शशि हों या मल्लिकार्जुन, गांधी परिवार की कॉमन धुन…

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शशि हों या मल्लिकार्जुन, गांधी परिवार की कॉमन धुन...

शशि हों या मल्लिकार्जुन, गांधी परिवार की कॉमन धुन…

राहुल गांधी को विपक्षी निशाने पर लेकर पप्पू बनाने की चालाकी करने से भले ही बाज न आएं, लेकिन अध्यक्ष चुनाव को गौर से देखा जाए तो साफ नजर आता है कि गांधी परिवार का यह चिराग होशियारी में कोसों मील की दूरी अकेले तय कर चुका है। एक बार मौका तो मिले, उसके लिए हर रणनीति पर अमल कराने की क्षमता का सफल प्रदर्शन राहुल गांधी ने किया है। दरअसल कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के दोनों उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर भोपाल आए और समर्थन मांगा। दोनों के विचारों में भिन्नता रही। दोनों के आने से यह भी साफ नजर आया कि कौन  उम्मीदवार पार्टी समर्थित है और कौन उपेक्षित। पर दोनों उम्मीदवारों की यह कॉमन धुन उजागर हुई कि गांधी परिवार ही केंद्र में है और अध्यक्ष कोई भी बने पर आस्था गांधी परिवार में ही रहेगी…इसमें कतई संशय नहीं है।
और जिस तरह राजस्थान के मुख्यमंत्री को खलनायक बनाकर अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर किया गया, उससे साफ जाहिर होता है कि शायद पार्टी का यह नीतिगत फैसला ही था। वरना पार्टी गहलोत को शोक मनाने का मौका देने में देर न लगाती और सचिन के संसार को खुशियों की सौगात दे चुकी होती। गहलोत की नीयत पर शायद पार्टी के मन में संशय पैदा हुआ और फिर बड़ी चालाकी से अभी अध्यक्ष पद से किनारे किया…तो समय की अनुकूलता के साथ सीएम पद से हटाकर अमरिंदर जैसा हाल बना देगी। और पार्टी का नफा-नुकसान अपनी जगह, पर राहुल की रणनीति पर तो अमल हो ही सकेगा। और हो सकता है कि वक्त आने पर राहुल का यही हुनर सत्ता की डगर पर खुशियां बिखेर दे। खैर वह जब होगा, तब होगा…पर राहुल गांधी भी चरैवेति चरैवेति के मंत्र को सिद्ध करने में लगे हैं,भारत जोड़ो यात्रा इसका सबूत तो है ही। पार्टी में लोकतंत्र की बहाली के लिए जिस तरह अध्यक्ष पद को ठुकराकर चुनाव कराने और खुद चुनाव न लड़ने का फैसला सख्ती से लागू किया, वह मजबूत लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाने के लिए समझदारी भरा कदम तो है ही।
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वैसे तो भोपाल में  ‘शशि’ के तेवर ‘रवि’ को भी मात दे रहे थे, तो उनसे पहले भोपाल पहुंचे मल्लिकार्जुन भी ईद से बचकर मोहर्रम की खुशियां मनाने की दुहाई दे रहे थे। पर दोनों के ही मन में गांधी परिवार कॉमन है। और गांधी परिवार यानि राहुल गांधी… सोनिया-प्रियंका और बाकी सब निष्ठावान कार्यकर्ता सबका ध्येय यही कि राहुल तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं। तो देखें कि शशि ने क्या कहा। शशि ने कहा कि संगठन के विकेंद्रीकरण पर कार्य करना मेरी पहली प्राथमिकता होगी। यह चुनाव कांग्रेस संगठन की मजबूती के लिये है, सभी मिलकर लड़ेंगे।
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आदरणीय श्रीमती सोनिया गांधी जी मुझे राजनीति में लेकर आई थीं, मैं तो 29 सालों से संयुक्त राष्ट्र के साथ कार्य कर रहा था। राहुल गांधी जी के साथ कार्य करने का भी अवसर मुझे मिला। इस चुनाव में मेरी किसी से भी प्रतिस्पर्धा नहीं है, कांग्रेस पार्टी मेरा एक बृहद परिवार है और इसकी मजबूती के लिए हम सभी एकजुटता से काम करेंगे। यह चुनाव कांग्रेस संगठन की मजबूती के लिये है, हम सभी मिलकर कांग्रेस संगठन को मजबूत करने के लिए कार्य करेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष चाहे खड़गे जी बने या हम, सभी गांधी परिवार के साथ है। गांधी परिवार से कोई भी अलग नहीं है। गांधी परिवार ने इस देश के लिए जो त्याग, बलिदान और कुर्बानी दी है, उनका इतिहास आप, हम सभी जानते हैं।
 मतदाताओं से संवाद करने आया हूं, कांग्रेस पार्टी में वर्तमान में कुछ आवश्यक परिवर्तनों की जरूरत है, जिसको लेकर मेरा अपना एक विजन और अपनी एक सोच है, जिसको पार्टी के भीतर लागू करवाना यह मेरी पहली प्राथमिकता होगी।
थरूर ने कहा कि मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का संगठन कमलनाथ जी के नेतृत्व में एक अनुशासित संगठन बनकर उभरा है और मुझे और श्री खड़गे जी को बराबर का सम्मान और स्नेह दिया गया। तो यहां मतलब साफ था कि बाकी राज्यों में समानता का  अनुभव ‘शशि’ को नहीं हुआ। और यही से शुरुआत होती है पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक व्यवस्था के पौधे को जीवित कर वट वृक्ष बनाने की। कांग्रेस के ऐसे कदम ही पार्टी के भीतर ‘लोकतंत्र’ का दम भरने में कारगर साबित होंगे। और तब भी शशि हों या मल्लिकार्जुन, गांधी परिवार की कॉमन धुन संग ही पार्टी का लोकतंत्र फलने फूलने का दावा करता रहेगा।