Silver Screen:बड़ी फिल्मों का बाजार, छोटी फ़िल्में असरदार!
मनोरंजन भी एक कारोबार है, जिसमें पैसा लगाकर, पैसा कमाया जाता है। निर्माता जितना पैसा लगाता है, ब्याज समेत उससे ज्यादा कमाई की कोशिश करता है। समय के साथ फिल्मों का कारोबार जितना बढ़ा, ज्यादा पैसा लगाकर ज्यादा कमाई की उम्मीद की जाने लगी। लेकिन, फिल्मों का कारोबार बेहद असुरक्षित है। जरुरी नहीं कि इसमें फिल्मकार को हर फिल्म में फायदा ही हो, कई बार तो लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है। आशय यह कि जितनी बड़ी फिल्म, उतना बड़ा खतरा! जब कोई सैकड़ों करोड़ की फिल्म दर्शकों की पसंद पर खरी नहीं उतरती तो पूरा आसमान निर्माता पर गिरता है। राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ जब फ्लॉप हुई थी, तो उनका सबकुछ बिक गया। लेकिन, इसके विपरीत कम लागत वाली फिल्मों को यदि दर्शक नकार भी देते हैं, तो निर्माता सड़क पर नहीं आता। लेकिन, यदि ये फ़िल्में पसंद की जाती है, तो जमकर कमाई भी करती है। जय संतोषी मां, द कश्मीर फाइल और ‘आर्टिकल 15’ ऐसी ही छोटी फ़िल्में हैं, जिन्होंने कमाल कर दिया था।
फिल्मों के ‘अच्छे’ होने को उनके बड़े बजट से आंके जाने का रिवाज है। जितना बड़ा प्रोडक्शन हाउस, जितना बड़ा निर्माता उतनी ही बड़ी फिल्म! ‘मुगले आजम’ से शुरू हुआ ‘बड़ी’ फिल्मों का दौर आज भी जारी है! करण जौहर, यशराज फिल्म्स, संजय लीला भंसाली और शाहरुख़ खान का रेड चिली प्रोडक्शन हॉउस ऐसे ही कुछ नाम हैं, जो बड़े बजट वाली ‘बड़ी’ फ़िल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं! इसका मतलब यह नहीं कि भारी भरकम बजट से बनने वाली फ़िल्में सफल होती हैं! बड़े सितारों और महंगे सेटों वाली फिल्मों के बीच में कुछ ऐसी फिल्में भी आती हैं, जो दर्शकों पर खासा असर छोड़ती हैं और कमाई भी करने में पीछे नहीं रहती! लेकिन, लंच बॉक्स, पानसिंह तोमर, शिप ऑफ़ थीसिस, गैंग ऑफ़ वासेपुर कुछ ऐसी फ़िल्में हैं, जिन्होंने थिएटर से बाहर निकलते दर्शकों को कुछ सोचने पर मजबूर किया!
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करण जौहर का धर्मा प्रोडक्शन बहुत बड़ा बैनर है! इस बैनर ने दिल तो पागल है, कुछ कुछ होता है, अग्निपथ (रीमेक), स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर और ‘ये जवानी है दीवानी’ जैसी बड़े बजट की फार्मूला फिल्में बनाई! लेकिन, इसी प्रोडक्शन हाउस ने ‘लंच बॉक्स’ जैसी छोटी फिल्म भी बनाई! इसके अलावा विक्की डोनर, फरारी की सवारी, आर्टिकल 15, शिरीन फरहाद की तो निकल पड़ी और ‘कहानी’ छोटी फ़िल्में हैं, जिन्होंने बड़ी-बड़ी फिल्मों को पानी पिला दिया! ये कम बजट की ऐसी फ़िल्में थी, जिनमें न तो बड़े सितारे थे और न हो महंगे सेट! फिर भी ये फ़िल्में चली और बजट से कई गुना ज्यादा कमाई भी की! इन फिल्मों के निर्माण में यू-टीवी, वॉयकॉम, पीवीआर पिक्चर्स और रिलायंस जैसे प्रोडक्शन हाउस और स्टूडियोज़ ने पैसा लगाया या डिस्ट्रीब्यूट किया!
लागत और कमाई के मामले में 1975 में आई फिल्म ‘जय संतोषी मां’ को अब तक की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर माना जाता है, जिसने उसके साथ रिलीज हुई मल्टीस्टारर और अपने समय काल की सबसे महंगी ‘शोले’ के दर्शकों को खींच लिया था। इस फिल्म की अपार सफलता ने सभी को चौंकाया भी। सिर्फ 25 लाख के बजट में बनी इस धार्मिक फिल्म ने तब 5 करोड़ कमाए थे। ये अब तक की ब्लॉकबस्टर साबित हुई। इसके 47 साल बाद ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने कमाल किया। विवेक अग्निहोत्री की इस फिल्म की सफलता बहुत कुछ ‘जय संतोषी मां’ से मेल खाती है। 15 करोड़ की अनुमानित लागत में बनी इस फिल्म ने 341 करोड़ कमाए। 2013 में आई ‘आशिकी-2’ 1990 में आई संगीत से भरी महेश भट्ट की ‘आशिकी’ का सीक्वल थी। ‘आशिकी-2’ ने 78.64 करोड़ रुपए की कमाई की और ये ‘आशिकी’ से भी बड़ी हिट साबित हुई। मोहित सूरी द्वारा निर्देशित ‘आशिकी-2’ भी 15 करोड़ के बजट में बनी थी। 2018 में दो छोटी फिल्मों ने बड़े बजट की फिल्मों को रेस से बाहर कर दिया था। ये थी ‘बधाई हो’ और ‘स्त्री!’ 29 करोड़ के बजट में अमित रवींद्रनाथ शर्मा के निर्देशन में बनी ‘बधाई हो’ ने घरेलू बॉक्स ऑफिस पर ही 134.46 करोड़ का कलेक्शन किया था। जबकि, अमर कौशिक की निर्देशित हॉरर कॉमेडी ‘स्त्री’ तो 24 करोड़ से भी कम बजट में बनी थी। इसने 124.56 करोड़ की कमाई की।
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इस तरह की फ़िल्में हर दौर में बनती रही है। 80 के दशक में ‘जाने भी दो यारो’ जैसी कम बजट की कई फ़िल्में बनी और अच्छी चली! पेस्टनजी, मिर्च मसाला, सलाम बॉम्बे और ‘चश्मे बद्दूर’ जैसी कई फिल्में बनी! ये आर्ट नहीं, ठेठ फार्मूला थीं, लेकिन अर्थपूर्ण थी जिन्होंने दर्शकों का जमकर मनोरंजन किया! पिछले कुछ सालों में मेट्रो शहरों में कई मल्टीप्लेक्स थिएटर बने और इनमे चलने वाली फिल्मों का एक नया दर्शक वर्ग तैयार हुआ। नया दर्शक वर्ग मतलब महंगी कारों से आने वाले लोग, सीमित और गद्देदार सीटें, हमेशा कोल्ड ड्रिंक पीते और पोप कॉर्न चबाते दर्शक! इन दर्शकों को सस्ती टिकट वाली बिना सितारों वाली फ़िल्में कभी रास नहीं आती!
देखा जाए तो बड़े और छोटे बजट वाली फिल्मों के बीच हमेशा ही एक अघोषित जंग चलती रही है! छोटे बजट वाली फिल्मों को किसी बड़ी फिल्म से डर नहीं लगता! पर, महंगी फिल्मे बनाने वाले निर्माता हमेशा इस बात का ध्यान रखते हैं कि जब उनकी फिल्म रिलीज हो रही हो तो, दर्शकों को बांटने वाली कोई भी फिल्म मुकाबले में न खड़ी हो! क्योंकि, फिल्म का बजट जितना बड़ा होगा, उसका फ़ायदा भी उतनी देर से निकलेगा और नुकसान का अंदेशा भी ज्यादा होगा! ‘लंच बॉक्स’ जैसी छोटे बजट की फिल्मों में अपनी अदाकारी दिखाने वाले इरफ़ान खान भी मानते थे कि 90 और 2000 के दशक की शुरुआत में जो दौर था, आज उससे कहीं बेहतर वक़्त रहा। मसाला फिल्मों का सौ करोड़ रुपए कमाना भी छोटी फ़िल्मों के लिए अच्छा है! इसलिए कि ये लो-बजट फ़िल्में बड़े बजट की फिल्मों से कॉम्पटीशन नहीं करती, बल्कि उनकी मदद करती हैं! इनकी वजह से ही छोटी फ़िल्में बॉलीवुड में सरवाइव कर पाएंगी!
याद किया जाए तो 30 करोड़ की लागत से बनी लव रंजन की फिल्म ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ (2018) ने भी धमाल मचाया था। इस फिल्म में अपने परिचित अंदाज़ में शहरी युवा के प्यार और उसके साइड इफेक्ट्स को उकेरा था। फिल्म ने 100 करोड़ से ज्यादा का कारोबार किया। 2017 में आई ‘हिंदी मीडियम’ ने भी जबरदस्त कामयाबी हासिल की थी। सिर्फ 15 करोड़ में बनी इस फिल्म के प्रमोशन पर जरूर करीब 7 करोड़ फूंक दिए गए, पर 22 करोड़ की लागत से बनी फिल्म ने वर्ल्ड वाइड 110 करोड़ की कमाई की। इसमें भारत में ही 67.01 करोड़ की कमाई हुई। नीरज घेवन के निर्देशन में बनी ‘मसान’ 2015 में रिलीज हुई थी। महज 3 करोड़ लागत की इस फिल्म ने तीन गुना यानी 9 करोड़ की कमाई की। इसे कांस फिल्म फेस्टिवल में भी सराहा गया था। सधी हुई कहानी कहने के लिए चर्चित हंसल मेहता की 2012 में आई फिल्म ‘शाहिद’ को भी दर्शकों ने सराहा था। 80 लाख में बनी इस फिल्म ने लगभग तीन करोड़ कमाए थे। राजकुमार गुप्ता के निर्देशन में बनी ‘नो वन किल्ड जेसिका’ (2011) सिर्फ 9 करोड़ में बनी, जिसने 58 करोड़ की कमाई की थी। यह फिल्म साल 1999 में हुए जेसिका लाल हत्याकांड पर आधारित थी।
2011 में ही आई लव रंजन की फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ ने दर्शकों का एक नए तरह के सिनेमा से परिचय कराया था। 7 करोड़ में बनकर तैयार हुई इस फिल्म ने 17 करोड़ की कमाई की। तिग्मांशु धूलिया के निर्देशन में बनी ‘साहेब, बीवी और गैंगस्टर’ (2011) 4 करोड़ में बनाई गई, पर इसने बॉक्स ऑफिस पर 20 करोड़ की कमाई कर ली थी। ऐसी फिल्मों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है। अनुराग कश्यप के निर्देशन में बनी देव डी, निशिकांत कामत के निर्देशन में बनी मुंबई मेरी जान, अभिषेक कपूर के निर्देशन में बनी रॉक ऑन, निर्देशक नीरज पांडेय की 2008 में आई फिल्म ए वेडनेसडे, अनुराग बसु के निर्देशन वाली 2007 में आई फिल्म लाइफ इन मेट्रो, 2007 में ही आई श्रीराम राघवन के निर्देशन वाली ‘जॉनी गद्दार’ के अलावा अनुराग कश्यप की दो भागों में आई ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ को ऐसी ही फिल्मों में गिना जाता है, जिन्होंने कम लागत में फ़िल्में बनाकर धांसू कमाई की है।
पर, अब लगता है 100 और 300 करोड़ में बनने वाली फिल्मों के दौर के बाद 5, 10 और 15 करोड़ में बनने वाली फ़िल्में भी आएंगी, जो दर्शकों का मनोरंजन करने में बड़ी फिल्मों से ज्यादा सफल रहेंगी! इसका इशारा भी मिल गया। 5 करोड़ में बनी ‘विक्की डोनर’ ने 46 करोड़ कमाए थे! 10 करोड़ की ‘फरारी की सवारी’ ने करीब 15 करोड़ का कारोबार किया! जबकि, 15 करोड़ में ही बनी ‘शंघाई’ ने 19 करोड़ कमाए! विद्या बालन जैसी कलाकार को लेकर सिर्फ 8 करोड़ रुपए के बजट से बनी ‘कहानी’ ने तो 104 करोड़ रुपए कमाकर रिकॉर्ड बना दिया था! इसी तरह 8 करोड़ की ‘पानसिंह तोमर का आंकड़ा रहा 36 करोड़ रुपए। फिर भी सलमान, शाहरुख़ और आमिर खान को तो 100 करोड़ वाले क्लब में शामिल होने का ही शौक है! हो भी क्यों नहीं? जब निर्माता किसी सितारे के साथ फिल्म बनाने के लिए 200 करोड़ का जुआं खेलेगा तो 400 करोड़ की उम्मीद तो करेगा ही!