प्रतिष्ठा पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति मंच द्वारा भीगे हुए मौसम में रिमझिम फुहारों पर आयोजित काव्य गोष्ठी में प्रस्तुत बारिश की कुछ भीगी भीगी कवितायें ,कवि को वर्षा प्रिय है क्योंकि वह उसे पुरानी स्मृतियों में ले जाती है । छत पर बारिश की आवाज सुनकर वह सोचता है कि यह आनंद है।आइये आनंद लेते है, कुछ कोमल मन भावन कविताओं का यह संग्रह “सावन की पाती” आपको भी पसंद आएगा
बरखा पूजन
*बरखा पूजन
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ब,….
बहुत,
रखा है,
बरखा में,
उत्सव लाती,
शीतल जल बूंदें।
जग को दे जाती ये,
सुकून , ठंडक,
आशा किरण,
खुशियां,
स्वप्न,
भी।
तू,
आई,
लेकर ,
जग निधि,
हरित क्रांति,
मुक्ता नीर बूंदें,
प्रकृति आह्लादित।
नाचे मयूरा मन,
चमक नैनन,
अवर्णनीय ,
माँ अवनि,
सेवक,
खुश,
हो।
हो ,
सब,
अधीर,
बोले दिल,
चल जुट जा,
अवनि सेवक ,
कृषक भूमि पुत्र।
हाथों में उठा हल,
नए स्वप्न लिए,
धरा पूजन ,
द्रव्य धर,
अर्पण,
जल,
ले।
प्रभा जैन इंदौर।
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लो,आ गयी बारिश
और
धरती की
गोद मे
गिरी
धप्प से
बादल से
जल बूंद
लो
बारिश
आ गयी
- वन्दिता श्रीवास्तव
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वर्षा चातक की आशा
वर्षा है तो जल है
जल है तो ही जीवन है
कृषक करता इंतज़ार
उगाता खाद्यान्न है ।
छोटी – छोटी बूँदें मिल
करती पानी की बरसात
बरसात की शुरुआत
करता आषाढ़ सच बात ।
सावन-भादौ बहुत बरसती
सदा बरसात दिन – रात
आध्यात्मिक हो जाता
भारतीय चातुर्मास संग जज़्बात ।
मात्र धरती पर है जल जीवन
धन तन मन अन्न तृण
क़ीमत करें हम इनकी
करें सदहित तेरा ताको अर्पण ।
आवश्यक जितना हो उतना
जल बादल बरस कर जाए
झूमें धरती वनस्पति औषध
झूमें फूल फल गाएँ हवाएँ ।।
संतुलित वर्षा हित करती प्रार्थनाएँ
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✍️मणिमाला
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“मन श्रावण ”
श्यामल सुकोमल घटाऐं श्रावण की ,
शीतल सरसराती बौछारें बरखा की।
नन्हीं ,मुक्त ,मोहक बरसती बूंदे पानी की,
कल कल नदी बहे , ईश्वर के उपहार की।
बयार महके सौंधी मिट्टी की सुगंध से,
फूल डोलते ,पत्ते बूटे चहकते मतवाले से ।
घूंघट ओढ़ के धरा, माथे पर हरियाली की,
सुमधुर घंटियां बजे पंछियों के कलरव की।
रश्मिरथी आए सात घोड़ों पर होके सवार ,
नूतन दिवस औ’ सृजन की डोली उठाते कहार।
हरित धरा पर नाच रहा मन का मयूर है,
आल्हादित सब ,छाया सावन का सुरूर है ।
नूतन ऊर्जा लेकर अमृत बरसाते ये बादल ,
मधुबन थिरके, तन मुग्ध मन हुआ पागल।
-सुनीता फड़नीस
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झींगुर भी गाने लगे
बारिश आई झम-झम-झम
मोर नाचता छम-छम-छम
धरती पर हरियाली छाई
फूलों ने वादी महकाई
आसमान में बादल गरजे
बिजली भी है रह-रह चमके
सूरज-चंदा छुपके बैठे
तारे सारे दुबके बैठे
मेंढक लो टर्राने लगे
झींगुर भी गाने लगे
चातक कर ले पूरी आस
बुझा बूँद से अपनी प्यास
मुनिया बोले है सबसे
भीगूँ बारिश में कब से
चुन्नु-मुन्नु आओ गीता
समां सुहाना जाए बीता
◆ रश्मि सक्सैना ◆
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अनमना दिनमान !
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सांध्य सौंदर्य देख
लजाकर हुआ निस्तेज
शिखर खो चूका
अनमना दिनमान !
मंथर मदीर समीर
मरुस्थल को बुहार
दिगंत नापता रहा
लहरों पर ठिठक !
सहमा सकुचा सूरज
महासागर में नहाकर
अनंत को अर्ध्य देकर
प्रयाण हेतु प्रस्तुत!
अनवरत चलता बटोही
शिखर से लुढ़क कर
चुपचाप सोने लगा
क्षितिज़ की गोद में !
पालथी मारे बैठा चांद
सहसा चैतन्य हो गया
चला तारक सेना सजा
अनंत का तमस मिटाने !
वसुंधरा के आंचल में
लीपा पोती करता तमस
चैन की नींद सोने लगा
शिखर पर चांद देखकर !
भयभीत व्याकुल धरा
रातभर अपलक जाग
हिम मस्तक देखती रही
सूर्योदय की प्रतीक्षा में !
शिखर से धरातल तक
असंख्य अश्वों पर सवार
निरंतर निर्बाध गतिमान
सहस्त्र नमन ज्योतिपुंज !
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* रमेश चंद्र शर्मा
इंदौर
कविताओं को यहाँ संस्था की सचिव डॉ .रूचि बागडदेव द्वारा प्रस्तुत किया गया है .
“समस्या बताने की स्वतंत्रता और हिम्मत दीजिये ,दीजिये एक भरोसा वे अपनी कठिनाई आप तक रख सकें”
Hydraulic Vehicle: पांच करोड़ का लाय बम्बा खिलौने जैसा निकला हो दीदी खड़ा रहा वहां हाथी सरीका /