एक मस्तमौला और मलंग कलाकार! 

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एक मस्तमौला और मलंग कलाकार! 

किशोर कुमार एक विलक्षण कलाकार थे। सत्तर का दशक उनका था। राजेश खन्ना तथा उनके बाद अमिताभ बच्चन की आवाज बने। प्रारंभ के दिनों में उन्होंने अपने अलावा केवल देवानंद के लिए गाया। वे देवानंद के लिए प्रारंभ से ही गाते रहे। यह साथ सन् 1951 से हुआ जो अंत तक बना रहा। किशोर दा ने लगभग सभी संगीत के पार्श्वगायन की यात्रा में संगीतकार खेमचंद प्रकाश एवं एसडी बर्मन का महान योगदान रहा। किशोर भी उन्हें पिता तुल्य मानते थे। उनकी संगीत यात्रा में उनके बेटे राहुल देव बर्मन का भी गहरा साथ और मित्रता रही।

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किशोर कुमार एक जीनियस गायक और कलाकार तो थे ही, बेहद भावुक इंसान भी थे। कई लोग उन्हें सनकी और पागल भी मानते थे। लेकिन, इतना महान कलाकार, गायक और फिल्म क्षेत्र की हर विधा में माहिर व्यक्ति को भला कौन पागल मानेगा! उन्होंने शास्त्रीय संगीत पर आधारित कई गीत बखूबी गाए। खुद रविन्द्र संगीत के अच्छे जानकार थे। अपनी फिल्मों में वे खुद निर्माता होने के साथ ही निर्देशक, संगीतकार, गायक, लेखक, गीतकार भी होते थे। उनकी फिल्में दूर का राही, दूर गगन की छांव में, चलती नाम का गाड़ी तथा बढ़ती का नाम दाढ़ी इसका बेहतरीन उदाहरण है। दूर का राही तथा दूर गगन की छांव में बेहद भावुक फिल्में थी, तो बढ़ती का नाम दाढ़ी हास्य फिल्म। इस फिल्म की चर्चा कम हुई, लेकिन इस फिल्म में कई विलेन हास्य भूमिकाओं में थे। इस फिल्म को देख सत्यजित रे जैसे गंभीर रहने वाले सुप्रसिद्ध निर्देशक पूरी फिल्म के दौरान लगातार हंसते ही रहे। ‘चलती का नाम गाड़ी’ तो भारतीय फिल्म इतिहास की ऐसी हास्य फिल्म है, जिसे हमेशा याद रखा जाएगा। सुप्रसिद्ध निर्माता, निर्देशक सत्यजित रे की कई फिल्मों के वे स्थाई गायक रहे तथा उनके संगीत निर्देशन में कई बंगाली गीत गाए।

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लोग किशोर कुमार को महाकंजूस कहते थे, लेकिन उनकी उदारता के भी कई किस्से भी है। अपने एक साथी मित्र और संगीतकार अरुण कुमार मुखर्जी की पत्नी ने किशोर कुमार की मृत्यु के बाद बताया कि किशोर उनके पति की मृत्यु के बाद हर माह एक निश्चित राशि उन्हें भेजते थे। यह बात बताने के लिए उन्होंने अपने मित्र की पत्नी को मना भी किया था। आश्चर्य की बात थी, कि उनके बड़े भाई अशोक कुमार अपने इस भाई किशोर कुमार की आवाज में माडयुलेशन नहीं मानते थे। वे एक्टिंग में ही किशोर कुमार को आगे बढ़ाना चाहते थे, इसीलिए किशोर एक्टिंग के क्षेत्र में आए। एक मजेदार किस्सा सुप्रसिद्ध गायिका आशा भौंसले अकसर सुनाती हैं। उनका और किशोर का बरसों का साथ रहा। दोनों ने अनेकों, युगल गीत साथ गाए। उन्होंने बताया कि कुछ समय तक रिकॉर्डिंग के समय कुछ समय तक किशोर दा अपने साथ एक काल्पनिक मानस पुत्र को साथ लेकर स्टूडियो आते थे। वे इस बेटे की अंगुली पकड़कर साथ लाते थे। आते ही कहते बेटा आंटी को नमस्कार करो। गाना पसंद न आने पर इस काल्पनिक बेटे से पूछते थे, बेटा गाना कैसा है। जवाब में बच्चों की आवाज में कहते थे बाबा बहुत बुरा। उससे स्वयं ही प्रश्न करते और उसका उत्तर बेटे से दिलवाते। कई बार बेटा प्रष्न करता और उसकी जिज्ञासा का समाधान भी खुद ही करते! यह सब लगातार इतनी जीवंतता के साथ चलता रहा कि जब किशोर दा ने इस मानस पुत्र को लाना बंद कर दिया तो काफी समय तक इसकी कमी संगीतकारों और सह गायकों को खलने लगी। उन्हें भी इसकी आदत हो गई थी। बाद में उनके पुत्र अमित आए तथा उन्होंने भी फिल्म संगीत में अपनी अलग छाप छोड़ी।

किशोर कुमार अभिनय को नकली और संगीत और गायकी को असली मानते थे। उनका मानना था कि संगीत दिल से निकलता है और अभिनय बनावटी होता है। इसीलिए उनके लिए गायकी पहले थी, अभिनय बाद में। लेकिन, इस गायकी को प्राथमिकता देने वाले कलाकार ने ‘चलती का नाम गाड़ी’ फिल्म बनाई और इसमें तथा ‘पड़ोसन’ जैसी कई फिल्मों में काम किया, जो फिल्म इतिहास में ये फिल्में मील का पत्थर मानी जाती है। एक और तथ्य यह भी था कि जब भी किशोर ने एक ही फिल्म में दो गायकों द्वारा एक ही गानों को अलग-अलग वर्जन में गाया, किशोर दा छा गए। भले ही एक वर्जन किशोर कुमार ने गाया हो और दूसरा वर्जन किसी अन्य गायक अथवा गायिका ने। आपका ध्यान हमेशा किशोर की तरफ जाता है। आज जब भी हम इन गानों के अलग-अलग वर्जन को सुनते हैं, तो अहसास हमें काफी गहराई तक होता है।

इस महान कलाकार ने हिन्दी में 2678 तथा बंगाली, मराठी, पंजाबी, ओरिया, मलयालम, कन्नड़ तथा तेलगू में 327 गाने गाए। किशोर ने नौशाद जैसे संगीतकार को छोड़कर लगभग सभी संगीतकारों के साथ गाने गाए। किशोर कुमार ने नौशाद के साथ सुनहरा संसार फिल्म में आशा भौंसले के साथ पहला और आखिरी गाना गाया था जो फिल्म में नहीं रखा गया था। किशोर दा अपनी माटी और जन्म स्थान खंडवा से हमेशा जुड़े रहे। खंडवा हमेशा उनके मन में बसता था। वे किसी भी स्टेज शो में भले ही वह देश में हो अथवा विदेश में अपने कार्यक्रम की संगीतमय शुरुआत कुछ इस अंदाज में ही करते थे।

प्यारे बंधुओं, संगीत प्रेमियों,

मेरे नाना-नानियों, मेरे दादा-दादियों,

मेरे काका-काकियों, मेरे मामा-मामियों,

आप सबको किशोर कुमार खंडवा वाले का नमस्कार।

ऐसा मिट्टी और अपने जन्म स्थान से जुड़े इस ग्लेमर की दुनिया में ऐसे भावुक व्यक्ति किशोर ही थे। उनके बड़े भाई अभिनेता अशोक कुमार को अपने जन्म स्थान से इस प्रकार का लगाव नहीं रहा। स्टेज पर कार्यक्रम देने में किशोर कुमार का अपना कोई सानी नहीं था। उनको एक बड़े और मजबूत स्टेज की आवश्यकता होती थी। पूरे स्टेज पर नाचते-गाते धमाका करते किशोर दा को जिन्होंने स्टेज कार्यक्रमों में देखा है उनके मन-मस्तिष्क पर वह कार्यक्रम बरसों तक छाया रहता है। लेखक ने भी उनके दो स्टेज शो इन्दौर में देखे। लता अलंकरण समारोह में तो वे बैलगाड़ी पर सवार होकर पहुंचे थे। इन कार्यक्रमों में उन्होंने अपने अनेक दोस्तों को स्टेज पर बुलाकर अपने साथ डांस करवाया था। यह जानकारी बहुत कम लोगों को है कि किशोर कुमार ने ही बाॅलीवुड का पहला लेकिन सबसे कठिन रैंप गाया था। किशोर स्टेज के अप्रतिम कलाकार बन गए और स्टेज शो में उनका कोई मुकाबला नहीं था। वे एक रियल परफार्मर थे।

आराधना में गाने के पहले किशोर कुमार ने फिल्म के नायक राजेश खन्ना को घर बुलाया। राजेश खन्ना तब नए-नए आए थे। उनसे लगभग आधा घंटा बातचीत के बाद उन्हें समझा, उनकी अदाएं देखी व उन्हें समझने के बाद उनके लिए गाया। गाया तो ऐसा गाया कि कलाकार और गायक एकाकार हो गए। महान गायिकाऐं लता जी व आशा जी दोनों ही कहती थी कि जब किशोर के साथ गाते थे, तो उन्हें सतर्क रहना होता था। गाने के दौरान भी कुछ ऐसा चमत्कार करते थे जो उन्हें चमकृत कर देता था। गायकी में अभिनय उनकी विशेषता थी। कौनसा गाना किस अंदाज में गाना है इसकी समझ उन्हें खू ब थी। मन्नाडे किशोर को महान गायक मानते थे। ‘पड़ोसन’ का एक गाना ‘एक चतुर नार’ लगभग बारह घंटे में रिकार्ड हुआ था। आरडी बर्मन के साथ इस फिल्म के संगीत में भी उनका बड़ा योगदान था। मन्नाडे ने कहा था किशोर ने जिस तरह गाने की आत्मा को पकड़ा उससे मैं अभिभूत था। लता मंगेशकर भी कहती है गाना चाहे सीरियस हो अथवा कामेडी किशोर कुमार का हंसी-मजाक चलता रहता था।

किशोर कुमार को संगीत का जुनून था। उन्होंने सन् 1951 में देवानंद के लिए ‘जिद्दी’ फिल्म में गाया था। गजलों को छोड़ कर अन्य हर प्रकार के गानों के लिए देवानंद की आवाज किषोर कुमार ही थे। किशोर मूल रूप में एक मनमोजी कलाकार थे जो दिल से गाते थे और अपने फन में बेहद माहिर थे। मूल रूप से किशोर बेहद गंभीर कलाकार थे। 13 अक्टूबर 1987 को लगभग 58 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। इसी दिन उनके बड़े भाई सुप्रसिद्ध अदाकार अशोक कुमार का जन्मदिन था। आठ फिल्म फेयर एवं लता अलंकरण अवार्ड उनके खाते में जमा है। लेकिन, भारत सरकार ने इस जीनियस कलाकार का कोई सम्मान नहीं किया। इसके विपरीत आपातकाल में आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनके गीतों के प्रसारण पर प्रतिबंध लगाया गया था। आज किशोर इस दुनिया में नहीं है। लेकिन किसी ने सही कहा है किशोर थे नहीं, आज भी यादों में है और हमेशा यादों में रहेंगे। ऐसा बिरला कलाकार बार-बार जन्म नहीं लेता है। वह एक बार ही दुनिया में आता है और अपने लाखों चाहने वालों के दिल में हमेशा के लिए बस जाता है।