केंद्र सरकार के लगभग हर निर्णय का विरोध करना पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राजनीतिक मजबूरी बन गयी है। वे प्रशासनिक फैसले का विरोध करने से भी नहीं चूकती।
ताजा मामला IAS अधिकारीयों के केंद्रीय डेपुटेशन से जुडा है। ममता बनर्जी नहीं चाहती कि बिना राज्यों की सहमति के केंद्र सरकार ऐसा कोई फैसला ले। यदि राज्य अपनी सहमति देता है तभी अधिकारी को डेपुटेशन पर बुलाया जाय, जैसी कि वर्तमान में व्यवस्था है।
वे केंद्र के इस फैसले को संघीय ढांचे के खिलाफ भी बताती हैं। उनका यह भी कहना है कि इस बदलाव के लागू होने के बाद केन्द्र में सत्ताधारी दल के हाथ में राज्यों के अधिकारियो का सीधे तौर पर नियंत्रण हो जाएगा और राज्य अधिकारी को डेपुटेशन पर जाने से रोकने के लिए केंद्र की इच्छा पर निर्भर रहेंगे।
केंद्र अधिकारियों की कमी से जूझ रहा है
पिछले कुछ सालों से केंद्र सरकार डेपुटेशन पर आने वाले अधिकारियों की कमी से जूझ रही है । आई ए एस अधिकारीयों का रिजर्व कोटा 300 से घटाकर सवा दो सौ तक पहुंच गया है। इस कमी के कारण महीनों तक पद खाली पड़े रहते हैं। हालांकि आई ए एस और आई पी एस अधिकारियों की कमी से राज्य सरकारें भी जूझ रही हैं। जानकारों का कहना है कि वह स्थिति एक दिन में नहीं बनी। कयी सालों तक इनके चयन की संख्या मनमानी तरीके से घटाई जाती रही जिसका खमियाजा अब सामने आ रहा है।
पिछले एक साल में केंद्र ने पश्चिम बंगाल काडर के कुछ आई ए एस और आई पी एस अधिकारियों को डेपुटेशन पर बुलाने के आदेश निकाले उन सभी को ममता बनर्जी ने रिलीव करने से मना कर दिया। पूर्व मुख्य सचिव अलापन बंद्योपाध्याय के तबादले का मामला इतना गरमाया कि उन्हें नौकरी से इस्तीफा दे पड़ा था।
हालांकि इस मुद्दे पर अभी केवल ममता बनर्जी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का ही खुला विरोध सामने आया है। लेकिन कुछ और राज्यों के विरोध की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। विशेषकर महाराष्ट्र, केरल और उड़ीसा – जहां के मुख्यमंत्री भी अपना विरोध दर्ज कराने का मन बना चुके हैं।