महिला मतदाता तय करेंगी गुजरात का चुनाव परिणाम

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महिला मतदाता तय करेंगी गुजरात का चुनाव परिणाम

 सार्वजिनक क्षेत्र में कभी यह भ्रम बना हुआ था कि भारतीय जनता पार्टी और उसकी मातृ संस्था  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ महिलाओं को समुचित महत्व नहीं देती | जबकि अनुभव बताता है कि भाजपा सामाजिक राजनैतिक क्षेत्रों में महिलाओं के समर्थन पर निर्भर है | मातृ शक्ति के रुप में पारिवारिक संस्कार संस्कृति को बढ़ावा देने के सिद्धांतों के साथ देवी दुर्गा , लक्ष्मी , सरस्वती , सीता राम  , राधा कृष्ण , शिव पार्वती की पूजा अर्चना को सर्वाधिक महत्व दे रही है | उनका लक्ष्य केवल राजनीतिक चुनावी सफलता नहीं वरन समाज को हिन्दू धर्म से ओत प्रोत रखना भी है | इसी विचारधारा और महिलाओं के जीवन में सुधार और प्रगति को आधार बनाकर  भाजपा गुजरात विधान सभा चुनस्व में बड़ी सफलता के लिए प्रयास कर रही है |

भारतीय लोकतंत्र के लिए यह अच्छा संकेत है कि चुनावों में महिलाओं की भागेदारी बढ़ती जा रही है | इससे चुनावों में महिलाओं के सामाजिक आर्थिक विकास के मुद्दे केंद्र में  अधिक आएँगे और महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी अधिक होगा |भाजपा अकेले ही महिला वोट बैंक पर नजर नहीं लगाए हुए है | अन्य पार्टियां भी महिलाओं  का समर्थन पाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं | कांग्रेस पार्टी में सोनिया गाँधी , राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी विधायिकाओं में महिला आरक्षण के वायदे करती रहीं हैं , लेकिन अब तक लोक सभा या किसी विधान सभा में  अपनी पार्टी में भी 33 प्रतिशत उम्मीदवार महिलाओं को नहीं बनाती हैं | उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में नवीन पटनायक और ममता बनर्जी भी महिला समर्थन जुटाने के लिए कुछ योजनाएं पेश करती रही हैं , लेकिन महिला   उम्मीदवार अधिक नहीं हैं |

 गुजरात में महिलाओं की सेफ्टी और सिक्योरिटी, कर्फ्यू मुक्त राज्य और सांप्रदायिक हिंसा की कोई घटना नहीं कुछ ऐसे कारक हैं, जिन्होंने भाजपा   को राज्य में पिछले दो दशकों के दौरान मतदाताओं का दिल जीतने में मदद की है |राज्य के 49,089,765 मतदाताओं में से 23,751,738 महिलाएं हैं और वे चुनाव तय करने में अहम भूमिका निभाती हैं. दूसरी ओर कांग्रेस के पास राज्य में भाजपा का मुकाबला करने के लिए रणनीति और सामंजस्य का अभाव है |केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव प्रचार के दौरान इस बात पर जोर दिया कि कैसे सांप्रदायिक दंगे नियमित मामले बन गए थे और कर्फ्यू साल में 200 दिन आम बात थी | भाजपा के सत्ता में आने के बाद से राज्य में महिलाएं ज्यादा सुरक्षित हैं, अब महिलाएं रात में खुलेआम घूम सकती हैं और गरबा का लुत्फ उठा कर बिना किसी डर के घर लौट सकती हैं.

विधानसभा चुनाव में पिछले पांच चुनावों में महिला विधायकों की संख्या 3 गुना बढ़ी है, हालांकि पुरुषों के मुकाबले यह अभी भी कम है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में 13 महिला विधायक चुनकर आईं थीं। 1998 में 4 महिला विधायक ही जीत पाई थी। महिला उम्मीदवारों की संख्या भी पुरुषों के मुकाबले राज्य में काफी कम है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 169 पुरुष जीते थे। गुजरात विधानसभा में कुल 182 सीटें हैं।

गुजरात में वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक महिला उम्मीदवार मैदान  में उतरीं थी। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार 126 महिलाएं मैदान में थी, हालांकि यह अलग बात है कि इनमें से 104 की जमानत जब्त हो गई। महिला उम्मीदवारों की संख्या भी बढ़ी है। 1998 के चुनाव में सिर्फ 49 महिलाएं ही चुनाव मैदान में थी। 2017 के चुनाव में कुल 1828 उम्मीदवार मैदान में थे, जिसमें 1702 पुरुष थे।

 पांच विधानसभा चुनावों में गुजरात में महिला वोटरों की संख्या काफी बढ़ी है। जबकि महिला मतदाताओं  के वोटिंग प्रतिशत में 11 फीसदी से अधिक की बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष 1998 में 1.39 करोड़ महिला मतदाता थी, इनमें 77.02 लाख महिलाओं ने वोट दिया था। यानि 55.03 फीसदी मतदाताओं    ने मतदान किया था। जबकि वर्ष 2017 के चुनाव में 2.08 करोड़ महिला मतदाता थी, इनमें से 1.37 करोड़ ने अपने मतदान का प्रयोग किया था। इस चुनाव में मतदान का प्रतिशत प्रतिशत 66.11 फीसदी था।गुजरात चुनाव में पहले चरण के लिए 1 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। चुनाव आयोग के अनुसार पहले चरण के लिए 788 उम्मीदवार मैदान में हैं जिसमें 70 महिलाएं हैं। पहले चरण में 89 सीटों पर मतदान होंगे।गुजरात चुनाव  में पहले चरण के लिए 1 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। चुनाव आयोग के अनुसार पहले चरण के लिए 788 उम्मीदवार मैदान में हैं जिसमें 70 महिलाएं हैं। पहले चरण में 89 सीटों पर मतदान होंगे।

गुजरात की पहली  महिला मुख्यमंत्री  आनंदीबेन पटेल करीब दो वर्ष  तक रहीं पद पर रहीं । पाटीदार आरक्षण आंदोलन के चलते छोडनी पडी थी सीएम की कुर्सी। एक स्कूल शिक्षिका से कैरियर की शुरुआत कर सीएम की कुर्सी तक पहुंची आनंदीबेन की पहचान सख्त एवं अनुशासित प्रेमी नेता की रही हैं। आनंदीबेन की निर्णयशक्ति गजब की रहीं उनके कार्यकाल में गुजरात में बडी संख्या में सहकारी महिला संगठनों को संगठित व मजबूत किया गया।

 महिला सशक्तिकरण के गुजरात में हजारों उदाहरण मिल जाएंगे लेकिन राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के मामले में गुजरात की महिलाएं उतनी खुशकिस्मत नहीं रहीं। 1960 से अब तक राज्य में एक ही महिला मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल व एक ही विधानसभा अध्यक्ष डॉ नीमाबेन आचार्य बन सकीं। विधानसभा में महिला सदस्यों की संख्या 10 फीसदी से कम ही रहीं। अब तक हुए 13 चुनाव में 2307 विधायक चुने गए  जिसमें महिलाओं की संख्या महज 111 रहीं।

 गुजरात में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए ‘बेटी बचाओ’ और ‘गौरव नारी नीति’ जैसी करीब डेढ़ दर्जन योजनाएं लंबे समय से क्रियान्वित हैं और कई क्षेत्रों में इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं  | भाजपा महिलाओं के कल्याण और आर्थिक प्रगति के के लिए मोदी राज में शुरु योजनाओं को गिनाकर व्यापक सफलता की उम्मीद रखती है | इस दृष्टि से नई विधान सभा में अधिक महिलाओं के प्रतिनिधित्व की आशा की जानी चाहिये |

( लेखक आई टी वी नेटवर्क इंडिया न्यूज़ और दैनिक आज समाज के संपादकीय निदेशक हैं )

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।