Jhooth Bole Kaua Kaate: जंगल का राजा शेर तो, मैं हूं बादशाह

884

झूठ बोले कौआ काटे: जंगल का राजा शेर तो, मैं हूं बादशाह

मैं हूं टाइगर यानि बाघ। मां दुर्गा का वाहन !… जंगल का बादशाह भी कहते हैं लोग मुझे।

आज से ठीक 50 साल पहले 18 नवंबर 1972 को मुझे भारत का राष्ट्रीय पशु चुना गया था। इसके पूर्व, जंगल का राजा शेर ही भारत का राष्ट्रीय पशु हुआ करता था। लेकिन, जब बढ़ते शिकार, जलवायु परिवर्तन और घटते वन प्रांतर से मेरे वंश के मिटने का संकट उत्पन्न हो गया तो देश-दुनिया की सरकारों ने मेरे संरक्षण की सुध ली।

न-न, इसमें अहसान की कोई बात नहीं। मुझे अपनी खूबियों के कारण ही भारत का राष्ट्रीय पशु चुना गया है। मैं धरती पर सबसे तेज दौड़ने वाला प्राणी हूं। मैं शेरों के मुकाबले अधिक लंबा, भारी और ताकतवर हूं, भले ही शेर हमारी तुलना में अधिक ऊंचे होते हैं। मेरा वजन 250 से 465 किलोग्राम तक होता है, एक शेर का वजन केवल 170 से 360 किलोग्राम तक ही होता है। यही नहीं, शेरों के मुकाबले मेरा दिमाग भी 25 प्रतिशत बड़ा होता है। शेरों की तुलना में मेरे दांत भी अधिक नुकीले और मजबूत होते हैं। मेरे पंजे का एक झटका भालू की खोपड़ी और रीढ़ तक को तोड़ सकता है।

Lion Tiger

मैं शेर के मुकाबले अधिक चुस्त, फुर्तीला और आक्रामक स्वभाव का हूं और अकेले ही शिकार करता हूं, मगर योजना बना कर। भूख लगी हो या नहीं, शिकार सामने है तो फिर बख्शना नहीं आता मुझे। जबकि, शेर थोड़े आलसी होते हैं। अधिकतर आराम से पड़े सोते रहते हैं। कभी-कभी तो 20-20 घंटे उंघने में ही बिता देते हैं। वे केवल पेट भरने के लिए ही शिकार करते हैं। उन्हें यदि भूख न लगी हो तो बिना वजह शिकार नहीं करते। मैं शानदार तैराक भी हूं। आराम से 6 किलोमीटर तक तैर सकता हूं, नदी में सहजता से शिकार भी कर लेता हूं। भारी से भारी शिकार, यहां तक कि मगरमच्छ तक को दबोच कर नदी पार कर जाता हूं।

याद है, कुछ साल पहले रंथम्भौर नेशनल पार्क से ‘मछली’ मादा बाघ ने उस समय पूरी तरह विकसित 14 फीट के मगरमच्छ को मार दिया था। उस समय ‘मछली’ मादा बाघ की उम्र सिर्फ 20 साल थी जो की बहुत बूढ़ी थी। हम बाघो का जीवन-काल सिर्फ 10 से 15 साल ही होता है, न।

Famous Tiger Machhali

और तो और मैं 18 फीट से भी अधिक लंबी और 15 फीट तक ऊंची छलांग भी लगा लेता हूं। मेरी टांगें घोड़े के समान मजबूत होती हैं। मेरी पहचान मेरे शरीर की 100 से भी ज्यादा धारीदार पट्टियां हैं, लेकिन किन्हीं भी दो बाघों की धारीदार पट्टियां एक जैसी नहीं होती हैं, यह भी जान लीजिए।

तो फिर, जंगल का राजा शेर क्यों कहा जाता है? टाइगर अर्थात् मैं बाघ क्यों नहीं। लोगो का मानना है कि राजा बनने के लिए केवल ताकतवर होना आवश्यक नहीं। शेर स्वभाव और शक्ल से ही राजा लगता है। गर्दन में उगे घने बालों के कारण शेर सबसे शानदार दिखते हैं, राजा की तरह। शेर की दहाड़ गगनभेदी होती है। 8 किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है। उनकी रात में देखने की क्षमता 6 गुना अधिक होती है।

शेरों का व्यवहार भी राजा जैसा ही होता है। वे परिवार की तरह झुंड में रहते हैं। एक झुंड में एक या दो नर शेर और शेष 10-15 शेरनियां तथा बच्चे होते हैं। इस झुंड के लिए भोजन की व्यवस्था करने और बच्चों को पालने की जिम्मेदारी शेरनियों पर होती है। वे शिकार कर के लाती हैं और शेर तथा बच्चों के सामने डाल देती हैं। शिकार का सबसे बड़ा भाग शेर खाता है और बचा-खुचा शेरनियां।

शेर झुंड की शिकार-सीमा तक नजर रखते हैं और उसकी रक्षा करते हैं। शिकार बहुत बड़ा होता है तो शेर शेरनियों की सहायता भी करते हैं। अपनी सीमा में दाखिल घुसपैठियों का पीछा भी करते हैं। शेर द्वारा बनाए गए नियमों का पालान समूह के सभी सदस्यों को मानना पड़ता हैं ! नहीं मानने पर शेर उन्हें अपने अनुसार दंड देता हैं !तो, लोग कहते हैं कि यही सब बातें शेर को जंगल का राजा बनाती है।

किवदंतियों से लेकर कहानियों तक हमेशा ही शेर को जंगल का राजा बताया गया है। लेकिन, यह तथ्यात्मक गलती है। वजह है अंग्रेजी का अनुवाद। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अंग्रेजी का ‘जंगल’ (Jungle) शब्द हिंदी के ‘जंगल’ (Jangle) शब्द से लिया गया है। हिंदी में जंगल का अर्थ होता है- ऊसर या बंजर भूमि। बंजर भूमि से मतलब है घास के विशाल मैदान जहां शेर असल में रहता है। सच तो ये है कि रहता तो मैं ही हूं घने जंगलों में, शेर अधिकतर बड़ी झाड़ियों में रहते हैं।

खैर, क्या आपको पता है कि मैंने सदियों पहले भारत-चीन के बीच सिल्क रूट की खोज की थी। भारतीय बाघों पर किए गए एक शोध में पशु वैज्ञानिकों को हमारे पूर्वजों के चीन में रहने के संकेत मिले हैं। कुछ समय पहले वैज्ञानिकों को एक विलुप्त उप प्रजाति के बाघ का डीएनए मिला था। उसकी जांच से वैज्ञानिकों को पता चला कि मेरे पूर्वज लगभग 10 हजार साल पहले मध्य चीन से भारत आए थे।

चीन से भारत आने के लिए हम बाघों के पूर्वजों ने चीन के जिस संकरे गांसु गलियारे का इस्तेमाल किया था, हजारों साल बाद वही मार्ग व्यापारिक सिल्क रूट (रेशम मार्ग) के तौर पर दुनिया में प्रसिद्ध हुआ।

झूठ बोले कौआ काटेः

25 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बाद से रॉयल बंगाल टाइगर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक रहा है, इसे सिंधु घाटी सभ्यता की पशुपति मुहर पर भी अंकित किया गया था। बाघ बाद में 300 ईस्‍वी से 1279 ईस्‍वी तक चोल साम्राज्य का प्रतीक भी रहा। हिंदू पौराणिक कथाओं और वैदिक युग में बाघों को शक्ति का प्रतीक माना गया है।

भारत में बाघ बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, लेकिन शेरों की संख्या 1 हजार भी नहीं है। बाघ (उत्तरी-पश्चिमी भाग को छोड़कर) लगभग पूरे देश में पाये जाते हैं। जबकि, शेरों के लिए देश में इकलौता सुरक्षित ठिकाना गुजरात के जंगल हैं। यहां “गिर जंगल” ऐसी शरणगाह हैं, जहां हमेशा से शेर रहे हैं।

Tiger conservation

हर साल 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत साल 2010 में की गई थी। वैश्विक स्तर पर बाघों के संरक्षण को लेकर भारत की स्थिति काफी अच्छी है। भारत ने 2022 में बाघों की जनसंख्या दोगुना करने का लक्ष्य 2018 में ही पा लिया था। इस साल के यानी 2022 के आंकड़े आने बाकी हैं। भारत में 2021 तक कुल 53 टाइगर रिजर्व हैं। जबकि, वर्ष 2006 में बाघ विलुप्त होने के कगार पर थे। तब, देश में बाघों की कुल संख्या 1411 थी। विश्व वन्यजीव कोष और सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की बदौलत 2018 में संख्या बढ़कर 2967 हो गई। वर्ष 2018 में, बाघों की अधिकतम संख्या (526) मध्य प्रदेश में थी, इसके बाद 524 बाघों के साथ कर्नाटक का नंबर था, और कुल 442 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे स्थान पर था। ऐसा माना जा रहा है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में भी इस बार बाघों की संख्या 300 के पार जाएगी।

वर्तमान में दुनिया भर में बाघों की जनसंख्या लगभग 6000 है। इनमें से 3891 बाघ (लगभग 70 फीसद) भारत में हैं। बाघ को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के बाद इन्हें और अन्य विलुप्तप्राय वन्य जीवों के संरक्षण के लिए 1972 में भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम लागू किया गया। बाघों के शिकार के खतरे को खत्म करने के लिए सख्त शिकार विरोधी नियम बनाए गए और समर्पित टास्क फोर्स स्थापित की गई। इससे इनके अवैध शिकार पर लगाम लगाने में मदद मिली।

देश में बाघों की शंख्या में बढ़ोतरी के दावों के बीच राष्ट्रीय पशु का अस्तित्व संकट में है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने बीते दिनों संसद में बताया कि वर्ष 2019 से 2021 के बीच हर तीसरे दिन एक बाघ की मौत हुई है। इस तरह इन तीन वर्षों में कुल 329 बाघ मौत के मुंह में चले गए। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के अनुसार, वर्ष 2021 में कुल 126 बाघों की मृत्यु दर्ज की गई है। यह एक दशक में सबसे अधिक है।

“टाइगर स्टेट” मध्य प्रदेश में बाघों की मृत्यु की संख्या सबसे अधिक है। उसके बाद महाराष्ट्र और कर्नाटक का स्थान है। मरने वाली बड़ी बिल्लियों में से लगभग आधी की मृत्यु शिकारियों, दुर्घटनाओं और संरक्षित क्षेत्रों के बाहर मानव–पशु संघर्ष के कारण हुई है। यह इस बात का सबूत है कि बाघों के संरक्षण की दिशा में सरकारों द्वारा किए जा रहे प्रयास नाकाफी हैं।

Modi Tiger

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि बाघों की रक्षा की कहानी जो “एक था टाइगर” से शुरू हुई थी। यह “टाइगर ज़िंदा है” (टाइगर ज़िंदा है) तक पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि यह कहानी रुकनी नहीं चाहिए।

और ये भी गजबः

पारिस्‍थतिकी तंत्र में सामंजस्‍य बैठाने में बाघ महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सदियों से बाघ को अपनी शक्ति, एकान्त जीवन और साहस के कारण रहस्यवाद और औपन्‍यासिक कथाओं में विशेष स्‍थान दिया गया है। इन्होंने प्राचीन और आधुनिक संस्कृतियों और लोककथाओं में अभिन्न भूमिका निभाई है; इनकी अद्भूत विशेषताओं के कारण अनेक प्रतीक चिन्‍हों में इनका प्रयोग किया जा रहा है। भारत, चीन और जापान जैसी जगहों पर मौजूद सदियों पुरानी संस्कृतियों ने अपने विभिन्न लोककथाओं, कहानियों और मिथकों में बाघों का अत्यधिक उपयोग किया है। इस प्रकार, यह कई अलग-अलग सांस्कृतिक पहचानों का महत्वपूर्ण अंग बन गया। यह भारत के साथ-साथ मलेशिया, दक्षिण कोरिया, बांग्लादेश का राष्ट्रीय पशु भी है।

और ये भी गजब की pic

बाघ पूर्वी एशिया में रॉयल्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं। चीन की 12 राशियों में मौजूद पशु श्रृंखला में से एक बाघ है। बाघों के माथे का चिन्‍ह काफी हद तक एक चीनी अक्षर से बहुत मिलता-जुलता है जिसका अंग्रेजी अनुवाद “राजा” होता है। इसलिए इसे जानवरों का राजा भी माना जाता है। सफेद बाघ शरद ऋतु का प्रतिनिधित्व भी करता है। यह चीनी नक्षत्र के चार प्रतीकों में से एक है। 1988 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में सियोल में, कोरियाई एथलीटों और प्रशंसकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए बाघ की छवि का प्रयोग किया गया था क्योंकि यह यहां की संस्कृति के साथ दृढ़ता से जुड़ा हुआ है। बौद्ध इसे तीन संवेदनहीन प्राणियों में से एक मानते हैं। जिनमें एक, बाघ (क्रोध), दूसरा, बंदर (लालच) और तीसरा, हिरण (प्रेम की भावना) का प्रतिनिधित्व करता है। देवी दुर्गा का वाहन शेर और बाघ, दोनों हैं। महिषासुर का वध करते समय वह सिंह पर सवार थीं। जबकि, अन्य दैत्यों का वध करते समय वह बाघ पर सवार थीं।