मगरमच्छों के बीच चंबल सफारी में कोटा का परिवार डेढ़ घंटे तक नदी में फंसा रहा, रेस्क्यू बोट मौके पर नहीं पहुंची!

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मगरमच्छों के बीच चंबल सफारी में कोटा का परिवार डेढ़ घंटे तक नदी में फंसा रहा, रेस्क्यू बोट मौके पर नहीं पहुंची!

अक्सर पर्यटन पर जानेवाले परिवार अपने  परिवार की सुरक्षा को लेकर  अलर्ट होते है ,सफारी चंबल सफारी के दौरान एक बड़ा हादसा होते-होते टल गया, जब कोटा का एक परिवार मगरमच्छों से भरी चंबल नदी में डेढ़ घंटे तक फंसा रहा. अचानक आई तकनीकी खराबी या जलस्तर में बदलाव के कारण नाव नदी के बीच रुक गई. आस-पास मगरमच्छों की मौजूदगी से परिवार दहशत में आ गया. सूचना मिलते ही वन विभाग और रेस्क्यू टीम मौके पर पहुंची और काफी मशक्कत के बाद सभी को सुरक्षित बाहर निकाला गया. यह घटना चंबल सफारी की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है. मगरमच्छों के बीच मौत का सामना, चंबल सफारी में कोटा का परिवार डेढ़ घंटे तक नदी में फंसा रहा.

जवाहर सागर डैम क्षेत्र में संचालित चंबल सफारी एक बार फिर सुरक्षा व्यवस्था को लेकर विवादों में घिर गई है. शुक्रवार सुबह करीब 10 बजे चंबल सफारी पर निकला कोटा का एक परिवार उस समय मौत के बेहद करीब पहुंच गया, जब उनकी बोट नदी के बीच अचानक खराब हो गई. बोट में सवार 10 से 11 लोग, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, करीब डेढ़ घंटे तक मगरमच्छों से भरी चंबल नदी के बीच फंसे रहे.

रेस्क्यू बोट मौके पर नहीं पहुंची
जानकारी के अनुसार, कोटा के बजरंग नगर निवासी आशीष जैन अपने परिवार के साथ चंबल सफारी का आनंद लेने पहुंचे थे. सफारी के दौरान जैसे ही बोट नदी के बीच पहुंची, अचानक उसका इंजन बंद हो गया. बोट चालक ने तत्काल इसकी सूचना सफारी संचालक बनवारी यादव को दी, लेकिन इसके बावजूद काफी देर तक कोई वैकल्पिक या रेस्क्यू बोट मौके पर नहीं पहुंची.

इस दौरान नदी में 12 से 15 फीट लंबे विशाल मगरमच्छ बोट के आसपास तैरते हुए दिखाई दिए, जिनके वीडियो भी परिवार के सदस्यों ने अपने मोबाइल फोन में रिकॉर्ड किए. मगरमच्छों को इतनी नजदीक देखकर बच्चों में दहशत फैल गई और वे रोने-चिल्लाने लगे. महिलाओं और बुजुर्गों की हालत भी डर के मारे खराब हो गई. परिवार के सदस्यों का कहना है कि हर गुजरता मिनट उन्हें मौत के और करीब ले जा रहा था.
पीड़ित परिवार ने चंबल सफारी की सुरक्षा व्यवस्था, रेस्क्यू सिस्टम और वन विभाग की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि अगर इस दौरान कोई दुर्घटना हो जाती या बोट पलट जाती, तो डेढ़ घंटे बाद पहुंचने वाले रेस्क्यू की स्थिति में उनके परिवार के सदस्यों के अवशेष तक नहीं मिल पाते. इस घटना ने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी है.
2 हजार रुपये की भारी-भरकम राशि वसूली जा रही
परिवार का आरोप है कि चंबल सफारी के नाम पर प्रति व्यक्ति लगभग 2 हजार रुपये की भारी-भरकम राशि वसूली जा रही है, लेकिन इसके बदले यात्रियों को बुनियादी सुरक्षा तक मुहैया नहीं कराई जा रही. बोट में न तो आपातकालीन उपकरण मौजूद थे और न ही तुरंत सहायता के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था. मजबूरी में बोट चालक और परिवार के सदस्यों ने चप्पुओं की मदद से बोट को किनारे लगाने का प्रयास किया.
परिजनों ने यह भी बताया कि जवाहर सागर डैम क्षेत्र में टाइगर, पैंथर और भालू जैसे खतरनाक वन्यजीवों की साइटिंग होती रहती है. ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में पर्यटकों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं होना बेहद चिंताजनक है. सवाल यह भी उठ रहा है कि यदि किसी वन्यजीव ने हमला कर दिया होता, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेता.