी मंच पर सबसे आगे रहे। उनके पीछे थे महापौर पुष्यमित्र भार्गव, जो वास्तव में सही हकदार होते!
निगम कमिश्नर की मौजूदगी कुछ हद तक सही थी, क्योंकि वे उस संस्था की मुखिया है, जिसे यह अवार्ड मिला! महापौर इस बार प्रतीकात्मक चेहरा थे, क्योंकि उनको शपथ लिए अभी महीना भर ही हुआ है। उनका इस उपलब्धि में सीधा कोई योगदान तो नहीं है, पर वे शहर के महापौर तो हैं। पर, सांसद मंच पर क्यों आए, यह बात जनता को आज भी खटक रही है और भाजपा नेताओं में भी इसे लेकर खुसुर-पुसुर है। क्योंकि, उनका न तो नगर निगम से कोई सीधा वास्ता है न स्वच्छता के प्रयासों में उनका योगदान कहीं नजर आता है! फिर वे किस हैसियत से स्वच्छता अवार्ड लेने में सबसे आगे रहे, इस सवाल का जवाब नहीं मिल रहा! पहली बार नहीं, वे पहले भी इस उपलब्धि का श्रेय लूट चुके हैं।
इंदौर के अलावा देश और प्रदेश के अन्य शहरों को भी इसी आयोजन में दूसरी उपलब्धियों के लिए अवार्ड दिए गए, पर किसी भी शहर का सांसद मंच पर नहीं आया। यहां तक कि इसी मंच पर देश में सबसे पहले ‘हर घर जल’ प्रमाणित जिला घोषित होने पर बुरहानपुर जिले को सम्मानित किया गया। लेकिन, यह अवार्ड पीएचई विभाग के अतिरिक्त प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव और कलेक्टर प्रवीण सिंह के अलावा आठ सदस्यीय दल ने लिया। इसमें चार स्व-सहायता समूह की महिलाएं, पीएचई विभाग के अधिकारी और सीईओ जिला पंचायत रोहित सिसोनिया शामिल थे। पर, सांसद कहीं नहीं थे! फिर क्या कारण है कि इंदौर के सांसद अति उत्साह में जिस तरह हर मंच पर पहुंच जाते हैं, तो यहां भी आगे आ गए! बेहतर होता कि प्रतीक स्वरुप किसी स्वच्छता कर्मी को मंच तक ले जाया जाता! राष्ट्रपति के प्रोटोकॉल का उल्लंघन इसलिए नहीं होता कि बुरहानपुर का अवार्ड लेने भी स्व सहायता समूह की महिलाएं पहुंची थीं। इसी समारोह में अन्य राज्यों को भी पुरस्कृत किया गया था लेकिन वहां पर भी उस क्षेत्र के सांसद नहीं पहुंचे थे और पहुंचना भी नहीं चाहिए था, सवाल ही पैदा नहीं होता लेकिन शंकर लालवानी इन सब से परे हैं।
अब तो हालत यह हो गई है कि हर मामले में सांसद की श्रेय लेने की आदत, लोगों को हजम नहीं हो रही। भाजपा में भी इस बात की चर्चा है कि वे हर मंच पर तो नजर आते ही हैं, शहर की हर उपलब्धि में भी अपने योगदान की मुहर लगाने का मौका भी नहीं छोड़ते! लेकिन, स्वच्छता अवार्ड के मंच पर उनकी मौजूदगी सभी को खल रही है। शहर के कई भाजपा नेता और अफसर भी उनकी इस आदत से परेशान बताए जाते हैं।
कुछ दिनों से सांसद शहर के मास्टर प्लान को लेकर ज्यादा सक्रियता दिखा रहे हैं। वे शायद यह भूल गए कि अब वे इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष नहीं हैं। वे जिस तरह के जन प्रतिनिधि हैं, वो लोकसभा में क्षेत्र का प्रतिनिधि है, न कि शहर की हर संस्था का मुखिया! पिछले दिनों शहर के मास्टर प्लान को लेकर शहर की एक संस्था के पदाधिकारी नगरीय निकाय विभाग के अधिकारी से मिलने भोपाल गए थे। सांसद की इसमें कहीं कोई भूमिका नहीं थी और न होना भी चाहिए! लेकिन, वे चाहते थे, कि पदाधिकारी इसके लिए उनके नाम का उल्लेख करें। ये पहला और आखिरी प्रसंग नहीं है, जब सांसद ने श्रेय लेने की कोशिश नहीं की हो!
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी पिछले दिनों ऐसे ही मामले में मंच से गुस्सा बताया था। स्वच्छता अवार्ड के एक कार्यक्रम में इंदौर के छठी बार देश में आगे आने का श्रेय स्वच्छता जुड़े कर्मियों और नागरिकों को न देने के बजाए अधिकारियों को दिए जाने पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी, जो सही भी है। कैलाश विजयवर्गीय के मुताबिक, इस सफलता का श्रेय सफाई मित्रों और नागरिकों को जाता है। इंदौर के लोग अपने पूर्वजों के कारण सुसंस्कृत और अनुशासित हैं। राजनीतिक मज़बूरी के कारण उन्होंने किसी नेता का नाम नहीं लिया हो, पर निश्चित रूप से सांसद की उस मंच पर मौजूदगी खलने वाली तो थी!
दो साल पहले सांसद शंकर लालवानी ने लोकसभा में अलग सिंधी राज्य की मांग उठाई थी! उन्होंने सिंधी में अपनी बात रखी! लेकिन, उनकी इस मांग के पक्ष में न तो भाजपा खड़ी हुई और न सिंधी समाज! क्योंकि, उनकी इस मांग का कोई तार्किक आधार नहीं था। उनके संसदीय क्षेत्र के सिंधी समुदाय ने भी इसका विरोध किया! क्योंकि, आज तक किसी सिंधी नेता ने ऐसी कोई बात नहीं की! लोकसभा में लालवानी से पहले ओडिशा के मयूरभंज के सांसद बिशेश्वर तुडू ने भी शून्यकाल में यही बात कही थी! वास्तव में तो लालवानी ने बिशेश्वर तुडू की मांग को आगे बढ़ाया है, नया कुछ नहीं नया जोड़ा! जब बात सामने आई तो उस पर लीपापोती करने की कोशिश की गई। शंकर लालवानी ने सिंधी प्रदेश की जो मांग की, वो पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है। सांसद ने शायद यह सोचा होगा कि अगर यह मांग लोकसभा में करूंगा, तो पूरी दुनिया मे मेरा नाम होगा और समाज के लोग प्रभावित होंगे! जबकि, लालकृष्ण आडवाणी, राम जेठमलानी, सुरेश केसवानी या अन्य किसी सिंधी नेता ने आज तक यह मांग नहीं की।
अपने आपको बड़ा नेता बताने की कोशिश में सांसद शंकर लालवानी ट्रैफिक पुलिस ने भी हत्थे चढ़ चुके हैं। पिछले साल खंडवा उपचुनाव के समय यातायात नियमों के उल्लंघन के आरोप में उन पर जुर्माना लगाया गया था। उन पर चुनाव आचार संहिता के दौरान अपने वाहन पर सांसद की नेमप्लेट लगाने और हूटर बजाने का आरोप लगा था। उनकी गाड़ी नो एंट्री पर भी खड़ी थी, जिसे पुलिस ने गाड़ी को लॉक करके 1500 रुपए का जुर्माना लगा दिया था। ये अकेला मामला नहीं है।
इंदौर में सुमित्रा महाजन लगातार आठ बार सांसद रहीं और लोकसभा अध्यक्ष जैसे उच्च पद पर पहुंची, पर उन्होंने सांसद पद की गरिमा को हमेशा बनाए रखा! उन्होंने न तो अनावश्यक श्रेय लेने की कोशिश की और न अपने आपको ‘विकास पुरुष’ की तरह प्रचारित करना चाहा! जबकि, शंकर लालवानी वो कर रहे हैं, जो सांसद पद की गरिमा के अनुकूल नहीं है। वे जन-प्रतिनिधि हैं, जिन्हें बकायदा लोकसभा से वेतन मिलता है! बेहतर हो कि वे शहर के नेता बनने की कोशिश करें, जिसे जनता दिल से चाहे, अनमने भाव से झेले नहीं!