भोपाल। राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने सूचना के अधिकार के एक मामले में नगर पालिका के लोक सूचना अधिकारी को 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। इस केस में आवेदक से दस्तावेजों के बदले 40 हजार रुपए की फीस भी वसूली गई थी। आयोग ने आवेदक को यह रकम भी वापस दिलाई है।
यह मामला दमोह की पथरिया नगर पालिका है। अक्टूबर 2019 में अावेदक अनिल तिवारी ने चार सालों का रिकॉर्ड मांगा था। चाही गई जानकारी विस्तृत स्वरूप और कई अलग विषयों की थी, जिसे एक ही आवेदन में प्रस्तुत किया गया था
तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी महेश सारिया ने आवेदन में चाही गई जानकारियों की फीस 40 हजार रुपए लगाई। सूचना के अधिकार कानून के अनुसार फीस जमा करने का जवाब 30 दिन की समय सीमा में दिया गया। आवेदक ने यह रकम जमा करा दी।
जब इसके बावजूद उन्हें जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने संयुक्त संचालक नगरीय प्रशासन सागर संभाग को प्रथम अपील की। प्रथम अपीलीय अधिकारी ने सारी जानकारी निशुल्क देने के आदेश दिए। फिर भी जानकारी नहीं मिलने पर वे द्वितीय अपील में आयोग के समक्ष पेश हुए।
आयोग ने पाया मूल आवेदन में प्रश्नात्मक, जटिल और अलग-अलग विषयों की चाही गई जानकारी अतिविस्तृत थी, जिसके दस्तावेजों की गणना अपने आप में एक लंबा और दुरूह कार्य था किंतु लोक सूचना अधिकारी द्वारा जारी शुल्क संबंधी सूचना पत्र ने नगर पालिका को अजीब स्थिति में डाल दिया। आयोग ने लोक सूचना अधिकारी को धारा 20 (1) के तहत जुर्माने का नोटिस दिया।
लोक सूचना अधिकारी ने अपने जवाब में कहा कि नगर पालिका के प्रभारी लेखापाल ने समय पर जानकारी उपलब्ध नहीं कराई इसलिए अावेदक को यह जानकारी नहीं दी जा सकी।
जबकि वे यह नहीं बता सके कि 40 हजार रुपए की लागत के दस्तावेजों की गणना किसने कितने समय में की थी और किस आधार पर यह शुल्क मांगा गया था? वे यह भी प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके कि शुल्क अदा करने के बाद भी जानकारी नहीं देने पर प्रभारी लेखपाल के विरुद्ध उन्होंने क्या कार्रवाई की?
आयोग ने आवेदक के द्वारा जमा की गई राशि को वापस लौटाने के साथ ही दोषी अधिकारी महेश सारिया पर 25 हजार रुपए के जुर्माने का आदेश दिया। आयोग ने इस निर्णय को अधिकारी की सेवा पुस्तिका में दर्ज करने के भी आदेश दिए।
इस प्रकरण में खास बात यह है कि चाही गई एकमुश्त जटिल जानकारी के आवेदन और उसे निशुल्क देने के प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश को भी अमान्य कर दिया और जो भी जानकारी आवेदक को मिल गई, उसे पर्याप्त माना।
-‘एक ही आवेदन में अनगिनत विषयों की बेहिसाब जानकारी की एकमुश्त मांग किसी व्यापक लोकहित को सिद्ध नहीं करती। ऐसे दस्तावेजों को जुटाना एक कठिन और जटिल काम है। लोक सूचना अधिकारी को शुल्क वसूलने के बाद भी जानकारी न देना कानून का स्पष्ट उल्लंघन है। अधिकारियों को धारा 20 (1) के प्रावधानों का पता होना चाहिए।’
विजय मनोहर तिवारी, राज्य सूचना आयुक्त।