राकांपा में मिले दायित्व से अनमने से नजर आते अजित पवार!
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अरूण पटेल का कॉलम
एक ओर तो जहां विभिन्न चुनावों में महाविकास अघाड़ी मराठी मानुष के समर्थन से एक के बाद एक चुनाव जीत रही है तो वहीं दूसरी ओर एकनाथ शिन्दे और भाजपा नेता देवेन्द्र फणनवीस के नेतृत्व वाली सरकार अपना कोई प्रभाव मतदाताओं पर नहीं छोड़ पा रही है। यह संकेत इस बात से मिलता है कि भाजपा अपनी कुछ परम्परागत सीटों को भी उपचुनावों में बचा नहीं पाई। वहीं दूसरी ओर महाविकास अघाड़ी गठबंधन मे फेवीकोल का मजबूत जोड़ लगाने में माहिर राकांपा अध्यक्ष शरद पवार की अपनी पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पहले पार्टी के एक धड़े के अजित पवार के नेतृत्व में टूट कर भाजपा के साथ जाने की अटकलें लगीं तो शरद पवार ने स्वयं का त्यागपत्र देकर एक मास्टर स्ट्रोक में ऐसी चाहत रखने वाले अपनी पार्टी या भाजपा-शिन्दे गुट के लोगों के मंसूबों पर पानी फेर दिया और अपनी मजबूत पकड़ का सबको अहसास करा दिया।
महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में रह-रह कर इस बात की चर्चा होती है कि राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार कुछ अनमने हैं और इशारों में इसका इजहार करने का मौका भी वे नहीं छोड़ते हैं। शरद पवार ने एनसीपी में उसके स्थापना दिवस पर दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया जिसमें सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल शामिल थे। सुप्रिया सुले को महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, महिला, युवा व लोकसभा में समन्वय की जिम्मेदारी दी गई जबकि प्रफुल्ल पटेल के पास मध्यप्रदेश, राजस्थान, गोवा की जिम्मेदारी आई।
राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार शरद पवार ने सुप्रिया सुले को महाराष्ट्र का प्रभार देकर कहीं भाई-बहन के बीच मनमुटाव को हवा तो नहीं दे दी। क्योंकि छोटी बहन राज्य की प्रभारी होंगी तो बड़े भाई नेता प्रतिपक्ष रहेंगे। वैसे अजित पवार की रुचि संगठन में काम करने में अधिक है। क्योंकि, महाराष्ट्र में पार्टी का मजबूत संगठन उन्होंने ही खड़ा किया है। यदि शरद पवार के पास महाराष्ट्र का प्रभार होता तो शायद ऐसे हालात नहीं बनते जिनकी इन दिनों चर्चा हो रही है।
अजित पवार ने सार्वजनिक तौर पर पार्टी के स्थापना दिवस के समारोह में कहा कि उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए और उन्हें संगठन में कोई जिम्मेदारी सौंपी जाये। उन्होंने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि मैं विपक्ष के नेता के रुप में सख्त व्यवहार नहीं करता हूं। मुझे विपक्ष के नेता के रुप में काम करने में कभी दिलचस्पी नहीं थी लेकिन पार्टी विधायकों की मांग पर यह भूमिका स्वीकार की। अब वह इस पद को छोड़कर संगठन में काम करने के इच्छुक हैं जिस पर निर्णय पार्टी नेतृत्व को करना है।
अजित पवार की मांग पर जब सवाल उठने लगे तब सुप्रिया सुले का कहना था कि वह बहन के तौर पर चाहती हैं कि उनके भाई की सभी इच्छाएं पूरी हों। बहन के रुप में तो उन्होंने अपनी बात रख दी लेकिन प्रभारी के तौर पर वह क्या चाहती हैं यह अभी साफ होना बाकी है, क्योंकि उन्होंने इससे अधिक कुछ नहीं कहा।
अजित पवार की नाराजगी की खबरों को लेकर हालांकि भाई-बहन दोनों ने ही स्थिति साफ कर दी लेकिन राजनीति में इतना करने मात्र से अनुमानों की घोड़े थम नहीं जाते हैं। लगता है अजित पवार नेता प्रतिपक्ष की जगह पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते हैं और यह मांग वह सीधे-सीधे नहीं कर सकते क्योंकि इस पद पर उनके ही अपने आदमी जयंत पाटिल विराजमान हैं। इस बीच राकांपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल ने पेंच को यह कहते हुए और उलझा दिया कि उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए। छगन भुजबल शिवसेना से राकांपा में आये और उसके बड़े नेता बन गये। लेकिन उन्हें एक बार उपमुख्यमंत्री का पद इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि अजित पवार इस पद पर अपनी ताजपोशी चाहते थे। कहीं भुजबल ने अचानक यह मांग रखकर अजित पवार से अपना पुराना हिसाब बराबर करने की कोशिश तो नहीं की है।