मोदी की रण नीति और सफलताओं से जुड़े रहे हैं संघ तथा जनता के सपने

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन ने सितम्बर 2006 में दिल्ली के एक कार्यक्रम में सहजता से एक बात कही थी – ” स्वामी विवेकानंद ने 1894 – 95 में अपने गुरुभाइयों को लिखे पत्र में कहा कि 1836 में स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म तो एक युग परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हुई , एक स्वर्ण युग संधि का काल 175 वर्ष का है | सन 1836 में 175 जोड़िए तो 2011 आ रहा है |

2011 से भारत का भाग्य – सूर्य दुनिया में चमकना प्रारम्भ हो जाएगा | ”  इसे उनका विश्वास कहा जाए अथवा दूरगामी लक्ष्य के लिए अपने स्वयंसेवकों और वैचारिक  समर्थकों को सन्देश कहा जा सकता है | तब  नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और अनेक चुनौतियों के बावजूद प्रदेश और देश के लिए एक नई सामाजिक आर्थिक क्रांति के साथ राजनैतिक – प्रशासनिक शैली अपनाने का प्रयास कर रहे थे |

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किसीने भी कल्पना नहीं की थी कि 2014 में पूरे देश की बागडोर देकर संघ भाजपा उन्हें प्रधान मंत्री पद सौंप देगी | लेकिन यह समझा जाना चाहिए कि संघ और मोदी तात्कालिक लाभ हानि के बजाय दूरगामी हितों और लक्ष्य के लिए काम करते हैं | उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में हुई चुनावी तैयारी और सफलता उसी कार्य शैली का परिणाम है | इसे 2024 के लोक सभा चुनाव और उसके बाद 2050 के भारत के सामाजिक आर्थिक स्वरुप की दशा दिशा की रुपरेखा माना जाना चाहिए |

इन चुनावों के दौरान एक बड़ा मुद्दा यह भी रहा कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने विकास के साथ हिंदुत्व के नारे विचार का प्रयोग किया | लेकिन वास्तविकता यह है कि यह संघ भाजपा की सुनियोजित तैयारी है | सुदर्शनजी ने जून 2003 में मुझे दिए एक विशेष इंटरव्यू में  बताया था कि ” अब हिंदुत्व की विचारधारा गति बढ़ती जा रही है | आजकल संघ की विचारधारा को लोग स्वीकारने लगे हैं | दो साल पहले हमने राष्ट्रीय जागरण अभियान चलाया और हिन्दुस्तान के 6 लाख 35  हजार गांवों  में से 4 लाख 5 हजार गांवों में संघ के विचार हम पहुंचा चुके हैं और सर्वत्र संघ के विचारों की सराहना हो रही है |

संघ व्यक्ति तैयार करता है और उसने अपने सामने राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का लक्ष्य रखा है | ” जिस समय यह बातचीत हुई थी तब भाजपा सत्ता में थी , लेकिन अटलजी और गठबंधन की सरकार से संघ की अपेक्षाएं पूरी न होने से थोड़ा तनाव भी था | एक साल बाद सत्ता चली गई , लेकिन संघ भाजपा के नेताओं ने अपने अभियान को जरी रखा | वर्तमान सरकार द्वारा कई पुराने लक्ष्य पूरे करने और सफलता का रथ आगे बढ़ाने का प्रयास जारी है |

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इसीलिए जातीय राजनीति के वर्षों पुराने ढर्रे को इस बार ध्वस्त करने में नरेंद्र मोदी को ऐतिहासिक सफलता मिली है | संघ भाजपा ही क्यों स्वामी दयानन्द से लेकर महात्मा गांधी भी जातिगत भेदभाव ख़त्म करने के सबसे बड़े अभियानकर्ता थे | स्वामी दयानन्द और गांधीजी भी गुजरात से थे और अविभाजित भारत में आर्य समाज का प्रभाव लाहौर से लेकर सम्पूर्ण  उत्तर पश्चिम पूर्वी राज्यों तक था | इसे संयोग ही कहा जाएगा कि नरेंद्र मोदी उसी लक्ष्य की राजनीति कर रहे हैं |

इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने जातीय समीकरणों को सबसे अधिक महत्व दिया और सत्तारूढ़ भाजपा सरकार की कमियों के साथ जातीय दलों , नेताओं और करीब बीस प्रतिशत मुस्लिम आबादी से सर्वाधिक राजनैतिक लाभ पाने का विश्वास संजोया | उनका तरीका नया नहीं था | चौधरी चरण सिंह , मुलायम सिंह यादव , लालू यादव , वी पी सिंह और काशीराम  मायावती द्वारा बनाई गई विभिन्न पार्टियों ने इसी फॉर्मूले पर काम किया और गठबंधन करते तोड़ते रहे | मुलायम मायावती के बीच कभी गंभीर टकराव और कभी समझौते हुए |

दोनों ने सत्ता में आने पर जातीय संघर्ष को भयावह हथियार की तरह इस्तेमाल किया | इस चुनाव में कम से कम मायावती की बहुजन समाज पार्टी को तो जैसे जड़ से ही उखाड़ फेंका और अखिलेश यादव को भी संभवतः कुछ सबक मिल गए | असल में उन्हें जातीय समीकरणों से अधिक अपने सत्ता काल में कुछ अच्छे काम का लाभ भी वोटों के लिए मिला | कांग्रेस पार्टी तो सारे नए फॉर्मूलों  के चक्कर में बुरी तरह पराजित हुई | साम्प्रदायिक आधार पर वोट बंटोरने निकले ओवेसी के तो 99 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत तक जप्त हो गई |

इस विजय पराजय को भारतीय लोकतंत्र के नए दौर नए युग की तरह देखा जाना चाहिए | महंगाई , बेरोजगारी , कोरोना महामारी , किसान कानूनों के विरुद्ध लम्बे उग्र राजनैतिक आंदोलन , सत्ता और प्रतिपक्ष के बीच संवादहीनता के साथ कटुता और टकराव की पराकष्ठा , जातीय सांप्रदायिक और आपराधिक क्षेत्रों की स्थानीय समस्याओं के बावजूद पांचों प्रदेशों – उत्तर प्रदेश , पंजाब , उत्तराखंड , गोवा और मणिपुर में 60 से 80 प्रतिशत तक मतदान बिना किसी हिंसा के संपन्न हुआ |

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यह विश्व में लोकतांत्रिक व्यवस्था का रिकार्ड और आदर्श कहा जा सकता है | उत्तर प्रदेश में मतगणना से पहले कुछ विरोधी नेताओं ने वोटिंग मशीन की गड़बड़ी की आवाज उठाई , लेकिन परिणाम आने पर वे स्वतः निष्पक्ष चुनाव को स्वीकार करते नजर आए | बहरहाल , राजनैतिक दलों की अपेक्षा इस सफलता का श्रेय करोड़ों मतदाताओं को दिया जाना चाहिए , जिन्होंने शहरों से सुदूर पर्वतीय गांवों तक मूलभूत आवश्यकताओं – अनाज , पानी , बिजली , छोटा मकान , घरेलु गैस , शौचालय , शौचालय , शिक्षा , स्वास्थय सुविधाओं इत्यादि के मुद्दों को सर्वाधिक महत्व माना |

यही नहीं जनता की अपेक्षाएं पूरी न कर सकने वाले दिग्गज नेताओं , मुख्यमंत्रियों , उप मुख्यमंत्रियों को चुनाव में पराजित कर दिया | सबसे बुजुर्ग प्रकाश सिंह बादल से लेकर सबसे युवा पुष्कर सिंह धामी तक या अपनी लोकप्रियता की बहुत बड़ी गलतफहमी पालने वाले नवजोतसिंह सिद्धू , चरणजीत सिंह चन्नी और कैप्टन अमरेंद्र सिंह को हरा दिया | लोकतान्त्रिक जागरूकता और वोटिंग अधिकार के सदुपयोग का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है ?

( लेखक आई टी वी नेटवर्क – इंडिया न्यूज़ और आज समाज दैनिक के सम्पादकीय निदेशक हैं )

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।