आज ‘हिंदी’ के सम्मान का दिन है…

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आज ‘हिंदी’ के सम्मान का दिन है…

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल का लाल परेड मैदान आज हिंदी के सम्मान के इतिहास में दर्ज होने के दिन का साक्षी बनने जा रहा है। चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई हिंदी में हो सके, इसके लिए मध्यप्रदेश चिकित्सा विभाग और मंत्री विश्वास सारंग की मेहनत ने पहले साल की किताबें हिंदी में तैयार की हैं। इनका विमोचन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह करेंगे। अपनी भाषा में पढ़ाई हो, यह नई शिक्षा नीति का लक्ष्य है। और मध्यप्रदेश अब पहला राज्य बनने जा रहा है, जहां चिकित्सा शास्त्र के पहले वर्ष के छात्र हिंदी में पढ़ाई कर सकेंगे। और एक दिन वह होगा, जब हिंदुस्तान के हिंदी भाषी क्षेत्र में सारे विषयों की पढ़ाई-लिखाई हिंदी में होगी। और तब हिंदी को खुद पर गर्व होगा और भारत माता का माथा सम्मान से दमकने लगेगा और ऊंचा हो जाएगा। और तब हम अंग्रेजों की गुलामी के बुरे दिनों की इस दागदार निशानी से भी आजाद हो सकेंगे। और तब हम अपने ही देश में अंग्रेजी बोलने वाले अपनों द्वारा अपने ही अंग्रेजी न बोल पाने वाले भाई-बहनों को हीनता के भाव से देखने की मानसिकता से आजादी पा लेंगे। फिलहाल इस संशय के साथ कि मध्यप्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा उठाया जा रहा यह कदम क्या वास्तव में सफलता के शिखर को छू पाएगा? कुछ ऐसी ही चिंताएं और संदेह जताए जा रहे हैं। पर खुशी इस बात की है की आजादी के 75 साल के बाद ही सही, हिंदी को उसका सम्मान मिल रहा है।

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हमने अपने पिछले लेख में यह सवाल उठाया था कि क्या दवाओं के नाम भी हिंदी में लिखे जाएंगे और चिकित्सक का पर्चा भी हिंदी में लिखा जाएगा। इस बात का समाधान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सहज लहजे में यह चुटकी लेते हुए किया कि श्री हरि का नाम लिखकर चिकित्सक पर्चे पर दवाओं के नाम भी हिंदी में लिखेंगे। हालांकि इसे व्यवस्थित करने के लिए उन्होंने चिकित्सकों को जिम्मेदारी सौंप दी। पर तस्वीर साफ है कि हिंदी को सम्मान मिलने का दिन आज यानि 16 अक्टूबर 2022 को आ ही गया। और हिंदी भाषी डॉक्टर जब ग्रामीण अंचल में पहुंचेगा, तब गांववासी अपने मन की बात अपनी भाषा में अपने डॉक्टर से कहकर चिंतामुक्त हो जाएंगे। उन्हें अहसास रहेगा कि डॉक्टर कोई अपना भाई-बहन ही है। ऐसे में उनकी आधी तबियत तो पहले झटके में ही ठीक हो जाएगी, जब डॉक्टर बीमारी की वजह और समाधान की व्याख्या बेहतर तरीके से हिंदी में करेगा।

हिंदी के सालों के संघर्ष के साथी देश के जिम्मेदार नेता, कवि और बुद्धिजीवी रहे हैं। जिनकी भावनाएं ही हिंदी को इस मुकाम पर लाई हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लिखा था कि – “बनने चली विश्व भाषा जो, अपने घर में दासी, सिंहासन पर अंग्रेजी है, लखकर दुनिया हांसी, लखकर दुनिया हांसी,हिंदी दां बनते चपरासी, अफसर सारे अंग्रेजीमय, अवधी या मद्रासी, कह कैदी कविराय, विश्व की चिंता छोड़ो, पहले घर में अंग्रेजी के गढ़ को तोड़ो …। और अंग्रेजी का गढ़ को तोड़ते-तोड़ते आजादी के बाद पचहत्तर साल बीत गए।

प्रसिद्ध कवि, समालोचक केदारनाथ ने ‘मातृभाषा’ पर लिखा था कि – “जैसे चीटियां लौटती हैं, बिलों में, कठफोड़वा लौटता है, काठ के पास, वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक, लाल आसमान में डैने पसारे हुए,हवाई अड्डे की ओर … ओ मेरी भाषा, मैं लौटता हूं तुममें, जब चुप रहते-रहते, अकड़ जाती है मेरी जीभ, दुखने लगती है,मेरी आत्मा …।

तो भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लिखा था –
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल…बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल। अंग्रेजी पढ़ के जदपि, सब गुन होत प्रवीन…पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन…।

तो आज दिन है जब आजादी के पहले से हिंदी को लेकर चली आ रही चिंता आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई हिंदी में होने की शुरुआत करते हुए मध्यप्रदेश  सम्मान और गौरव का नया अध्याय लिख रहा है। सीखने को हर नागरिक कितनी ही भाषाओं का ज्ञाता होने को स्वतंत्र है, पर अपनी भाषा की कीमत चुकाकर या सम्मान गिराकर नहीं। फिलहाल हम यही उम्मीद करते हैं कि मध्यप्रदेश से हो रही शुरुआत हिंदी भाषा के सम्मान का स्वर्णिम अध्याय रचेगी।