संसार की सभी माताएं देवी कुष्मांडा का ही रूप हैं…

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संसार की सभी माताएं देवी कुष्मांडा का ही रूप हैं…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब देवी कुष्मांडा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दिव्यमान है।

सूर्य का एक नाम हिरण्यगर्भ है। ऋग्वेद में उन्हें इसी नाम से पुकारा गया है। हिरण्यगर्भ का अर्थ है, सुनहले प्रकाश वाला गर्भ या वह आवरण जिसके भीतर सुनहला प्रकाश छिपा हुआ है। वह आवरण ही कुष्मांडा है। वह गर्भ भी देवी का ही है, जिसमें सारे संसार की चेतना गर्भस्थ शिशु के रूप में मौजूद रहती है। जो भी सृजन का कार्य हो रहा है, वह भी देवी कुष्मांडा के कारण ही हो रहा है। इस संसार का सारा गर्भ देवी के रूप में है। और इसीलिए संसार की सभी माताएं असल में देवी कुष्मांडा का ही रूप हैं। देवी ही गर्भ में पल रही संतान की रक्षिका हैं। वह जन्म के बाद भी हर नवजात का ध्यान रखती हैं। जिन्हें कहीं-कहीं बैमाता तो कहीं छठी तो कहीं कृत्तिका कहा जाता है, लेकिन असल में ये सभी देवी कुष्मांडा के ही अलग-अलग स्वरूप के नाम हैं।

नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कुष्मांडा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और चंचल मन से कुष्मांडा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए। ज्योतिष में मां कुष्मांडा का संबध बुध ग्रह से है। इसलिए माता का ये रूप बुद्धि का वरदान देती हैं। मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा के इस रूप की पूजा करने से बुध ग्रह कुंडली में सकारात्मक रहता है। साथ ही सोच सकारात्मक रहती है। माँ कुष्मांडा के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके आठ हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन शेर है।

माँ कुष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कुष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।

अपनी मंद, हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्मांडा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कुष्मांडा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ कुष्मांडा कहलाती हैं।

जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है। तो सृजन का पर्याय मां कुष्मांडा वास्तव में हर नारी स्वरूप में विद्यमान है। हर नारी सृजन की क्षमता रखती है। इसलिए हर मॉं में कुष्मांडा का स्वरूप विराजित है। और वास्तव में नवरात्रि का चौथा दिन यही संदेश देता है कि हर घर में नारी की पूजा का भाव रखकर व्यक्ति मॉं कुष्मांडा की कृपा प्राप्त कर सकते हैं…।

 

लेखक के बारे में –

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।