एक बंगला बने न्यारा , जो नेताजी को लगे प्यारा
यह बहुत पुराना प्रसिद्ध गीत है – ‘ एक बंगला बने न्यारा ‘ | मुख्यमंत्रियों के बंगलों के शुभ अशुभ होने , बदलने की चर्चाएं विभिन्न राज्यों में होती रही हैं | लेकिन इन दिनों दिल्ली और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों के सरकारी बंगलों के निर्माण कार्य गंभीर विवाद के मुद्दे बन गए हैं | पत्रकारिता में लंबे अर्से से जुड़े रहने के कारण मुझे देश के कई मुख्यमंत्रियों से उनके निवास पर मिलने और बातचीत के अवसर मिले हैं | इनमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द नारायण सिंह , श्यामाचरण शुक्ल , अर्जुन सिंह , शिवराज सिंह , बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर , भागवत झा आज़ाद , सत्येंद्र नारायण सिंह , नीतीश कुमार , उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी , मुलायम सिंह यादव , राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत , हरिदेव जोशी , वसुंधरा राजे ,आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू , कर्नाटक के मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े भी रहे हैं | मतलब विभिन्न अवधि में रहे मुख्यमंत्रियों के निवास में सोफे , पर्दे , दीवारों की पुताई के रंग या थोड़ी मरम्मत और एकाध बाहरी कार्यालय कक्ष का निर्माण देखा है | गोविन्द नारायण सिंह तो आई सी एस करने के बाद राजनीति में आए और कुछ अन्य राजसी संपन्न परिवारों की पृष्ठ्भूमि से थे | राजसी परिवारों से महाराजा डॉक्टर कर्णसिंह और कुवंर नटवर सिंह ( आई एफ एस ) राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण पदों पर रहे , लेकिन उनके सरकारी निवास में भारी बदलाव या भव्यता नहीं दिखी |
वर्तमान मुख्यमंत्रियों में ओड़िसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक संपन्न राजनीतिक परिवार से हैं | उनके पिता बीजू पटनायक देश के शीर्ष नेता रहे हैं | नवीन पटनायक करीब 22 वर्षों से मुख्यमंत्री पद पर हैं | लेकिन सरकारी बंगला लेने के बजाय अपने पुराने निजी निवास पर ही रहते हैं | आज भी उनके कार्यालय जाने वाले पत्रकार यह देख सकते हैं कि उनकी पुरानी कुर्सी का लेदर कवर भी थोड़ा फटा हुआ है | मंत्रियों के साथ बैठक के बड़े कमरे में पुरानी नई टाइल्स लगी देख अटपटा लगता है | लेकिन नवीन बाबु ने अधिक बदलाव नहीं होने दिया | अपनी पुरानी मारुति स्टीम कार भी वर्षों तक उपयोग करते रहे और कुछ समय पहले भारी वर्षा के दौरान वह कार रास्ते में बंद होकर बैठ गई , तब अधिकारियों ने कार बदलने के लिए कहा तो किसी बड़ी एस यू वी ( suv ) के बजाय नवीन पटनायक मारुति सुजुकी एस एक्स 4 ( s s x 4 ) लेने को तैयार हुए | उनका लक्ष्य प्रधान मंत्री की दौड़ में रहने के बजाय अपने प्रदेश की जनता के लिए अधिकाधिक काम करने का रहा | तभी तो ओडिसा की निरंतर प्रगति हो रही है और नक्सल उग्रवाद की समस्या भी लगभग नियंत्रित हो गई | नवीन बाबु की तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सरकारी बंगले के बजाय अपने पुराने पारिवारिक निवास में रहने का फैसला किया और उसमें भी कोई नई साज सज्जा नहीं की |
इस पृष्ठभूमि में राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के बंगले की मरम्मत के नाम पर पुनर्निर्माण पर करीब 45 करोड़ रूपये खर्च किए जाने की सनसनीखेज रिपोर्ट सामने आने से हंगामा हो गया है |हाल ही में एक न्यूज़ चैनल टाइम्स नाउ नवभारत के हवाले से रिपोर्ट सामने आई कि दिल्ली के सीएम ने अपने घर के नवीनीकरण पर लगभग 45 करोड़ का खर्च किया है | पीडब्लूडी के दस्तावेज़ों में इस रिनोवेशन से जुड़ा जो ब्योरा दिया गया है उसके अनुसार, सिविल के अलावा आवास पर बिजली, पल्मिंग के काम, अलग-अलग स्मार्ट लाइट के लिए वोल्टेज फ़िक्सर, एनर्जी सफ़िशिएंट 80 पंखे, एक डंबवेटर लिफ्ट (खाना पहुंचाने वाली लिफ़्ट), 23 पर्दे शामिल हैं |
आम आदमी पार्टी का कहना है ये घर मुख्यमंत्री का अपना घर नहीं है बल्कि सरकारी आवास है, और ये ख़र्च सरकारी संपत्ति पर ही किया गया है | पीडब्लूडी ने आकलन किया और ऑडिट के ऑर्डर दिए, इस ऑडिट रिपोर्ट में नया घर बनाने की सलाह दी गई | खर्च का एक बजट बना और उसे वित्त विभाग ने मंजूरी दी | अधिकारियों का कहना है कि सीएम के घर पर 30 करोड़ रुपये ख़र्च किया गया और बाकी के पैसे सीएम आवास के कम्पाउंड में स्थित उनके कैंप ऑफ़िस में लगाए गए|
असल में इस बंगले और खर्च पर विवाद इसलिए उठा क्योंकि अरविन्द केजरीवाल राजनीति में सादगी , ईमानदारी के लिए हुए अन्ना आंदोलन से दिल्ली के नेता बने | आम आदमी पार्टी बनाकर सत्ता में आने पर वर्ष 2013 में कहते थे- सरकारी घर, सुरक्षा और सरकारी गाड़ी नहीं लेंगे | जब उन्हें पांच कमरों वाला फ्लेट आवंटित हुआ तो उन्होंने उसे लेने से इंकार किया | छोटे बड़े मकान को लेकर एक महीने तक नाटकबाजी हुई | फिर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पास तिलक लेन में तीन बेडरूम वाला ग्राउंड फ्लोर का मकान स्वीकार किया , जिसमें लोगों से मिलने जुलने के लिए लॉन भी था | कुछ वर्षों में राजनीति में उनकी सफलता बढ़ने लगी , दुबारा दिल्ली का चुनाव जीता | तब पुराने दिल्ली सचिवालय के पास मुख्य सचिव या मुख्यमंत्री के लिए निर्धारित एक पुराना बड़ा बंगला उन्हें मिला | इसी बंगले की मरम्मत के लिए कोरोना संकट के दौरान सन 2020 – 21 में भारी खर्च से बंगले का पुनर्निर्माण हुआ |
दिल्ली और पंजाब की चुनावी सफलताओं और राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता मिलने के बाद केजरीवाल के समर्थक उन्हें भावी प्रधान मंत्री के दावेदार की तरह पेश करने लगे | भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध प्रतिपक्ष के गठबंधन के लिए वह सक्रिय हो गए हैं | यों आंदोलनों से निकले वह अकेले मुख्यमंत्री नहीं हैं | तेलंगाना आंदोलन से सत्ता में आए मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी प्रतिपक्ष के गठबंधन और प्रधान मंत्री का सपना संजोने के साथ अपने भव्य बंगले को लेकर विवादों में रहे हैं | के चंद्रशेखर राव ने तो करीब 9 एकड़ क्षेत्र में लगभग 50 करोड़ की लागत से भव्य सरकारी बंगला बनवाया | तेलंगाना राज्य का गठन होने से पहले आंध्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी दवरा करीब 10 करोड़ की लागत से बना बंगला चंद्रशेखर राव को पसंद नहीं आया | इसका एक और कारण ज्योतिष , वास्तु से बेहद प्रभावित राव को यह धारणा थी कि वह बंगला शुभ नहीं है | नए आलिशान बंगले का बाथ रुम भी बुलेट प्रूफ बनाया गया है | बहरहाल केजरीवाल के साथ वह भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं | उनकी बेटी पूर्व सांसद कविथा दिल्ली की शराब नीति से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोप के कारण सी बी आई जांच का सामना कर रही हैं |
मुख्यमंत्री के बंगले को लेकर केरल के मार्क्सवादी कम्युनिस्ट नेता मुख्यमंत्री पियरन विजयन को भी प्रतिपक्ष की कांग्रेस पार्टी ने विरोध में आवाज उठा दी | लेकिन यह अन्य मुख्यमंत्रियों से बिल्कुल विरोधाभासी है | विजयन के पुराने सरकारी बंगले पर मात्र एक करोड़ रुपये खर्च होने पर कांग्रेस आपत्ति कर रही है | जबकि केजरीवाल या राव के बंगलों के खर्च पर कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता अधिक नहीं बोल रहे हैं | कांग्रेस तो राहुल गाँधी के क़ानूनी कारणों से संसद की सदस्यता खोने पर सरकारी बंगला खाली किए जाने को बड़ा आदर्शवादी कदम बता रहे हैं | यह बात अलग है कि अब राहुल गाँधी सहित प्रतिपक्ष के प्रमुख नेता 2024 के चुनाव के बाद संसद भवन के पास बनने वाले नए सरकारी प्रधान मंत्री निवास में रहने के सपने देखने लगे हैं |
आलोक मेहता
आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।
7 सितम्बर 1952 को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।
भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।
प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान, राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।