A Strange Village in Itself : 75 घरों के गांव से 51 IAS और IPS अधिकारी निकले, अभी भी कई कोशिश में!

महिलाएं भी बनी अफसर, इसरो और भाभा रिसर्च सेंटर में भी इसी गांव के कई वैज्ञानिक!

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A Strange Village in Itself : 75 घरों के गांव से 51 IAS और IPS अधिकारी निकले, अभी भी कई कोशिश में!

Jaunpur (UP) जौनपुर जिले का माधोपट्टी गांव में वैसे तो कुछ खास नहीं है कि इस गांव को याद किया जाए। लेकिन, इस गांव की जो खासियत है उसे जानकर आश्चर्य होना स्वाभाविक है। इस गांव को देखने दूर-दूर से आते हैं। क्योंकि, इसे अफसर बनाने वाली फैक्ट्री भी कहा जाता है। यहां की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां के लोग देशभर में बड़े-बड़े पदों पर तैनात रहे हैं। मात्र 75 घरों वाले इस गांव में 40 से ज्यादा आईएएस और आईआईएस हैं। सिर्फ युवक ही नहीं, यहां की लड़कियां भी प्रशासनिक सेवा में अपना दमखम दिखा रही हैं। पहले ये ग्राम पंचायत हुआ करता था, अब ये नगर पंचायत बन गया। यह गांव लखनऊ से करीब 300 किलोमीटर है।

गांव के एक निवासी के मुताबिक, इस गांव में करीब 75 घर हैं। जबकि, गांव से 51 लोग देशभर में बड़े पदों पर तैनात हैं। गांव से 40 लोग आईएएस, पीसीएस और पीबीएस अधिकारी हैं। गांव के कुछ लोग इसरो, भाभा और विश्व बैंक में भी काम कर रहे हैं।

यह लगन आखिर कैसे शुरू हुई
माधोपट्टी गांव से पहली बार साल 1952 में डॉ इंदुप्रकाश आईएएस बने। उन्होंने यूपीएससी में दूसरी रैंक हासिल की। डॉ इंदुप्रकाश फ्रांस समेत कई देशों के राजदूत रह चुके हैं। उनके बाद उनके चार भाई आईएएस अधिकारी बने।1955 में विनय कुमार सिंह ने आईएएस परीक्षा में 13वीं रैंक हासिल की। वो बिहार के मुख्य सचिव रह चुके।
इसके बाद 1964 में छत्रसाल सिंह ने आईएएस परीक्षा पास की। वो तमिलनाडु के मुख्य सचिव रहे। 1964 में ही अजय सिंह भी आईएएस बने। 1968 में शशिकांत सिंह आईएएस अधिकारी बने। ये चारों लोग गांव के पहले आईएएस अधिकारी डॉ इंदुप्रकाश के भाई हैं।

कई पीढियां बनी अधिकारी
इस गांव को आईएएस की फैक्ट्री भी कहा जाता है। आज भी इस गांव के ज्यादतर लोग अधिकारी ही बनते हैं। डॉ इंदुप्रकाश के चार भाईयों के बाद उनकी दूसरी पीढ़ी भी यूपीएससी परीक्षा पास करने लगी। 2002 में डॉ इंदुप्रकाश के बेटे यशस्वी आईएएस बने। उन्हें इस परीक्षा में 31वीं रैंक मिली। 1994 में इसी परिवार के अमिताभ सिंह भी आईएएस बने। वो नेपाल के राजदूत रह चुके हैं।

महिलाएं भी बन रहीं अधिकारी
इस गांव में सिर्फ पुरुष ही नहीं, बल्कि यहां की बेटियों और बहुओं ने भी नाम बनाया है। गांव से 1980 में आशा सिंह, 1982 में ऊषा सिंह और 1983 में इंदु सिंह अधिकारी बनी। गांव के अमिताभ सिंह की पत्नी सरिता सिंह भी आईपीएस अधिकारी बनी।

कई लोग बने PCS अधिकारी
आईएएस अधिकारियों के अलावा कई पीसीएस अधिकारी भी बने हैं। यहां के राजमूर्ति सिंह, विद्या प्रकाश सिंह, प्रेमचंद्र सिंह, महेंद्र प्रताप सिंह, जय सिंह, प्रवीण सिंह, विशाल विक्रम सिंह, विकास विक्रम सिंह, एसपी सिंह, वेद प्रकाश सिंह, नीरज सिंह और रितेश सिंह पीसीएस अधिकारी बने। इसके साथ ही गांव की महिलाएं भी पीसीएस अधिकारी बनी। इसमें पारूल सिंह, रितू सिंह, रोली सिंह और शिवानी सिंह शामिल हैं।

इसरो, भाभा रिसर्च सेंटर में भी
गांव में जन्मे जयसिंह विश्व बैंक में काम करते हैं। इसके साथ ही इसी गांव के कई लोग वैज्ञानिक भी बने। माधोपट्टी की डॉ नीरू सिंह और लालेंद्र प्रताप सिंह भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में वैज्ञानिक हैं। वहीं, डॉ ज्ञानू मिश्रा इसरो में वैज्ञानिक हैं। इसके अलावा गांव के निवासी देवेंद्र नाथ सिंह गुजरात के सूचना निदेशक रहे हैं।

गांव के बारे में कहावत है ‘अदब से यहां सचमुच विराजती हैं वीणा वादिनी।’ इसका अर्थ है कि विद्या की देवी मां सरस्वती इस गांव में बसती हैं। अगर गांव के किसी बच्चे से उनके भविष्य के बारे में सवाल किया जाए तो उनके मुंह से आपको आईएएस, आईपीएस बनने की बात सुनने को मिलेगी। हालांकि अब गांव के कई लोग शिक्षक भी बन रहे हैं। माधोपट्टी में खेत कम है। लोगों का पढ़ाई लिखाई में खास ध्यान रहता है।