अडानी का ढहता साम्राज्य
– हिंडनबर्ग रिसर्च और विपक्षी वार
कन्याकुमारी से श्रीनगर तक की यात्रा समाप्त कर आत्मविश्वास से भरे राहुल गांधी को हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट का ईश्वर प्रदत तोहफ़ा मिल गया है। संसद के बजट से पूर्व उन्हें यह तोहफ़ा उसी प्रकार मिला है जैसे पूर्व में फ्रांसीसी मैगज़ीन मीडियापार्ट द्वारा राफेल जेट फाइटर डील में हुए तथाकथित घोटाले का रहस्योद्घाटन किया गया था। संसद में राहुल ने हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के आधार पर बहुत आक्रामक भाषण दिया। 2019 के आम चुनावों में पूरे भारत में राहुल को राफ़ेल पर मोदी को लगातार चोर कहने का अवसर प्राप्त हुआ था। लेकिन इससे कांग्रेस को चुनाव में कोई लाभ नहीं हुआ। अब पुनः अवसर मिला है।
हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में भारत के तेज़ी से उठते हुए उद्योगपति अडानी के ऊपर गंभीर आरोप लगाए गए हैं जिससे स्टॉक एक्सचेंज में उनके शेयर आज तक 56% तक गिर चुके हैं। अम्बानी और अडानी के विरुद्ध राहुल गांधी पूर्व से ही तीखे आक्रमण करते रहे हैं। इन उद्योगपतियों की सफलता का एकमात्र कारण विपक्ष मोदी से उनकी निकटता बताता रहा है। भारत के पहले चार दशक के समाजवाद की रोमांटिक छाप लेकर राहुल गांधी ने इस उदारीकरण के युग में मोदी की सरकार को सूट बूट की सरकार कह कर निरंतर मोदी पर हमले किये हैं।
स्टॉक एक्सचेंज की गहरी बारीकियां सामान्य व्यक्ति के लिए कुछ जटिल है। यह जानना आवश्यक है कि हिंडनबर्ग रिसर्च कौन है और उनके द्वारा आडानी पर लगाए गए आरोप क्या है? हिंडन बर्गर रिसर्च अमेरिका स्थित एक इनवेस्टमेंट फ़र्म है। इस फ़र्म की गतिविधियों के कारण इसे ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर कहा जाता है। हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा संसद के बजट सत्र के पूर्व जारी रिपोर्ट में आरोपित है कि अडानी ने स्टॉक शेयर की मूल्य वृद्धि में हेरा-फेरी की है तथा अपने एकाउंट्स में जालसाजी की है। उनके अनुसार अडानी ने अपनी शैल कम्पनियों के द्वारा अपने स्वयं के स्टॉक ख़रीद कर अपने शेयर की क़ीमत नक़ली तौर से बढ़ायी है। उल्लेखनीय है कि जब स्टाक ख़रीदे जाते हैं तो उसके मूल्य बढ़ जाते हैं और जब स्टाक बिकने लगते हैं तो उसका मूल्य कम हो जाता है।
आरोपित है कि इस नक़ली ख़रीदी से अडानी के शेयर का मूल्य 13.3 से 286 के अनुपात में बढ़ गया। यह एक आश्चर्यजनक बढ़त थी। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से ही अडानी के शेयर तेज़ी से गिरने लगे है और इसके मूल्य गिराने के लिए हिंडनबर्ग रिसर्च ने और भी सभी प्रयास किये हैं क्योंकि अड़ानी के शेयर के भाव गिरने से हिंडनबर्ग रिसर्च को अभूतपूर्व लाभ होना था। हिंडनबर्ग रिसर्च फ़र्म पूर्व में कई बार बढ़ते शेयरों वाली अन्य फ़र्मों को निशाना बनाकर लाभ अर्जित कर चुकी है।
अड़ानी की भूमिका से पहले हिंडनबर्ग रिसर्च की कार्यप्रणाली को भी समझ लेना चाहिए। यह फ़र्म सबसे पहले ऐसे स्टॉक का चयन करती है जो असामान्य रूप से अधिक मूल्य का हो गया हो। उसके बाद यह फ़र्म उस बढ़े हुए स्टॉक की बड़ी मात्रा को एजेंटों से उधार ले लेती हैं। इन उधार में लिए गए शेयर को वे ऊँचे भाव पर बाज़ार में बेच देते हैं। उनकी रिपोर्ट और उनकी गतिविधियों के प्रभाव से जब शेयरों का मूल्य बहुत कम हो जाता है तब वे अपने उधार लिए हुए शेयर को जिनसे उधार लिया है उन्हें वापस कर देते हैं। इस प्रक्रिया में उन्हें बहुत भारी लाभ होता है। इस प्रकार की शॉर्ट सेलिंग की गतिविधियों की व्यापक जाँच अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट द्वारा अनेक फर्मों की की जा रही है जिसमें हिंडनबर्ग रिसर्च भी सम्मिलित है।
अडानी पर लगाए गए हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों की निष्ठा से जाँच होना आवश्यक है। ऐसी जाँच करने की क्षमता केवल सेबी के पास है और यह उसका दायित्व भी है। सेबी को यह देखना होगा कि अडानी के स्टाक के मूल्य ै
इतनी तेज़ी से वृद्धि कैसे हुई। हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोपों की बारीकी से जाँच होनी चाहिए। सेबी को तेज़ी से बढ़ते हुए स्टॉक पर वैसे भी विशेष निगाह रखनी चाहिए थी और शेयरधारकों के हितों का संरक्षण करना चाहिए था। सेबी को यह भी देखना चाहिए कि क्या हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा किसी भारतीय क़ानून का उल्लंघन किया गया है। स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड कंपनी के गवर्निंग बोर्ड में इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स को भी फ़र्म की गतिविधियों पर निगाह रखना आवश्यक है।
विपक्ष द्वारा संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के द्वारा जाँच की माँग की जाना एक राजनैतिक विषय है। JPC के पास स्टॉक के मुद्दों में गहराई से जाने की क्षमता नहीं है तथा यदि उसकी जाँच होती है तो रिपोर्ट राजनैतिक भाषा में अधिक होगी। 2G के मुद्दे पर इसी प्रकार की JPC की माँग को तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा निरस्त कर दिया गया था और इस कारण संसद के अनेक सत्रों को बीजेपी ने नष्ट कर दिया था। विपक्षी दल, विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी मोदी पर अडानी की सहायता करने के आरोपों को ज्वलंत रखते हुए इसे 2024 के आम चुनाव का एक प्रमुख मुद्दा बनाना चाहती है। अब देखना होगा कि यह मुद्दा चुनाव में कितना कारगर होगा या फिर राफ़ेल की तरह इसका भी हश्र होगा।