सिंधिया समर्थकों को विभीषण कह फंसे मुरलीधर….

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सिंधिया समर्थकों को विभीषण कह फंसे मुरलीधर….

– विधानसभा चुनाव में अभी एक साल का समय है और भाजपा-कांग्रेस में अभी से घात-प्रतिघात का दौर तेज है। मुद्दे भी बे-सिर-पैर के, जिनका जनता और प्रदेश की तरक्की से कोई वास्ता नहीं। अब भाजपा के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव के एक बयान पर घमासान है। उन्होंने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए नेताओं को विभीषण कह दिया। आम धारणा में कोई खुद को विभीषण कहलाना पसंद नहीं करता।

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उसे घर का भेदी माना जाता है। इधर मुरलीधर बोले और उधर कांग्रेस ने इसे लपका, लिहाजा दोनों पक्षों में तलवारें खिंच गईं। कांग्रेस के मीडिया प्रमुख केके मिश्रा ने लिख डाला कि ‘स्वाभिमान रहित दलबदलुओं को दिए गए इस सम्मान के बाद भाजपा इस शब्द को समानजनक बता रही है? वैसे तो कुत्ता भी वफादार होता है, अब क्या?’ जवाब में भाजपा के मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पारासर बोले कि ‘विभीषण सर्वथा स्तुत्य और वंदनीय हैं। विभीषण नहीं होते तो रावण के राज का अंत कैसे होता और रामराज्य की स्थापना कैसे होती है? जिन्हें विभीषण शब्द पर आपत्ति है वह अपने नाम के साथ रावण जोड़ लें।’ इधर कांग्रेस की संगीता शर्मा बोलीं कि विभीषण इतने ही वंदनीय हैं तो भाजपा कार्यालय में उनका फोटो लगाकर रोज पूजा करे। सवाल है कि क्या मुरलीधर को सिंधिया समर्थकों को विभीषण कहना चाहिए? विभीषण की तरह क्या वे सिंधिया समर्थकों को भी राक्षस कुल का मानते हैं? क्या भाजपा राक्षस कुल के विभीषण की कभी पूजा करती है?

 राहुल गांधी को धमकी ‘स्टंट या खतरे की घंटी’….

– कांग्रेस नेता राहुल गांधी कई राज्यों से निकलते हुए भारत जोड़ो यात्रा के साथ मध्यप्रदेश में प्रवेश करने वाले हैं। यहां आने से पहले इंदौर में मिले एक धमकी भरे पत्र से हड़कंप मच गया है। सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई है। पत्र में राहुल पर हमला कर उन्हें उनके पिता राजीव गांधी के पास पहुंचाने, बिस्फोट से इंदौर को दहलाने और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को भी गोली मारने की धमकी दी गई है।

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गांधी परिवार के कई सदस्य शहीद हो चुके हैं। ऐसे में राहुल को धमकी किसी भी सरकार के लिए चिंता की बात होना चाहिए। यह प्रदेश की सुरक्षा को चुनौती भी है। धमकी राहुल को मिले, नरेंद्र मोदी को या अन्य किसी बड़े नेता को, यह खतरे की घंटी है। ऐसे मसलों पर राजनीति नहीं की जाना चाहिए। हाल में गुरुनानक जयंती पर इंदौर के खालसा कालेज में हुए कार्यक्रम में कमलनाथ के शामिल होने पर बवाल हो चुका है। कमलनाथ को सिखों का हत्यारा ठहरा कर विरोध हुआ है। इस बीच यह धमकी भरा पत्र गंभीर मामला है। खालसा कालेज में ही राहुल पर हमले की बात कही गई है। ऐसे में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा का यह बयान गैर वाजिब है, कि धमकी भरा पत्र कांग्रेस का स्टंट है। मामले की पूरी जांच किए बिना ऐसा बयान कैसे दिया जा सकता है? वह भी सत्तारूढ़ दल के प्रदेश प्रमुख द्वारा।

सीटें बरकरार रखने चलना होगा संभल कर…. 

– विधानसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस ने बुंदेलखंड अंचल में अच्छा प्रदर्शन किया था। पार्टी ने सागर में 3, छतरपुर में 4 सीटें जीती थीं। टीकमगढ़, पन्ना, दमोह में भी संतोषजनक प्रदर्शन किया था। इस बार हालात बदले हुए हैं। सागर से मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और अरुणोदय चौबे पार्टी छोड़ चुके हैं। टीकमगढ़ जिले के कद्दावर नेता रहे बृजेंद्र सिंह राठौर का निधन हो चुका है। छतरपुर में विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी और दमोह के राहुल लोधी भी पार्टी छोड़ भाजपा में जा चुके हैं। छतरपुर में सत्यव्रत चतुवेर्दी सन्यास लेकर घर बैठ गए हैं। पार्टी के अधिकांश विधायकों की स्थिति नाजुक है। राजनगर सीट से विक्रम सिंह नाती राजा बमुश्किल सात सौ वोटों के अंतर से जीते थे। इस बार इनकी हालत सबसे ज्यादा खराब है। यहां पूर्व विधायक शंकर प्रताप सिंह मुन्ना राजा जीत सकते हैं, वे जिले में किसी भी विधायक से ज्यादा सक्रिय हैं लेकिन उन्हें प्रत्याशी बनाने के लिए मौजूदा विधायक नातीराजा का टिकट काटना होगा। मुन्ना राजा राजनगर से प्रत्याशी बने तो कांग्रेस को हर सीट में लाभ मिल सकता है। सत्यव्रत चतुवेर्दी के बाद मुन्ना राजा ही दूसरे ऐसे वरिष्ठ नेता हैं जिनका जिले की हर सीट में असर है। उन्हें नजरअंदाज करना पार्टी को महंगा पड़ सकता हैं। साफ है, बुंदेलखंड में सीटें बरकरार रखने कांग्रेस को संभल कर चलना होगा।

भार्गव ने ऐसे दूर की शाह की गलतफहमी….

– केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के दूसरे सबसे ताकतवर नेता अमित शाह ने एक कार्यक्रम में प्रदेश के पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव को लेकर एक टिप्पणी कर थी। उन्होंने कहा था कि भार्गव लोकप्रिय नेता हैं लेकिन यदि इन्हें आदिवासी क्षेत्रों में भेजा जाए तो संभव है अच्छा रिजल्ट न दे पाएं। भार्गव को यह बात चुभी थी लेकिन बात शाह ने कही थी, इसलिए तत्काल कुछ बोल नहीं सकते थे।

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भार्गव को आदिवासी अंचल का कोई दायित्व भी नहीं दिया जा रहा था ताकि वे अपनी क्षमता दिखा सके। बिरसा मुंडा जयंती पर उन्हें एक अवसर मिला। भाजपा और सरकार ने तय किया कि प्रदेश भर के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में बिरसा मुंडा की जयंती मनाई जाए। गोपाल भार्गव ने अपने क्षेत्र के रहली में यह कार्यक्रम किया। भाजपा के पास पूरे प्रदेश से रिपोर्ट पहुंची, तब पता चला कि भार्गव बाजी मार ले गए। शहडोल के बाद रहली में आदिवासियों की सबसे ज्यादा भीड़ जुटी। यहां भार्गव ने घोषणा की कि आदिवासी परिवार का जो भी बालक 12 वीं परीक्षा पास कर लेगा, उसे नौकरी दिलाने की जवाबदारी उनकी होगी। एक भी आदिवासी बालक बिना नौकरी के नहीं रहेगा। इस एक कार्यक्रम के जरिए भार्गव ने शाह की गलतफहमी दूर करने की कोशश की और सिद्ध किया कि वे किसी भी चुनौती से निबटने का माद्दा रखते हैं।

 ‘छिंदवाड़ा के केक’ पर बवाल पहली बार नहीं….

– इंदौर में गुरुनानक जयंती के अवसर पर खालसा कालेज पहुंचे कमलनाथ को लेकर विवाद ठंडा भी नहीं पड़ा था और वे दूसरे विवाद में फंस गए। इस बार वजह बना छिंदवाड़ा में बना एक केक, जिसे कमलनाथ ने अपने जन्मदिन के उपलक्ष्य में काटा। छिंदवाड़ा का केक पहली बार चर्चा में नहीं है जिसे लेकर राजनीति गरमा गई। इससे पहले वर्ष 2003-04 में भी एक केक सुर्खियों में रहा था।

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इसे भाजपा नेत्री उमा भारती ने छिंदवाड़ा जिले में स्थित प्रसिद्ध जामसांवली के हनुमान मंदिर में काटा था। तब कहा गया था कि उमा ने हनुमान मंदिर में अंडे का केक काट दिया। कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया था और भाजपा सफाई देती घूम रही थी। तब उमा भाजपा की स्टार थीं। अब कमलनाथ द्वारा छिंदवाड़ा जिले में काटे गए केक का वीडियो वायरल है।

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आरोप है कि कमलनाथ ने हनुमान मंदिर आकार के बने केक को काट दिया। इस समय कमलनाथ मप्र में कांग्रेस के स्टार हैं और भाजपा उन पर हमला बोल रही है। पहले उमा को केक देने वाले की ओर से सफाई आई थी, उसी तर्ज पर कमलनाथ तक केक भेजने वाली महिला ने सफाई दी है। हालांकि कमलनाथ ने सिर्फ इतना कहा कि जो सच है, वह वीडियो में हैं। मैं ऐसी फिजूल बातों का जवाब देना उचित नहीं समझता। फिर भी भाजपा-कांग्रेस के बीच मसला गरम है।

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