Allegation on Military:क्या राहुल गांधी कांग्रेस की बरबादी को उतावले हैं ?
लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी के उस ताजा बयान ने बखेड़ा कर दिया है,जिसमें उन्होंने कहा है कि सेना में अमीर और गरीब दो वर्ग है। गरीब वर्ग में दलित,पिछड़े,अजा,जजा,अल्पसंख्यक आदि हैं। मुझे लगता है कि यह राजनीति के वर्तमान दौर का सबसे निम्न स्तरीय,विवेकहीन और बचकाना सोच है। इसने सेना के मनोबल,स्वाभिमान और विशअवास पर आक्षेप किया है। भाजपा ने इसकी शिकायत चुनाव आयोग से तो की ही है,इस मसले पर संसद से सड़क तक हंगामा खड़ा होना सुनिश्चित है। राहुल निकट भविष्य में एक और गंभीर न्यायालयीन कार्रवाई के शिकंजे में फंसने से शायद ही बच पायें।
चुनावी राजनीति में सच्चे-झूठे आरोप लगाना आम बात है। कमोबेश सभी दल अपनी योजनाओं का बखान करने की बजाय दूसरे दलों को कमतर बताने पर ही ज्यादा जोर देते हैं। जनता ने भी राजनीति के इस चरित्र को स्वीकार कर लिया है। ऐसे में राहुल गांधी का सेना जैसे राष्ट्रीय अस्मिता व निर्विवाद क्षेत्र में जातिवाद और भेदभाव की बात कहना आश्चर्यजनक तो नहीं है, लेकिन निहायत गैर जिम्मेदाराना और बचकानापन अवश्य है। अब सही समय आ गया है, जब राहुल गांधी अपने बारे में और कांग्रेस राहुल के बारे में कोई ठोस फैसला लें। राहुल ने 2024 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक मयार्दाओं की अर्थी ही निकाल दी है। ऐसा जान पड़ता है कि राहुल ने कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोंकने का ठेका ले रखा है ।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के पहले राजनीतिक दल का महासचिव और अध्यक्ष रह चुका व्यक्ति,जो सांसद भी है, वह राजनीति का न्यूनतम शिष्टाचार भी नहीं समझता व जानना भी नहीं चाहता। कभी वह संसद में प्रधानमंत्री को झप्पी देता है, कभी अपने किसी साथी को आंख मारता है। कभी सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल खड़े करता है,कभी केंद्र सरकार के सचिवों में पिछड़े-दलितों-अल्प संख्यकों का प्रतिनिधित्व नहीं है,ऐसी बेतुकी बातें करता है। कभी जातिगत जनगणना की बात करते हुए कहता है कि इससे पता चलेगा कि किस जाति की कितनी जनसंख्या है और उस अनुपात में उनके पास कितने संसाधन हैं। कभी उनके नेता किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति सरकार को दे देने की वकालत करते हैं और कभी कहते हैं कि देश में पूरब,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण के लोग भारतीय नहीं बल्कि चीन,अफ्रीका वगैरह देशों के लगते हैं। ये बंदा किसी भी बात का खंडन नहीं करता है, न उसकी पार्टी कोई सफाई देती है।
ऐसे अनगिनत,अविरल,अर्नगल बयानों के क्रम में ताजा बयान कांग्रेस के शहजादे ने यह दिया कि सेना में भी अमीर-गरीब दो वर्ग हैं। इस अमर्यादित बयान पर प्रतिक्रिया भी उतनी ही असहज देने को मन करता है कि ऐसे बयान देने वाला,इस तरह की निम्न सोच रखने वाला कोई बुद्धिहीन,अल्प बुद्धि, मंद बुद्धि या कोई शातिराना दिमाग वाला ही हो सकता है। यह सोच किसी भी तरह से राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का परिचायक नहीं हो सकता। यह मतिभ्रम का नमूना तो है ही, साथ ही यह स्पष्ट करता है कि राहुल गांधी अपने गठबंधन की आसन्न हार को निकट पाकर बुरी तरह से बौखला गये हैं। उनके बयानों से गठबंधन के सहयोगी दल इनकार भी नहीं करते याने वे राहुल के बयानों से सहमत हैं और मौका आने पर खुलकर उसके साथ भी आ सकते हैं।संभव है, वे राहुल के कंधे पर बंदूक रखकर निशाना साध रहे हों।
इस समय सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के अनगिनत बयान और भाषणों के वीडियो बहुतायत में प्रसारित हो रहे हैं, जिसमें वे निहायत असंगत,गैर जिम्मेदाराना, भड़काऊ और देश की अस्मिता से खिलवाड़ करने वाली बातें कह रहे हैं। बावजूद इसके कि देश की जनता उन्हें गंभीरता से नहीं लेती,उन्हें उनकी हदें बताना आवश्यक हो चला है। यह कानूनी तौर पर ही किया जाना रहेगा। अपनी सांसदी को भी खतरे में डाल देने वाला व्यक्ति आयंदा भी ऐसा कुछ नहीं करेगा,इसकी गारंटी तो अब कांग्रेस भी नहीं दे सकती,क्योंकि कांग्रेस में किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं कि वे गांधी परिवार के चिराग को आईना दिखायें। भले ही वे कांग्रेस का चिराग बुझाने वाला काम कर रहे हों।
एक और उल्लेखनीय बात। अपने नाना प्रकार के कर्मों,गांधी परिवार की राजशाही प्रवृत्ति,राहुल गांधी की ऊलजलूल हरकतें,अटपटे-चटपटे,गैर जिम्मेदाराना बयानों से कांग्रेस की जो मिट्टी पलीद होनी है, वह तो टनों से हो रही है, लेकिन गठबंधन में शामिल सहयोगी दल शायद समझ ही नहीं पा रहे कि राहुल के बोल-वचन उनकी अपने-अपने क्षेत्र में कायम थोड़ी-बहुत साख का भी तिया-पाचा कर रहे हैं। हो सकता है,इस चुनाव का प्रचार परवान चढ़ने के साथ ही उनके मुगालते भी साफ हो रहे हों और वे अंदरूरनी तौर पर राहुल की हरकतों से नाराज,असहमत हों, किंतु बीच चुनाव में वे राहुल से मुक्त भी नहीं हो सकते। यह भी तय है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद गैर भाजपा विपक्ष में कितना ही तालमेल बैठ जाये, लेकिन वे कांग्रेस से बचकर ही रहेंगे। इसकी अन्य वजह में से एक यह भी है कि कांग्रेस अभी तक अपने बड़े दल के अहसास से मुक्त ही नहीं हो पाई है। जिससे वह किसी भी समझौते के लिये अपनी शर्तों पर सहयोग चाहती है, जो बार-बार सामने आ चुका है।
राहुल गांधी के लिये आने वाला समय भारी मुश्किलों का होने वाला है।राहुल इस तरह का आचरण स्वयं ही करते हैं या उनके सलाहकार उन्हें उकसाते हैं, यह तो वे ही जानें, लेकिन इसके दुष्परिणाम राहुल को ही नहीं कांग्रेस को व उनके सहयोगी दलों को भी भुगतने होंगे,इतना तो वे जानते ही होंगे। कहीं वे जान बूझकर तो ऐसा नहीं कर रहे ?