शब्दों में सिमट गई शब्दों को समर्पित शख्सियत…

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शब्दों में सिमट गई शब्दों को समर्पित शख्सियत…

एक वाक्य कई शब्दों से बनता है। कई वाक्य मिलकर एक पैराग्राफ और कई पैराग्राफ मिलकर एक आलेख, एक कहानी या एक किताब की रचना करते हैं। इन्हीं शब्दों की दुनिया में बहुत से लोग जिंदगी भर खोए रहते हैं। भोपाल की एक बड़ी शख्सियत जिन्हें पूरा देश उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मिजोरम के पूर्व राज्यपाल के बतौर जानता है, इन्हीं शब्दों के प्रति समर्पित थी। उनका नाम अजीज कुरैशी था। कहा जाता है कि अजीज कुरैशी उन नेताओं में शुमार थे जिन्हे पढ़ने का इतना जूनून था कि, उन्होंने अपना बेड ही लाइब्रेरी में लगवा लिया था। पिछले कई वर्षों से वह भोपाल स्थित अपने निवास में लाइब्रेरी कक्ष में ही सोते रहे। इस दौरान वह कई किताबों को पढ़ते और उनसे मिलने वाले लोगों से चर्चा भी करते। अपने इसी शौक से अजीज कुरैशी कई विषयों के जानकार थे। लेखक और समाजसेवी राधिका नागरथ की मानें तो अजीज कुरैशी भले ही पैदा मुस्लिम समाज में हुए हों, लेकिन उनकी पकड़ हिंदू धर्म ग्रंथों, देवी-देवताओं और सनातन धर्म को लेकर भी बहुत ज्यादा थी।उत्तराखंड में पहली बार अंतरराष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन करवाने की पहल भी अजीज कुरैशी की ही थी। यानि कि पढ़ने की आदत ने ही अजीज कुरैशी के भीतर ज्ञान का भंडार भर दिया था। शब्दों को समर्पित भोपाल, मध्यप्रदेश और देश की यह बड़ी शख्सियत 1 मार्च 2024 को खुद भी शब्दों में सिमट गई है।

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह के शब्दों में अजीज कुरैशी को जानने की कोशिश करें तो “अज़ीज़ भाई युवक कांग्रेस, प्रदेश कांग्रेस में महामंत्री, प्रकाश चंद्र सेठी जी की सरकार में मंत्री, सतना से संसद सदस्य और राज्यपाल पद पर रहते हुए उन्होंने पद की प्रतिष्ठा बढ़ाई। वे इंदिरा जी के अति विश्वास पात्र थे। वे निडर निर्भीक स्पष्ट वक्ता थे और कट्टर पंथी शक्तियों के घोर विरोधी थे। जब 1993 की विधान सभा में एक भी अल्पसंख्यक विधायक चुन कर नहीं आया तब मैंने उन्हें अपनी मंत्री परिषद में लेने के लिए उनसे अनुरोध किया था पर उन्होंने अस्वीकार कर मेरा बाहर रहते हुए पूरा समर्थन किया।”

वह हमेशा चर्चाओं में रहते थे। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के हालातों पर डेढ़ साल पहले उन्होंने सीधा कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को ही पत्र लिख दिया था। इस पत्र में कुरैशी ने सोनिया गांधी से कांग्रेस में दरबारियों, चाटुकारों को पद न देने की अपील की थी। साथ ही कहा था कि इन्हें कांग्रेस से बाहर करें नहीं तो मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के बाहर धरना दूंगा। कुरैशी ने आमरण अनशन की भी चेतावनी दी थी।दो पेज के पत्र में कुरैशी ने यह भी लिखा था कि सिर्फ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ही प्रदेश में कांग्रेस की तस्वीर बदल सकते हैं, लेकिन इनके आसपास चाटुकारों और दो नंबर के कांग्रेसियों की फौज इकट्ठा हो गई है।

उत्तराखंड के पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजीज कुरैशी करीब ढाई साल तक उत्तराखंड के राज्यपाल रहे। 83 साल के कुरैशी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनका स्वास्थ्य ज्यादा खराब होने पर एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। अजीज कुरैशी अपने विवादित बयानों से ज्यादा चर्चा में रहे। डॉ. कुरैशी 15 मई 2012 को उत्तराखंड के राज्यपाल बने और सात जनवरी 2015 तक इस पद पर बने रहे। अजीज कुरैशी ने उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मिजोरम के राज्यपाल के रूप में कार्य किया था। कुरैशी का जन्म 24 अप्रैल, 1941 को भोपाल में हुआ था। अजीज कुरैशी को 24 जनवरी, 2020 को मध्य प्रदेश की तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने एमपी उर्दू अकादमी का अध्यक्ष नियुक्त किया था। 1973 में वह एमपी के कैबिनेट मंत्री भी रहे और 1984 में मध्य प्रदेश के सतना निर्वाचन क्षेत्र से वह लोकसभा चुनाव जीते थे। पहली बार 1972 में मध्य प्रदेश की सीहोर सीट से विधायक चुने गए और 1984 में लोकसभा सदस्य बने।

अजीज कुरैशी अक्सर सियासी मुद्दों पर बेथड़क बयानबाजी के लिए चर्चा में रहते थे। कुरैशी का 2023 में एक बयान सोशल मीडिया में काफी वायरल हुआ। जब उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा कि कांग्रेस नेता आजकल जय गंगा मैया जय नर्मदा मैया कहते हैं। यह डूब मरने की बात है। इस बयान के बाद काफी सियासी बवाल हुआ था। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले अजीज कुरैशी ने पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्नाह को सबसे बड़ा देशभक्त बताया था। जिसको लेकर भी काफी विवाद हुआ था। ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म रिलीज होने के बाद भी उन्होंने विवादित बयान दिया था। कुरैशी ने कहा था कि यह फिल्म मुसलमानों का कत्लेआम कराने की साजिश है, क्योंकि वहां पर 50 हजार मुसलमान मारे गए, दहशतगर्दों ने उन्हें मारा, लेकिन उन्हें फिल्म में नहीं दिखाया गया।

उत्तराखंड में राज्यपाल रहते हुए कुरैशी कई बार चर्चाओं में आए। साल 2013 की आपदा के दौरान केदारनाथ पुनर्निर्माण का काम के दौरान उन्होंने सरकार को कई अहम निर्देश दिए थे। वे अपनी संसदीय प्रणाली और संविधान को लेकर बेहद कड़े थे। यही वजह थी कि उनके राज्यपाल रहते हुए शायद ही कभी विपक्ष या किसी अन्य ने उनके किसी फैसले पर सवाल उठाए हों।‌ पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर साझा किया है, ‘मेरा सौभाग्य था कि मैं भी उनके साथ भारत की लोकसभा का सदस्य रहा। कालांतर में जब वो उत्तराखंड के राज्यपाल बने तो उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्रियों को बराबर मार्गदर्शन देकर राज्य के सर्वांगीण विकास में अपने अनुभव का फायदा पहुंचाया।’ हरीश रावत आगे लिखते हैं कि, ‘मुझे भी उनके साथ मुख्यमंत्री के रूप में काम करने का सौभाग्य मिला। वो एक अभिभावक के रूप में थे। यह उन लोगों के बड़ी क्षति है, जो कौमी भाई-चारे में विश्वास रखते हैं। गरीब और सामान्य लोगों के लिए समर्पण की राजनीति करते हैं।’ मोहम्मद अजीज कुरैशी जब उत्तर प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त किए गए थे तो उन्होंने फिलहाल जेल में बंद चल रहे मोहम्मद आजम खान की यूनिवर्सिटी को अपनी मंजूरी प्रदान की थी।

फिलहाल हर शख्सियत का आकलन शब्दों के जरिए होता है। और यह शब्द उस समय बड़े निर्मम हो जाते हैं, जब इंतकाल का समाचार सुनाते हैं या बताते हैं। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि शब्दों को समर्पित यह शख्सियत अब खुद शब्दों में सिमट गई

है…।