बाबाजी का दृष्टिदोष अक्षम्य या क्षम्य

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बाबाजी का दृष्टिदोष अक्षम्य या क्षम्य

मै कलियुग के या यूं कहिए मोदी युग के महर्षि बाबा रामदेव का न सम्मान करता हूं और न अपमान।वे महान हैं इसलिए उनको महान मानना मेरी भी विवशता है। बाबाजी जो बोलते हैं,उसकी अनुगूंज मीलों दूर सुनाई देती है।

बाबा रामदेव पहले योग के कारोबारी थे बाद में वे स्वास्थ्य के लिए दवाएं बनाने लगे और बाद में वे सोंदर्य प्रसाधन के क्षेत्र में उतर आए। इतने के बावजूद जब बाबा रामदेव की पूछ -परख नहीं बढी तो वे महिला विशेषज्ञ बन गये।
बाबाजी कहते हैं कि महिलाएं साड़ी और सलवार सूट में ही फबती हैं।

 Baba Ramdev:
SEBI notice to Baba Ramdev:

बाबाजी के कथन को न चुनौती दी जा सकती है और न उसकी निंदा करना चाहिए। बाबाजी का कहा ब्रम्ह वाक्य माना जाना चाहिए। बाबाजी महिलाओं के बारे में आम आदमी से ज्यादा जानते हैं। बाबाजी ने खुद सलवार सूट पहनकर एक बार अपनी जान बचाई थी। मुझे लगता है कि बाबा रामदेव निर्मल मन के मालिक हैं। महिलाओं का सम्मान करते हैं और शायद इतना साहस कर सके कि महिलाओं के बारे में मन की बात कर सके।

महिलाएं किस पोशाक में अच्छी लगती हैं और किस में नहीं,ये मैंने कभी सोचा ही नहीं। बाबाजी के पास फुर्सत थी सो उन्होंने सोच लिया। मेरे पास नहीं थी इसलिए मैं नहीं सोच पाया। महिलाओं के बारे में सोचना बड़ी बात है। बड़े लोग ही बड़े काम है।हम जैसे लोग तो दो जून की रोटी से आगे सोच ही नहीं पाते। बाबा से मेरी दो-तीन मुलाकातें है और तीनों के तजुर्बे अलग अलग हैं।

महिलाओं के बारे में संन्यासी हो या सियासी एक ही नजर से देखता है। दोनों की नजर में गजब की समानता है। दोनों महिलाओं को सफलता की सीढ़ी और उपभोक्ता सामग्री समझते हैं। दोनों का महिला कल्याण इसी नजरिए से प्रभावित होता है। सलवार सूट पहनकर सियासत करने वाली बहन मायावती हों या साड़ी पहनने वाली ममता बनर्जी । दोनों बाबाओं और नेताओं की कुदृष्टि का शिकार हैं।

कभी -कभी सोचता हूं कि यदि बाबा रामदेव भारत छोड़ कुछ दिनों के लिए अमेरिका आ जाएं तो महिला सौंदर्य को लेकर उनका नजरिया बदल जाए या वे महिलाओं की पोशाक को लेकर नये सिरे से सोचने लगें। बाबाजी के उत्पाद अमेरिका में भी खूब बिकते हैं।

ब्लैक फ्राइडे पर मै किस्मत से अमेरिका में था। यहां मैंने महिलाओं को इतने विविध परिधानों में देखा कि हतप्रभ रह गया।मै बहुत मुश्किल से समझ सका कि सौंदर्य बोध बाहर की नजरों का नहीं बल्कि अंदर की नजरों का मामला है, यदि ऐसा न होता तो अमेरिका की आधी से ज्यादा महिलाओं को तलाकशुदा जीवन बिताना पड़ता।

महिलाओं को लेकर बाबाजी से भी पांच सदी पहले बाबा तुलसीदास भी विवादित हो चुके हैं। पूरी रामचरित मानस में वे महिलाओं को मर्यादा, त्याग और नीति, अनीति का पाठ पढ़ाते नजर आते हैं।बाबा रामदेव और बाबा तुलसीदास की नजर में महिलाओं को लेकर सोच में जमीन और आसमान का फ़र्क है।इस फ़र्क को समझकर लंपट रामदेव को महत्व देना बंद कर देना चाहिए।

बाबाजी की टिप्पणी से मै बिल्कुल आहत नहीं हुआ। महिलाओं को भी नाराज़ होकर पतंजलि के उत्पादों का बहिष्कार नहीं करना चाहिए, लेकिन सावधान रहना चाहिए। उनसे दूर रहना चाहिए। क्योंकि आसाराम और राम रहीम भी उसी छद्म बिरादरी और दुनिया से आते हैं जिससे बाबा रामदेव आते हैं। ये लोग नारी को देवी मानकर नहीं पूज सकते।