विश्व कविता दिवस 21 मार्च 2023 पर कविता को परिभाषित करने का एक विनम्र प्रयास
कविता सिर्फ कविता नहीं होती
सिर्फ लिखने से ही वह कविता नहीं हो जाती। लिखने से पहले कविता को जीना होता है, जिस तरह माँ अपनी कोख में
रखकर विकसित करती है गर्भ को, कवि के दिलो-दिमाग में, चिन्तन के आयामों में,
किसी कविता का गर्भ कब, कितने समय तक, कैसे होता है विकसित, और फिर कब लेता है जन्म, स्वयं कवि भी नहीं जान पाता
मात्र एक अहसास होता है उसे अपनी कविता के जन्म पर
कभी प्रसव पीड़ा सा
तो कभी एक दर्द से मुक्त हो जाने की एक अनजानी खुशी का।
सिर्फ शब्दों का मायाजाल नहीं होती कविता। छन्दों, अलंकारों, उपमाओं के वस्त्राभूषण पहने,
कविता की आत्मा को महसूस कर पाना, नहीं होता कभी भी सुनने पढ़ने वालों के लिए आसान।
कविता में ऐसा बहुत कुछ होता है अर्न्तनिहित, जो कई बार सामने होने पर भी नहीं हो पाता अभिव्यक्त। प्रकृति की सत्ता, और उसके सत्य को, कब, कौन, कितना समझ पाया ? कविता भी प्रकृति के शाश्वत स्वरूप का एक अंश मात्र ही होती है।
कभी नदियों की निर्मलता का गीत होती है,
तो कभी पेड़ों की आत्मशक्ति का संगीत। कभी पर्वतों की अविचलता की रीत होती है, तो करती मानवीय सम्बंधों की प्रीत।
कभी बच्चों की निश्छल मुस्कान होती, तो कभी समाहित कर लेती है स्वयं में अग्नि का प्रचंड ताप।
कविता को परिभाषित कर पाना,
मेरे लिए सदा उतना ही जटिल रहा
जितना कि अपनी आत्मा को अभिव्यक्त कर पाना।
चंद्रकांत अग्रवाल, संप्रति, नवमी लाइन, इटारसी, मध्यप्रदेश। मो. न. 9425668826