आखिर कांग्रेस का वैभव क्यों खो गया…!
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने उम्मीद जताई है कि ‘कांग्रेस का वैभव फिर लौटेगा’। फिर उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं को चुनौती दी है कि ‘जिसमें कलेजा हो संघर्ष का वह कांग्रेस के साथ रहे, जिसको अपने धंधे के भविष्य की चिंता हो वह भाजपा में जाए।’ पटवारी ने कांग्रेस की हकीकत बयां की है कि यह संघर्ष का समय है। नई पार्टी का निर्माण, नई सोच और नए विचारों के साथ करना है। मैं आप सब से वादा करता हूं कि कांग्रेस का वैभव फिर लौटेगा।
जीतू पटवारी की यह पीड़ा है या पार्टी छोड़ने वालों के प्रति आक्रोश। खास तौर से उन करीबियों पर जो पार्टी की पीठ में खंजर भोंक रहे हैं। जिन्हें पूरा भरोसा कर चुनाव मैदान में उतारा था, वह पार्टी और मैदान दोनों को छोड़कर कांग्रेस को मुसीबत में डाल रहे हैं। और यह आक्रोशित होना स्वाभाविक भी है, जब इंदौर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के करीबी ही पार्टी को क्षय कर पाला बदल लें। इसीलिए जीतू पटवारी ने कहा है कि संघर्ष के इस समय में जो पार्टी के कंधे से कंधा मिलाकर चलने का साहस रखते हों, वह रहें बाकी दफा हो जाएं।
उम्मीद की जा सकती है कि जीतू पटवारी को जब यह पीड़ा सता रही है तो यह भी खोज रहे होंगे कि वैभव कहां खो गया और इसकी वजह क्या हैं? नेहरू-गांधी परिवार की पारंपरिक सीटों अमेठी और रायबरेली से राहुल गांधी और प्रियंका चुनाव लड़ने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पा रहे हैं? कांग्रेस के वैभव खोने की वजह क्या इसमें छिपी है? 1980 में कांग्रेस के संजय गांधी, 1981 में उपचुनाव में राजीव गांधी, 1984, 1989 और 1991 में लगातार राजीव गांधी, 1999 से 2004 तक सोनिया गांधी और 2004, 2009 और 2014 में राहुल गांधी अमेठी से चुने गए। राहुल गांधी 1980 के बाद से इस सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले नेहरू-गांधी परिवार के चौथे सांसद थे। राहुल गांधी 2019 के चुनाव में भाजपा की स्मृति ईरानी से 55,000 वोटों के अंतर से हार गए। और अब राहुल गांधी अमेठी पर हार का बदला लेने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पा रहे हैं? क्या कांग्रेस के पराभव की वजहें इसमें छिपी हैं?
रायबरेली लोकसभा सीट 1952, 1957 में फीरोज गांधी, 1967 से 1977 तक इंदिरा गांधी सांसद रहीं। 1977 में राजनारायण ने इंदिरा को 55 हजार मतों से हराया था तो 1980 में इंदिरा गांधी ने विजयाराजे सिंधिया को एक लाख 73 हजार मतों से हराया। हालांकि बाद में उन्होंने मेडक सीट बरकरार रखी और रायबरेली से त्यागपत्र दे दिया। फिर 2004 से 2024 में राज्यसभा में उनकी नियुक्ति तक रायबरेली सीट सोनिया गांधी के पास थी। और अब रायबरेली सीट भी इंतजार कर रही है कि गांधी परिवार से कोई आ रहा है या फिर यह सीट भी कांग्रेस से छिन जाएगी।
जिस कांग्रेस के जिस वैभव के लौटने की बात पटवारी कर रहे है, शायद उस कांग्रेस के पराभव की कहानी अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट बयां कर रही हैं। और संघर्ष को सफलता में बदलने के लिए इन वजहों से पार पाना पड़ेगा। यह कहना शायद ठीक नहीं है कि जिनको भाजपा में जाना हो जाएं। कांग्रेस छोड़ने की मजबूरी केवल काम धंधे नहीं हैं। सही कारणों को तलाशकर समाधान तलाशने की जरूरत है। वरना वैभव लौटाने का संघर्ष ही सबक सिखाएगा…।